Political Journey Of Nitish Kumar : जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के प्रमुख नीतीश कुमार ने रविवार की सुबह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और शाम होते-होते फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। अंतर केवल इतना रहा कि पहले बिहार में सरकार नीतीश की जदयू और लालू प्रसाद यादव की जदयू की थी जो विपक्षी गठबंधन का हिस्सा थे। अब राज्य में सरकार केंद्र में सत्ताधारी भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए की है।
"केंद्र और राज्य में एन०डी०ए० गठबंधन की सरकार होने से विकास कार्यों को गति मिलेगी"
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— News24 (@news24tvchannel) January 28, 2024
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72 साल के नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। अनुभवी समाजवादी और 1974-75 के जेपी आंदोलन से निकले नीतीश ने लंबा राजनीतिक सफर तय किया है। वह उस दौर से काफी आगे निकल आए हैं जब पहले वह लालू प्रसाद की छाया में थे और फिर समता पार्टी में जॉर्ज फर्नांडिस की। समता पार्टी नीतीश और फर्नांडिस ने 1994 में बनाई थी, जो साल 1995 के चुनाव में केवल सात सीटें जीत पाई थी।
2007 में बने सीएम, 7 दिन चली सरकार
साल 1996 में नीतीश भाजपा के साथ जुड़े थे। साल 2007 में एनडीए के साथ रहते हुए वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि, यह सरकार केवल सात दिन चल पाई थी लेकिन बिहार की जनता को लालू प्रसाद यादव का विकल्प जरूर मिल गया था। इसके बाद से ही नीतीश कुमार अपने पत्ते अलग ही तरीके से खेलते आ रहे हैं और राजनीति के मैदान में उसी को पार्टनर चुन रहे हैं जिसका सामाजिक आधार ज्याजा मजबूत है।
2013 में नीतीश ने तोड़ा भाजपा से रिश्ता
पाला पदलने की बात की जाए तो नीतीश के लिए यह कुछ नया नहीं है। जून 2013 में उन्होंने पहली बार भाजपा का साथ छोड़ा था और विपक्ष के साथ चले गए थे। तब यह साफ हो गया था कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार होंगे। यह भी स्पष्ट हो गया था कि एनडीए नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरा नहीं बनाएगी जो कि नीतीश की पुरानी इच्छा कही जाती है।
2017 में फिर जुड़े, 2022 में फिर अलग
लेकिन, साल 2017 में वह फिर भाजपा के साथ आ गए थे और सरकार बनाई थी। एनडीए में 2019 लोकसभा चुनाव तक सब ठीक चलता रहा। इसमें भाजपा ने 17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे और सभी पर जीत हासिल की थी। वहीं जदयू ने 17 में से 16 सीटे जीती थीं। तब नीतीश को लगा कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं विपक्ष के साथ ज्यादा सच हो सकती हैं। इसे देखते हुए उन्होंने फिर पाला बदलने का विचार बनाया।
अगस्त 2022 में नीतीश ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से फिर हाथ मिलाया और महागठबंधन में शामिल हो गए। मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश के पास ही रही। अब जब बिहार में भाजपा अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है, उसे पता है कि नीतीश के एनडीए में होने का क्या मतलब है। विपक्षी गठबंधन INDIA की स्थिति देखकर नीतीश कुमार ने चुनावी मिजाज को समझा और रविवार को एक बार फिर से भाजपा से अपना नाता जोड़ लिया।
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