Ghosi Bypoll Results: (ऋषिकेश कुमार): घमंड के घोड़े पर सवार यूपी के मऊ जिले के घोसी विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह को राजनीतिक जीवन की सबसे करारी शिकस्त मिली है। I.N.D.I.A गठबंधन के लिए यूपी में मऊ विधानसभा का उपचुनाव पहला लिटमस टेस्ट था, जिसमें I.N.D.I.A गठबंधन कामयाब रहा है।
उतने भी नहीं मिले, जितने से पहले जीते थे
2022 के विधानसभा चुनाव में बतौर सपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान (1,07,347 वोट) ने 22,000 वोटों से जीत दर्ज की थी। इस उपचुनाव में सपा के सुधाकर सिंह को आरएलडी और कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था। हैरानी की बात है कि दारा सिंह चौहान को इस उपचुनाव में बतौर उतने वोट भी नहीं मिले, जितना वोट 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को (85,894) मिले थे। घोसी के गली, चौक और चौबारों पर चुनाव प्रचार के दरम्यान ये नारा गूंज रहा था कि ‘योगी-मोदी से बैर नहीं, दारा तेरी खैर नहीं’। चुनावी नतीजों ने इस नारे की सारी हकीकत बयां कर दी है।
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फागू सिंह चौहान की रही है ये सीट
दरअसल, घोसी विधानसभा बिहार के पूर्व राज्यपाल रहे फागू सिंह चौहान की परंपरागत सीट रही थी। बिहार का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद 2019 के विधानसभा उपचुनाव में विजय कुमार राजभर को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था तो सपा ने सुधाकर सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन सुधाकर सिंह तब के चुनाव में दो नामांकन का सेट दाखिल किए थे, जिसमें एक नामांकन पत्र रद्द होने की वजह से सुधाकर सिंह निर्दलीय प्रत्याशी बने थे।
लोग समझ गई मौकापरस्ती!
चुनाव में विजय राजभर को जीत मिली थी। घोसी विधानसभा के उपचुनाव में दारा सिंह चौहान की हार की वजह के पीछे उनकी राजनैतिक मौकापरस्ती को माना जा रहा है। दारा सिंह चौहान ने राजनैतिक करियर में सात बार दल बदला है। बीजेपी, सपा, कांग्रेस, बसपा सभी पार्टियों में रहकर वो सता की मलाई खाते रहे हैं। अपने राजनीतिक करियर में दारा सिंह लोकसभा सांसद, राज्यसभा सांसद, विधायक, कैबिनेट मंत्री रहे।
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भारी पड़ी सत्ता में हिस्सेदारी की मांग
2017 से 2022 तक योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहने के बाद चुनाव के ठीक पहले सपा का दामन थाम कर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन फिर से सत्ता में हिस्सेदारी की चाह में इस बार उनका बेड़ा गर्क हो गया। चुनावी नतीजों के तुरंत बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि वो भले ही एक विधानसभा सीट जीते हैं, लेकिन इन नतीजों में कई सारे मंत्रियों की हसरत भी हारी हैं। घोसी का चुनावी नतीजा भाजपा के अहंकार और घमंड को चकनाचूर करने वाला है।
क्या होगा ओपी राजभर का?
सबसे मजेदार बात हाल ही में पाला बदले वाले ओमप्रकाश राजभर का हाल-ए-सूरत का है। सबसे ज्यादा राजनीतिक हर्जाना इस हार का उन्हें की चुकाना है। लोकसभा 2024 के चुनाव में उनकी मोल-तोल कितना प्रभावी होगा इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। क्या वे योगी कैबिनेट में मंत्री बनेंगे? बनेंगे तो क्या उन्हें भारी वजन वाला मंत्रालय मिलेगा? एनडीए गठबंधन को राजभर पूर्वांचल में कितनी मजबूती दे पायेंगे। इन सवालों पर बहसों का नया दौर इस चुनावी नतीजों ने शुरू कर दिया है।