UP News: उत्तर प्रदेश (UP News) के बरेली (Bareilly) जिले में 31 साल बाद एक पीड़ित माता-पिता को इंसाफ मिला है। बरेली की एक कोर्ट ने बुधवार को रिटायर्ड सब-इंस्पेक्टर को 1992 में 21 वर्षीय छात्र की गोली मारकर हत्या करने और उसे लुटेरा बताने के मामले में दोषी ठहराया है। रिटायर्ड SI युधिष्ठिर सिंह अब 64 वर्ष के हैं। उन्हें शुक्रवार को जेल भेजा गया है।
पीड़ित परिवार की ओर से कहा गया है कि न्याय के लिए 31 साल से चल रही कानूनी लड़ाई आज खत्म हुई है। मारे गए युवक की मां मुकेश जौहरी और उसके बाद भाइयों ने ये लड़ाई लड़ी थी।
1992 में दरोगा ने किया था फर्जी एनकाउंटर
जानकारी के मुताबिक वर्ष 1992 में एक सब-इंस्पेक्टर (एसआई) द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मारे गए कॉलेज के एक छात्र की मां ने न्याय के लिए 31 साल तक लड़ाई लड़ी। इसके परिणाम स्वरूप बरेली की एक कोर्ट ने आरोपी पुलिसवाले को हत्या का दोषी करार दिया। अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश पशुपति नाथ मिश्रा की कोर्ट ने यह आदेश दिया।
मामले को लेकर कोर्ट में पेश हुए थे 19 गवाह
अतिरिक्त जिला सरकारी वकील, संतोष श्रीवास्तव ने मीडिया को बताया कि सेवानिवृत्त एसआई को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) में दोषी पाया गया है। इस मामले में आरोपी पुलिसवाले के खिलाफ पर्याप्त सबूतों के साथ 19 गवाह कोर्ट में पेश किए गए थे। घटना 23 जुलाई 1992 की है, जब बरेली के डिग्री कॉलेज के छात्र मुकेश जौहरी (21) की पुलिस वाले ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
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छात्र पर लगाया था शराब की दुकान लूटने का आरोप
मामले में एक सिपाही ने दावा किया था कि मुकेश एक शराब की दुकान लूट रहा था। कहा गया था कि इस दौरान आत्मरक्षा में उस पर गोली चला दी। बाद में पता चला कि एसआई ने वास्तव में किला थाने के अंदर उसे गोली मारी थी। फर्जी एनकाउंटर के बाद पुलिस ने मुकेश को हिस्ट्रीशीटर दिखाने की कोशिश की।
1997 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुआ था मुकदमा
मुकेश की मां ने लगभग एक दशक तक अपने मृत बेटे के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी। आखिरकार अक्टूबर 1997 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मामले में मुकदमा दर्ज किया गया। बाद में मामले की जांच सीबी-सीआईडी को सौंपी गई और 2004 में एसआई के खिलाफ चार्जशीट तैयार की गई।
बेटे के 3 माह बाद और 5 साल बाद मां की भी मौत
बेटे के लिए कानून की लड़ाई लड़ते-लड़ते अगस्त 2001 में 67 वर्षीय मां की मौत हो गई। इसके बाद परिवार के बाकी लोगों (भाइयों) ने इस मामले को आगे बढ़ाया। एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि मुठभेड़ के तीन महीने बाद मुकेश के पिता की भी मौत हो गई थी। मुकेश के पिता बरेली में एक राजपत्रित अधिकारी थे। परिवार की ओर से बताया गया था कि ने अपने बेटे को अचानक खोने के सदमे को झेल नहीं पाए।