Antibiotics Side Effects: एंटीबायोटिक्स यानी ऐसी दवाइयां जो बैक्टीरिया से पैदा हुए संक्रमणों को खत्म करने के लिए खाई जाती हैं। ये 20वीं सदी की सबसे बड़ी मेडिकल रिसर्च में से एक मानी जाती हैं, जिनकी वजह से हमने निमोनिया, टाइफाइड, टीबी जैसी घातक बीमारियों पर काबू पाया है। लेकिन अब यही दवाइयां एक नई और गंभीर चुनौती बनकर उभर रही हैं। भारत में इन दवाओं का सेवन बहुत अधिक हो गया है, जिस वजह से इसे डॉक्टरों द्वारा नया खतरा माना जा रहा है। मेडिकल वर्ल्ड में इसे एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस कहते हैं। आइए जानते हैं इस बारे में सबकुछ।
एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस क्या है?
जीवन कसारा, डायरेक्टर एंड सीईओ, स्टेरिस हेल्थकेयर बताते हैं कि यह वह स्थिति है जब बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ रिएक्ट करने लगता है। इसका नतीजा ऐसा होता है कि सामान्य एंटीबायोटिक्स अब बीमारियों पर असर नहीं करती हैं। यानी मरीज को अब और ज्यादा स्ट्रॉन्ग, ज्यादा महंगी और कई बार बेहद साइड इफेक्ट्स वाली एंटीबायोटिक्स दवाएं देनी पड़ती हैं। अगर यह स्थिति लगातार बनी रही, तो आने वाले सालों में साधारण संक्रमण भी जानलेवा साबित हो सकते हैं।
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भारत में यह समस्या क्यों गंभीर होती जा रही है?
1. बिना डॉक्टरी सलाह के दवाओं का सेवन
एक्सपर्ट ने इसके कई कारण बताए हैं, जैसे हमारे देश में लोग मेडिकल स्टोर से बिना पर्ची के दवा खरीद लेते हैं। बुखार, खांसी या वायरल संक्रमण के लिए भी एंटीबायोटिक ले ली जाती है, जबकि ऐसे मामलों में इसकी कोई जरूरत नहीं होती है। इससे शरीर में अनचाहे तरीके से एंटीबायोटिक्स पहुंच जाती हैं और बैक्टीरिया धीरे-धीरे उन पर असर देना बंद कर देते हैं।
2. दवा का पूरा कोर्स ना करना
अक्सर देखा गया है कि मरीज डॉक्टर द्वारा बताए गए 5 या 7 दिन के कोर्स को बीच में ही छोड़ देते हैं। जैसे ही आराम महसूस होता है, दवा बंद कर दी जाती है। इससे शरीर में बचे हुए बैक्टीरिया और ताकतवर होकर लौटते हैं, जिससे फिर एंटीबायोटिक काम नहीं करती हैं।
3. पशुपालन और खेती में इस्तेमाल
भारत में मांस, पोल्ट्री और डेयरी उत्पादन में भी एंटीबायोटिक का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। जानवरों को तेजी से बढ़ाने और बीमारियों से बचाने के लिए इनका इस्तेमाल करना आम है। जब ऐसे मांस और उनके अन्य उत्पाद मानव शरीर में पहुंचते हैं, तो यह इंसानी शरीर को प्रभावित कर उसकी इम्यूनिटी कमजोर कर देते हैं।
क्या है इसके नुकसान?
- सामान्य बीमारियों का इलाज करना मुश्किल हो जाएगा।
- अस्पताल में मरीजों के भर्ती रहने की अवधि बढ़ सकती है, जिससे खर्च भी बढ़ेगा।
- दवाएं महंगी और जटिल होती जाएंगी।
- गंभीर संक्रमणों से मृत्यु दर में इजाफा होगा।
- सर्जरी या कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज का असर भी धीमा हो सकता है।
बचाव के उपाय
- एंटीबायोटिक तभी लें जब डॉक्टर उसे प्रिस्क्राइब करें।
- पूरा कोर्स कम्पलीट करें, भले ही बीमारी पहले ही खत्म हो जाए।
- कभी भी किसी और की बची हुई दवाएं न खाएं।
- बच्चों, बुजुर्गों और पूरे परिवार को इस बारे में जागरूक करें।
- सरकार और हेल्थ सेक्टर भी मिलकर नियम और जागरूकता अभियानों को तेज कर सकते हैं, ताकि ओवरऑल हेल्थ में लोगों का फायदा हो सके।
जरूरी सलाह
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस एक धीमा लेकिन घातक खतरा है जो हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है। यह सिर्फ डॉक्टरों या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक को जागरूक और जिम्मेदार बनना होगा। हमें यह समझना होगा कि एंटीबायोटिक कोई सामान्य दवा नहीं है। इसका आए दिन या रोजाना इनटेक शरीर के लिए खतरनाक है।
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