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Navratri 2024: बिहार के इस मंदिर में देवी के धड़ की होती है पूजा, कालिदास को यहीं हुई थी ज्ञान की प्राप्ति!

Navratri 2024: नवरात्रि में देवी दुर्गा के कई रूपों की पूजा की जाती है। लेकिन बिहार में माता का एक ऐसा भी मंदिर है जहां उनके धड़ की पूजा की जाती है। यहां देवी बिना सिर के ही विराजमान हैं। यह मंदिर त्रेतायुग से तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है।

Edited By : Nishit Mishra | Updated: Oct 5, 2024 19:07
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उच्चैठ भगवती
उच्चैठ भगवती

Navratri 2024: माता दुर्गा भक्त की हर मनोकामना पूरी करती हैं। माता के कृपा से ही कालिदास जैसा महामूर्ख, महाज्ञानी बन गए थे। चलिए जानते हैं कहां है देवी दुर्गा का वह मंदिर जहां कालिदास को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति!

कहां है ये मंदिर?

भगवती दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर बिहार के मधुबनी जिले में स्थित है। मधुबनी जिले के बेनीपट्टी में स्थित यह मंदिर सिद्धपीठ के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पौराणिक काल में यहां पर कई ऋषि-मुनि देवी की साधना किया करते थे। भगवान राम भी जब मिथिला आए थे तो उन्होंने ने भी यहां देवी की पूजा अर्चना की थी। पौराणिक काल में ये क्षेत्र घना जंगल हुआ करता था। इसलिए भगवती को वनदुर्गा भी कहा जाता है। इस मंदिर को उच्चैठ भगवती के नाम से भी जाना जाता है।

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देवी की मूर्ति

इस मंदिर में देवी की मूर्ति काले शिलाखंड पर बनी हुई है। इस मंदिर में देवी का धड़ कमल के आसन पर अपने वाहन सिंह के साथ विराजमान है। देवी के धड़ नहीं होने के कारण इस देवी को छिन्नमस्तिका भगवती  के रूप में पूजा जाता है। धर्मग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार देवी दुर्गा अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान कर रही थी। उसी समय सखियों ने उनसे भूख मिटाने की याचना की। तब देवी ने अपना सिर धड़ से अलग कर लिया। देवी के इसी रूप को छिन्नमस्तिका भगवती के नाम से जाना जाता है।

कालिदास को मिला ज्ञान

पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन कालिदास को उनकी विदूषी पत्नी विद्योत्तमा ने त्याग दिया। उसके बाद कालिदास भागकर उच्चैठ आ गए। यहां आकर वे  उच्चैठ के संस्कृत विद्यालय में भोजन बनाने का काम करने लगे। विद्यालय के छात्र रोज देवी के मंदिर में शाम को दीप जलाने जाते थे। एक दिन मंदिर के बगल में स्थित नदी में बाढ़ आ गई। छात्रों ने मंदिर जाने से मना कर दिया। उसके के बाद सभी ने कालिदास को मंदिर में दीप जलाने के लिए भेजा। कालिदास महामूर्ख थे, वे छात्रों के कहने पर मंदिर जाने को तैयार हो गए। तब छात्रों ने कहा मंदिर में तुम दीप जलाओगे इसका प्रमाण भी साथ लेते आना। कालिदास किसी तरह पानी में मंदिर पहुंचे और दीप जला दिया। उसके बाद उन्होंने सबूत के तौर पर देवी की प्रतिमा पर कालिख लेप दिया।

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तंत्र साधना

यहां मंदिर परिसर में एक श्मशान भी मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि यहां आज भी तंत्र साधना की जाती है। भक्त मनोकामना पूरी होने पर यहां देवी को पशुबलि भी देते हैं। ऐसी मान्यता है कि बलि के बाद रक्त से यहां स्थित नदी आज भी लाल हो जाती है।

कालिदास को मिला वरदान

कालिदास के इस व्यवहार से माता उनके सामने प्रकट हुई  और वरदान देती हुई बोलीं, आज रात तुम जितनी भी पुस्तकों को स्पर्श करोगे वह सब तुम्हें याद हो जाएगी। उसके बाद कालिदास विद्यालय वापस आ गए। फिर रातभर में उन्होंने विद्यालय की सभी पुस्तकों को पलट दिया। ऐसा माना जाता है कि उस रात कालिदास ने जितनी किताबों को स्पर्श किया वे सभी उनको याद हो गए।

ये भी पढ़ें- Navratri 2024 Special Story: महिषासुर का अंत करने के लिए कैसे हुई माता दुर्गा की उत्पत्ति?

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है

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Edited By

Nishit Mishra

First published on: Oct 05, 2024 07:07 PM

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