Govind Singh Dotasra On Bhajan Lal Sharma : राजस्थान की सियासत में सोमवार एक ऐसा आरोप गूंजा, जिसने सरकार को सिर्फ कठघरे में नहीं, बल्कि सीधे निगरानी कैमरे के नीचे ला खड़ा किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का दावा है कि अब मुख्यमंत्री और मंत्री खुद अपने करीबियों से कह रहे हैं कि डायरेक्ट कॉल मत किया करो, मेरा फोन दिल्ली वाले सुनते हैं। यानी जिनके पास सत्ता की ताकत है, उनके पास अब संवाद की आजादी नहीं है। इसे लेकर विपक्ष कह रहा है कि यही इस राज का सबसे बड़ा रहस्य है, जिसका खामियाजा सीधे जनता को भुगतना पड़ रहा है।
विपक्ष अब तक सरकार पर फोन टैपिंग का आरोप लगाता रहा है, लेकिन पहली बार सत्ता के भीतर से जुड़ा आरोप है और विपक्ष इसे सीधे जनता की आवाज से जोड़कर देख रहा है। राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का कहना है कि मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक अब फोन उठाने से पहले यह सोचते हैं कि कहीं कोई और तो नहीं सुन रहा। वो कहते हैं कि एक दौर था, जब मंत्री जनता की आवाज सुनते थे, लेकिन अब वो खुद किसी की सुनने से डर रहे हैं। डर यह नहीं कि कौन बोल रहा है? कौन सुन रहा है? और यही डर अब संवाद को जासूसी में बदल रहा है।
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गोविंद सिंह डोटासरा ने सीएम भजनलाल पर क्या लगाए आरोप
गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि जब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा तक कहने लगे कि वो फोन नहीं उठाते, क्योंकि दिल्ली सुन रही है तो समझ लीजिए प्रदेश में भय का शासन है। अब लोग खुद कह रहे हैं कि काम के लिए कॉल करने से मना किया जा रहा है। वहीं, बीजेपी नेता और सांसद दामोदर अग्रवाल ने डोटासरा के इस बयान को पूरी तरह से खारिज कर दिया। उन्होंने इसे एक बार फिर बिना सिर-पैर का आरोप बताया।
मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने किया पलटवार
राजस्थान सरकार के मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा कि वे अभी क्या बोल रहे हैं यह तो उन्हें ही पता है। हमारी सरकार में तो किसी का फोन टेप नहीं होता है। उनकी सरकार में जरूर हुआ था। कई अधिकारियों ने उसे वक्त के मुख्यमंत्री के खिलाफ ये संगीन आरोप लगाए थे। हम ऐसी कोई बात ही नहीं करते, जिसके चलते हमें हमारे फोन के टेप होने का डर हो।
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अब सवाल ये उठता है कि क्या वाकई राजस्थान की राजनीति अब फोन कॉल पर नहीं, कॉलर आईडी पर चल रही है? क्या मंत्री खुद तय करते हैं कि किससे बात करनी है या दिल्ली तय करती है कि किसकी आवाज कितनी तेज होनी चाहिए? डोटासरा का बयान सियासी तीर है या हकीकत का आईना- यह तय होना बाकी है, लेकिन सवाल अहम है कि विपक्ष के आरोपों के अनुसार अगर सरकार भी बोलने से डरने लगे तो फिर लोकतंत्र किसके लिए है?