Ever Green Tree: राजस्थान और गुजरात के रेगिस्तानी इलाकों में एक ऐसा पेड़ है, जो गर्मी, सूखा, और अकाल के बावजूद कभी नहीं सूखता। यह पेड़ हमेशा हरा-भरा रहता है और इसके नीचे रहने वालों के लिए यह जीवन का सहारा बनता है। रेगिस्तान में इसकी छांव और इसके फल, फूल, पत्ते, लकड़ी सबकुछ जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। क्या आप जानते हैं, इस पेड़ ने एक समय अकाल के दौरान इंसानों और जानवरों का पेट भी भरा था? आइए जानते हैं इस अद्भुत पेड़ के बारे में…
इस पेड़ का क्या नाम है
दुनिया में एक ऐसा पेड़ है, जो गर्मी या अकाल के बावजूद कभी नहीं सूखता। यह पेड़ हमेशा हरा-भरा रहता है और इसके पत्ते पूरे साल निकलते रहते हैं। इस पेड़ का नाम है खेजड़ी, जिसे शमी के पेड़ भी कहते हैं। यह पेड़ खासतौर पर राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे रेगिस्तानी इलाकों में पाया जाता है। खेजड़ी का पेड़ न केवल प्राकृतिक रूप से हरा-भरा रहता है, बल्कि यह रेगिस्तान में रहने वाले लोगों और जानवरों के लिए जीवनदायिनी साबित होता है।
खेजड़ी का महत्व रेगिस्तानी इलाकों में
खेजड़ी के पेड़ का महत्व रेगिस्तान में रहने वाले लोगों के लिए अत्यधिक है। चाहे गर्मी कितनी भी बढ़ जाए, यह पेड़ धूप से बचने का ठिकाना देता है और उसके नीचे छांव मिलती है। इसके फल, फूल और पत्ते लोग खाते हैं। खेजड़ी के फूल को मींझर और फल को सांगरी कहा जाता है, जो खासतौर पर सब्जी बनाने में इस्तेमाल होते हैं। जब फल सूखकर खोखा बन जाते हैं, तो इसे मेवा के रूप में खाया जाता है। इसके अलावा, खेजड़ी के पेड़ की लकड़ी भी बहुत मजबूत होती है, जो जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है।
अकाल के समय खेजड़ी का योगदान
अकाल के समय, खेजड़ी के पेड़ ने रेगिस्तान के लोगों को बहुत मदद दी है। 1899 में छपनिया अकाल के दौरान लोग इस पेड़ के तनों के छिलके, फूल और फल खाकर जिंदा रहे थे। इसके अलावा, खेजड़ी के पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार भी ज्यादा होती है, जिससे किसानों को फायदा होता है। इस पेड़ के महत्व को देखते हुए यह कहा जाता है कि रेगिस्तान में खेजड़ी का पेड़ जीवन का सहारा है।
खेजड़ी पेड़ की रक्षा में बलिदान
इस पेड़ को बचाने के लिए एक प्रचलित कहानी भी है। सन् 1730 में, जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया था। लेकिन खेजड़ली गांव की अमृता देवी और उनके परिवार ने इन पेड़ों की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। उनके बलिदान को देखकर गांव के 363 लोगों ने भी अपनी जान दी, ताकि खेजड़ी के पेड़ बच सके। इस घटना को आज भी लोग श्रद्धा से याद करते हैं और यह दर्शाता है कि खेजड़ी के पेड़ का जीवन में कितना महत्व है।