Antibiotics Effect (Pallavi Jha): विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर के दुनिया के तमाम विषयाज्ञयों की चिंता अब एंटीबायोटिक्स के दुरुपयोग से हो रहे नुकसान को लेकर है। इंफेक्शन में जान बचाने में एंटीबायोटिक को सबसे बड़ा मेडिकल हथियार माना जाता रहा है वो अब बेअसर होने लगा है। ऐसे में इफेक्टिव एंटीबायोटिक केवल 20 परसेंट में कारगर है यानी बाकी बचे 60 से 80 परसेंट इन्फेक्टेड लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। हाल ही में एम्स ट्रामा के डॉक्टरों ने शोध में पाया कि वेंटिलेटर निमोनिया जो पहले से 6 से 8 परसेंट था, वो आज भी उतना ही है। इसमें कोई कमी नहीं आई है।
AIIMS के डॉक्टरों ने क्या कहा?
एम्स के ट्रॉमा सेंटर की प्रो. डॉ पूर्वा माथुर कहा कि सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ब्लड से रिलेटेड इंफेक्शन में 70 परसेंट तक मौत का खतरा है। वहीं जिन्हें एंटीमाइक्रोबियल इंफेक्शन हो रहा है यानी एंटी बैक्टीरिया, एंटी पैरासाइट, एंटी वायरल, एंटी फंगल इंफेक्शन हो रहा है उनमें 60 परसेंट तक एंटीबायोटिक्स रजिसटेंस हो गया है। ऐसे 40 परसेंट मरीजों में ही इलाज संभव हो पा रहा है।
वहीं एम्स ट्रॉमा सेंटर के चीफ डॉ कामरान फारूकी के मुताबिक़ ये समस्या ग्लोबल चिंता की बात है। एक दशक से कोई नई दवा नहीं आई है। इसलिए डॉक्टरों को फीवर, सर्दी, जुकाम जैसी परेशानी में एंटीबायोटिक्स नहीं देना चाहिए, बिना वजह हाई डोज में जंप नहीं करना चाहिए और मरीजों को भी यह समझना चाहिए कि जितना इस्तेमाल करेंगे, आगे उतना इसका असर कम होगा।
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बहरहाल अगर ऐसे ही एंटीबायोटिक्स का गलत इस्तेमाल होता रहा तो एम्स ट्रॉमा सेंटर के एक्सपर्ट का कहना है कि एंटी माइक्रोबियल इंफेक्शन के मरीजों के इलाज के लिए विकल्प नहीं बचेगा जो सबसे बड़ी चिंता की बात है।