Rath Yatra 2025: ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में ओडिशा से ही नहीं, बल्कि अलग-अलग शहरों से लोग शामिल होने के लिए पहुंचते हैं। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र को स्थापित किया जाता है और पूरे शहर में उनकी यात्रा निकाली जाती है। माना जाता है कि इनके दर्शन करने से सारे पाप दूर होते हैं। वहीं, इस साल 27 जून को यह रथ यात्रा निकाली जाएगी।
वहीं, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ की 108 कलशों से जलाभिषेक किया जाता है। इस दिन को भी रथ यात्रा की तरह ही मनाया जाता है। इसे जगन्नाथ जी की स्नान यात्रा कहते हैं। भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ मंदिर के बाहर लोगों को दर्शन कराने के लिए लाए जाते हैं। दर्शन के बाद उन्हें कलशों से स्नान कराया जाता है। पूरे साल में इस दिन भगवान को मंदिर परिसर में ही बने सोने के कुएं के पानी से स्नान कराया जाता है, क्योंकि इस कुएं में सभी तीर्थों से आए जल को इकट्ठा किया जाता है, जिसे काफी पवित्र माना जाता है।
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कैसा दिखता है ये कुआं?
यह कुआं मंदिर में ही देवी शीतला और उनके वाहन सिंह की मूर्ति के ठीक बीच में स्थित है। यह 4 से 5 फीट चौड़ा वर्गाकार है। माना जाता है कि इसमें नीचे की तरफ दीवारों पर मालवा प्रदेश के राजा इंद्रद्युम्न ने सोने की ईंटें लगवाई थीं। सीमेंट-लोहे से बना इसका ढक्कन लगभग डेढ़ से दो टन का है, जिसे 12 से 15 सेवक मिलकर उठाते हैं। वहीं इस ढक्कन में एक छेद है, जिसमें से श्रद्धालु सोने की चीजें डालते हैं। इस वजह से इसे सोने का कुआं कहा जाता है।
भगवान जगन्नाथ क्यों होते हैं बीमार?
इस पूर्णिमा स्नान के बाद भगवान 15 दिन के लिए बीमार पड़ जाते हैं। उनके बीमार पड़ने पर भक्तों को उनके दर्शन नहीं होते क्योंकि उस समय उनका इलाज चल रहा होता है। ऐसा कहा जाता है कि स्नान के बाद भगवान को सर्दी लग जाती है, जिस वजह से भक्त उनका इलाज करते हैं। इस दौरान भगवान जगन्नाथ की एक बच्चे की तरह देखभाल की जाती है। उन्हें देसी जड़ी-बूटियों से काढ़ा बनाकर पिलाया जाता है और भोजन में मौसमी फल और परवल का रस दिया जाता है।
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