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Bihar में 75% आरक्षण का बिल पास, पर क्या लागू हो पाएगा? राहें कितनी मुश्किल, कौन-सी दिक्कतें आएंगी?

Bihar 75% Reservation Bill: बिहार में 75 फीसदी जातिगत आरक्षण का बिल तो पास हो गया है, लेकिन क्या यह आरक्षण व्यवस्था लागू हो पाएगी? क्या चुनौतियों रहेंगी, जानिए?

Author Edited By : Khushbu Goyal Updated: Nov 10, 2023 11:06
CM Nitish Kumar
CM Nitish Kumar

Bihar 75% Reservation Bill Passed: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा दांव खेला है। उन्होंने प्रदेशवासियों को 75 फीसदी आरक्षण दिया है। बिल सर्वसम्मति से विधानसभा में पास भी हो गया। ऐसे में नीतीश सरकार ने बिहार में जातिगत आरक्षण का दायरा 65 फीसदी करने और आरक्षण को 75 फीसदी तक ले जाने का फैसला किया है। नए आरक्षण बिल के तहत बिहार में अब पिछड़ा वर्ग को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को मिलेगा। पिछड़ा वर्ग OBC के लिए 18 फीसदी, अति पिछड़े वर्ग OBC के लिए 25 फीसदी, SC के लिए 20 फीसदी और ST के लिए 2 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव पास हुआ। इसमें EWS का 10% आरक्षण जोड़ दिया जाए तो कुल आरक्षण का प्रतिशत 75 फीसदी हो जाएगा, लेकिन आरक्षण का यह प्रस्ताव क्या लागू हो पाएगा? क्या दिक्कतें आएंगी जानिए…

 

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सुप्रीम कोर्ट के अनुसार 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था

बता दें कि देश में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राज्यों में 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू है। 1992 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इंदिरा साहनी केस में फैसला सुनाते हुए 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं देने का नियम बनाया। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी ही तय कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कानून बन गया कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता, लेकिन इस कानून के बावजूद तमिलनाड़ू और झारखंड में 50 प्रतिशत से ज्यादा जातिगत आरक्षण दिया जाता है। अब बिहार में इसमें शामिल हो गया। ऐसे में बिहार सरकार के 75 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को कोर्ट में चुनौती मिल सकती है, लेकिन विशेष उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु में 1994 से लागू 69% आरक्षण पर अब तक कोर्ट का फैसला नहीं आया है।

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सुप्रीम कोर्ट के गुस्से का कई राज्य बन चुके शिकार

जातिगत आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं दिया जा सकता, लेकिन नियम के बावजूद ज्यादा आरक्षण देने पर कई राज्यों को सुप्रीम कोर्ट के गुस्से का शिकार होना पड़ा। आंध्र प्रदेश सरकार ने साल 1986 में जातिगत आरक्षण बढ़ाने का फैसला लिया, लेकिन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग लंबे समय से की जा रही है। 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठों को 16 फीसदी आरक्षण दिया था, लेकिन जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरक्षण घटाकर इसे शिक्षा के क्षेत्र में 12 प्रतिशत और नौकरी में 13 प्रतिशत कर दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी। अब राज्य में EWS कोटे को मिलाकर 62 प्रतिशत आरक्षण है, जो तय सीमा से 2 प्रतिशत ज्यादा है।

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75 फीसदी आरक्षण एक तरीके से हो सकता लागू

मध्य प्रदेश में साल 2019 में नौकरियों में 73 प्रतिशत आरक्षण लागू हुआ था, लेकिन पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण व्यवस्था पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा राजस्थान, झारखंड राज्यों में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने का मामला कोर्ट में लंबित है। इस सूची में अब बिहार भी शामिल हो गया, जिसके आरक्षण प्रस्ताव को भविष्य में कोर्ट में चुनौती मिल सकती है, फिर भी एक रास्ता है, जिस पर चलकर बिहार 75 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू कर सकता है। संविधान की 9वीं अनुसूची के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को कुछ अधिकार मिले हैं, जिन्हें कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। संविधान के अनुच्छेद 31ए और 31बी के तहत इन अधिकारों को संरक्षण शामिल है। कोई इन अधिकारों का हनन करेगा तो कोर्ट उसे रद्द कर सकती है। तमिलनाड़ू सरकार ने इसी का फायदा उठाकर राज्य में 69 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। ऐसे में बिहार भी इस रास्ते को अपना सकता है।

First published on: Nov 10, 2023 10:59 AM

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