Jyotish Tips: आपको ऑफिस की कैंटीन में चाय पीनी हो या परिवार के लिए बड़ा सा बंगला और कार लेनी हो, पैसे की जरूरत हर जगह पड़ती है। बिना पैसे इस पृथ्वी पर जीवन की कल्पना करना भी असंभव सा लगता है। यही कारण है लोग हरसंभव तरीके से पैसा पाना चाहते हैं। सौभाग्य से ज्योतिष में इसके लिए सरल और तुरंत प्रभावकारी तरीके भी बताए गए हैं।
हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी और देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को धन का देवता माना गया है। यदि इन दोनों की सही तरह से आराधना की जाए तो निश्चित रूप से धन पाया जा सकता है। इनमें भी मां लक्ष्मी की आराधना बहुत ही आसान और सरल है। यदि आप केवल मात्र लक्ष्मी जी की एक स्तुति श्रीसूक्त (Sri Suktam) को रोजाना पढ़ लें तो भी काम हो जाएगा।
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श्रीसूक्त और लक्ष्मी सूक्त के पाठ से मिलेगा धन का वरदान
ऋग्वेद में लक्ष्मीजी की आराधना के लिए श्रीसूक्त नाम की एक स्तुति दी गई है। इस स्तुति में मां लक्ष्मी के विभिन्न रूपों का स्मरण कर उन्हें प्रणाम किया गया है, उनकी प्रार्थना की गई है और उनसे आशीर्वाद मांगा गया है। यह एक बहुत ही छोटी सी स्तुति है। ज्योतिषाचार्य एम.एस. लालपुरिया के अनुसार यदि प्रतिदिन इसका पाठ किया जाए तो भी व्यक्ति के दिन फिरने लगते हैं। यदि व्यक्ति श्रीसूक्त के साथ-साथ लक्ष्मी-सूक्त का भी पाठ करें तो अधिक फलदायी होता है।
शुक्रवार को ऐसे करें पाठ, तुरंत मिलेगा फल (Jyotish Tips and Sri Suktam Mantra)
जो लोग धन पाना चाहते हैं, उन्हें शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की भगवान विष्णु सहित विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके बाद उन्हें मां को पीले पुष्प, माला, चावल आदि अर्पित करने चाहिए। उन्हें केसर मिश्रित खीर का भोग लगाएं, इसके बाद श्रीसूक्त का पाठ करें। पाठ करने के बाद यथासंभव गरीबों को भोजन दान दें। इस उपाय से घर में धन आने लगेगा। श्रीसूक्त स्रोत निम्न प्रकार है
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॥ श्री सूक्त ॥
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥1॥
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥4॥
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥8॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥9॥
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥12॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥13॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥14॥
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥15॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व ॥17॥
पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥18॥
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥19॥
पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥20॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना ॥21॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥22॥
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्त्या श्रीसूक्तजापिनाम् ॥23॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्र सीद मह्यम् ॥24॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥25॥
महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥26॥
आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः।
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मताः ॥27॥
ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥28॥
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥29॥
॥ ऋग्वेद वर्णित श्री सूक्त सम्पूर्ण ॥
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।