Rectal Cancer: रेक्टम या मलाशय आंतों का आखिरी हिस्सा है. यह शरीर का वह अंग है जहां मल स्टोर भी होता है और जहां से मल बाहर भी निकलता है. मलाशय यानी रेक्टम (Rectum) में होने वाले कैंसर को रेक्टल कैंसर कहते हैं. इस कैंसर में मलाशय से खून बहने लगता है, दर्द होता है और मलत्याग करने से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं. अगर किसी व्यक्ति को रैक्टल कैंसर हो जाता है तो कैंसर वाले ट्यूमर (Tumor) हटाने की सर्जरी से इस कैंसर से बचा जा सकता है. यहां जानिए रैक्टल कैंसर के वॉर्निंग साइन क्या हैं या यह कैंसर होने पर शरीर पर कैसे लक्षण नजर आते हैं. साथ ही जानिए मलाशय के कैंसर का क्या इलाज है या कौन सी सर्जरी इस कैंसर से बचने के लिए करवाई जाती है.
मलाशय के कैंसर के लक्षण | Rectal Cancer Symptoms
- मलाशय का कैंसर होने पर शरीर में कई तरह के बदलाव नजर आ सकते हैं. इस कैंसर में मलाशय से खून बहने लगता है.
- दस्त लग जाते हैं.
- कब्ज की दिक्कत हो सकती है.
- मलत्याग करने का पैटर्न बदल सकता है.
- मल पेंसिल की तरह पतला आ सकता है.
- हर समय शरीर में थकान रहने लगती है.
- शरीर में कमजोरी आ जाती है.
- पेट में और पेट के निचले हिस्से में दर्द रहने लगता है.
- अचानक से वजन कम होने लगता है.
मलाशय के कैंसर का ट्रीटमेंट (Rectal Cancer Treatment)
गाइनेक, स्टमक और कोलोन कैंसर सर्जन डॉ. प्रवीण कामर ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो शेयर कर बताया कि रेक्टम 12 से 15 सेंटीमीटर लंबा अंग है जो तीन हिस्सों में बंटा होता है – अपर पार्ट, मिडल पार्ट और लोअर रेक्टम. कैंसर जिस हिस्से में होता है सर्जरी उसी पर निर्भर करती है. लोअर रैक्टम एक्सटर्नल स्फिंस्टर मसल्स से कनेक्टेड होती है जोकि बाउल मूवमेंट्स को कंट्रोल करती है. इसीलिए यह सर्जरी आमतौर पर ज्यादा मुश्किल होती है और सर्जरी में इन मसल्स को बचाना जरूरी होता है.
एंटीरियर रिसेक्शन – अपर रेक्टम यानी रेक्टम के ऊपरी हिस्से में होने वाले कैंसर में एंटीरियर रिसेक्शन सर्जरी होती है. इसमें कैंसर वाले हिस्से को हटाया जाता है और कोशिश की जाती है कि आस-पास की मसल्स पर असर ना पड़े. इसमें डीप पेल्विक सर्जरी नहीं होती है और स्फिंस्टर कंट्रोल को प्रीजर्व कर लिया जाता है.
लो एंटीरियर रिसेक्शन – मिडल रेक्टम में ट्यूमर हो तो पेल्विस में थोड़ा डीप जाकर सर्जरी करनी पड़ती है. इसमें क्रिटिकल एरियाज में सर्जरी होती है. अगर सर्जरी से पहले कीमोथेरैपी या रेडिएशन हुआ है तो डाइवर्जन स्टोमा की जरूरत होती है ताकि हीलिंग सपोर्ट मिल सके. स्टोमा यानी एक हिस्सा खुला रखा जाता है जिससे मल शरीर से बाहर निकल सके.
एक्सटेंडेड या अल्ट्रा लो एंटीरियर रिसेक्शन – इस सर्जरी में एक्सटर्नल स्फिंक्सटर के पास मौजूद ट्यूमर को हटाने की कोशिश की जाती है. इसमें परमानेंट स्टोमा के रिस्क को बचाते हुए स्फिंस्टर को बचाने की कोशिश की जाती है.
एब्डोमिनोपेरिनियल रिसेक्शन – अगर कैंसर ट्यूमर स्फिंस्टर मसल्स में फैल जाता है तो स्फिंस्टर मसल्स को बचाना मुश्किल होता है. इसमें परमानेंट स्टोमा होता है यानी पूरे रेक्टम और स्फिंस्टर मसल्स को हटा दिया जाता है. यह जिंदगी को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली सर्जरी है इसीलिए इस सर्जरी को तब ही किया जाता है जब इसकी बहुत ज्यादा जरूरत होती है.
किन लोगों को मलाशय के कैंसर का खतरा रहता है
- जिन लोगों की डाइट खराब है.
- मोटापा इस कैंसर की वजह बन सकता है.
- जो लोग एक्टिव नहीं रहते और किसी तरह की फिजिकल एक्टिविटी नहीं करते.
- स्मोकिंग या एल्कोहल का सेवन.
- रेक्टल कैंसर का रिस्क 50 साल की उम्र के बाद ज्यादा देखा जाता है.
- परिवार में अगर किसी को कैंसर हुआ हो.
- जेनेटिक्स के चलते भी यह कैंसर हो सकता है.
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