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Religion

सावधान! होलाष्टक के 8 दिन रहें बेहद सतर्क, बढ़ जाती है नकारात्मक शक्तियों की ऊर्जा?

Holashtak 2025: होली से 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाता है जिसमें किसी भी तरह के शुभ कार्य करना वर्जित होता है। आइए जान लेते हैं कि होलाष्टक पर किन ग्रहों का प्रभाव रहता है, क्या है इसका धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण। विस्तार से समझें होलाष्टक का महत्व।

Author Edited By : Hema Sharma Updated: Mar 4, 2025 16:21
Holashtak 2025
Holashtak 2025

Holashtak 2025: रंगों के त्योहार होली के दिन नजदीक आ गए हैं। 13 मार्च को होलिका दहन होगा और 14 मार्च को रंगवाली होली मनाई जाएगी। लेकिन इस रंगों के पर्व से ठीक 8 दिन पहले होलाष्टक (Holashtak 2025) लग जाता है। होली के जले- कटे दिन यानी होली के आठ दिन के पहले लगता है होलाष्टक। इस अवधि में सभी शुभ कार्यों को करना वर्जित माना जाता है। इसके साथ ही इन दिनों में तंत्र-मंत्र,जादू टोना जैसी चीजों यानी नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव ज्यादा रहता है। आइए धर्म की अच्छी खासी जानकारी रखने वाली नम्रता पुरोहित कांडपाल ने होलाष्टक के बारे में क्या बताया?

कब से लगता है होलाष्टक

शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है और शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक लग जाता है। इस बार होलाष्टक सात मार्च को होगा,जिसकी समाप्ति 13 मार्च होलिका दहन के साथ होगी। कई राज्‍यों में होलाष्टक पर ही होली का डांडा रोपा जाता है और आठ दिनों तक उसी पर लकड़ियां डाली जाती हैं यानी होलिका दहन का कुंड तैयार किया जाता है पूर्णिमा के दिन उसे ही जलाया जाता है।

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होलाष्टक पर ये ग्रह हो जाते हैं निर्बल

ऐसा माना जाता है कि इस दौरान भगवान शिव को समाधि से जागृत करने के लिए कामदेव ने अपने पांच बाण चलाए थे और महादेव की तपस्या भंग की थी। शिव की तपस्या तो भंग हुई लेकिन साथ ही उनका तीसरा नेत्र भी खुल गया और उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया। तब कामदेव की पत्नी रति ने महादेव को प्रसन्न किया था। ज्योतिष के अनुसार होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्र, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि,एकादशी को शुक्ल,द्वादशी गुरु,त्रयोदशी बुध चतुर्दशी को मंगल,पूर्णिमा राहु ग्रह उग्र स्वभाव और निर्बल ग्रह होते हैं।

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जब हिरण कश्यप ने प्रहलाद को दी थी सजा वो था होलाष्टक

पौराणिक कथा के अनुसार राजा हिरण कश्यप जो अपनी प्रजा को कहता था कि वह उसकी पूजा करें। उसे ही भगवान माने विष्णु को भगवान ना माने उनकी पूजा ना करें। किंतु हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त था और वह नारायण की भक्ति में लीन रहता था। राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को नारायण भक्ति करने से रोका और उसे मृत्यु तुल्य कष्ट दिए। वह समय होलाष्टक का समय ही था। पूर्णिमा के दिन राजा ने अपने पुत्र प्रहलाद को अपनी बहन होलिका,जिसे वरदान था कि आग में नहीं जलाया जा सकता है। उसके साथ लकड़ियों  के गटर में अग्नि जलाकर प्रहलाद को बैठा दिया था।

क्या कहता है विज्ञान

विज्ञान के अनुसार अक्सर पूर्णिमा को ज्वार भाटा सुनामी जैसी आपदाएं आती हैं। गांव में हल्की फसलों की कटाई बुवाई का समय होता है और ऐसे में मांगलिक कार्य अगर किए जाएं तो लोगों को घर परिवार छोड़कर जाना पड़ता है। इससे त्यौहार का रंग फीका पड़ जाता है। विज्ञान के नजरिए से देखें तो यह मौसम परिवर्तन का समय होता है हमारा मन चंचल होता है उदास होता है। किसी भी कार्य को करने का मन नहीं करता और जब किसी कार्य को मन से ना करें तो वह फलीभूत भी नहीं होता है। मन को प्रसन्न करने वाले कार्य करने चाहिए इसलिए होलाष्टक के दौरान होली मनाने की तैयारी की जाती है। मंदिरों में भजन कीर्तन किए जाते हैं गुलाल खेला जाता है कईं राज्यों में तो ‘होरी’  मनाई जाती है।

यानी कि सभी लोग इकट्ठे होकर रंग खेलते हैं और भजन गाते हैं। होलाष्टक के दौरान गरीब और जरूरतमंदों को अन्न का, वस्त्र का,धन का दान जरूर जरूर दें। भजन कीर्तन करें विष्णु सहस्त्रनाम हनुमान चालीसा और महामृत्युंजय का जप करें। संभव हो तो घर पर या मंदिर में श्री हरि विष्‍णु और महादेव की पूजा जरूर करें। हरि और हर दोनों पर ही गुलाल जरूर लगाए। इसके साथ ही पितरों के निमित्त दान तर्पण जरूर करें।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Hema Sharma

First published on: Mar 04, 2025 04:21 PM

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