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चुनाव आयोग ने किस तरह से किया भारत में लोकतंत्र को मजबूत?

Bharat Renaming Row How Election Commission strengthen democracy: मैं हूं अनुराधा प्रसाद। आजादी के अमृत काल में दुनिया के सबसे बुलंद गणतंत्र और मुखर लोकतंत्र के पास गर्व करने की कई वजह है तो कई ऐसे सवाल भी हैं, जिनका समय के साथ जवाब खोजा जाना जरूरी है। पिछले 75 वर्ष यानी आजादी के बाद […]

Edited By : Bhola Sharma | Updated: Sep 16, 2023 21:00
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Anurradha Prasad Show

Bharat Renaming Row How Election Commission strengthen democracy: मैं हूं अनुराधा प्रसाद। आजादी के अमृत काल में दुनिया के सबसे बुलंद गणतंत्र और मुखर लोकतंत्र के पास गर्व करने की कई वजह है तो कई ऐसे सवाल भी हैं, जिनका समय के साथ जवाब खोजा जाना जरूरी है। पिछले 75 वर्ष यानी आजादी के बाद पैदा पीढ़ियों को अगर भारत की प्राचीन आश्रम व्यवस्था के लिहाज से देखा जाए तो 1950 के दशक में पैदा पीढ़ी संन्यास आश्रम में है। 1970 के दशक में पैदा लोग वानप्रस्थ आश्रम में, 1990 के दशक में पैदा गृहस्थ आश्रम में और सन 2000 के बाद पैदा ब्रह्मचर्य से गृहस्थ आश्रम की ओर बढ़ रहे हैं यानी चार पीढ़ियों ने भारत में बदलाव के कई रंगों को बहुत करीब से महसूस किया है। उनकी जिंदगी पर देश में हुए बदलावों की गहरी छाप रही है। आजादी के अमृत काल में पैदा बच्चे अगले 25 वर्षों में किस सोच और संस्कृति के साथ आगे बढ़ेंगे, भारत कितना आगे जाएगा? ये बहुत हद तक उन बदलावों पर निर्भर करेगा, जिसका बीजारोपण किया जा रहा है? संसद के स्पेशल सेशन का एजेंडा अब साफ है, इसमें Parliamentary Journey of 75 years starting from Samvidhan Sabha– Achievements, Experiences, Memories and Learnings पर चर्चा होगी। संसद की पुरानी बिल्डिंग से नई इमारत की ओर प्रस्थान की घड़ी भी आ चुकी है।

ऐसे में आज मैं आपको बताने की कोशिश करूंगी कि जिस मुकद्दस संविधान के दम पर हमारा लोकतंत्र तमाम चुनौतियों को झेलते हुए इतनी मजबूती से खड़ा है, उसे तैयार करने वाली संविधान सभा में किस सोच के लोग मौजूद थे? उनका IDEA OF BHARAT कैसा था? इतनी विविधता वाले विशालकाय भारत को मजबूती से जोड़े रखने के लिए संविधान सभा में किस तरह विवादित मुद्दों पर मंथन हुआ और जो अमृत निकला, वो संविधान के रूप में किस तरह से भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को लगातार मजबूत करता रहा है? आजादी के अमृत काल में कुछ ऐसे मुद्दों पर संविधान सभा में हुई बहस को जानना भी जरूरी है, जिससे शायद नई पीढ़ी परिचित न हो, जिसे आज की तारीख में नए लेंस से देखने की कोशिश हो रही है? इतिहास को नए सिरे से लिखने और पुरानी परंपराओं को दोबारा परिभाषित करने की कोशिश हो रही है। ये समझना भी जरूरी है कि विवादित मुद्दों को तूल देने की जगह संविधान निर्माताओं ने किस तरह सहमति बनाने की कोशिश की…ऐसे ही कुछ अहम मुद्दों को पुराने और नए लेंस से देखने की कोशिश करेंगे अपने स्पेशल शो भारत एक सोच की आज की किस्त भारत का ‘चुनाव’ में।

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क्या चुनावी प्रक्रिया को अपग्रेड करने की जरूरत है?

संविधान सभा ने अपने दौर में हर मसले को तर्क और बातचीत के जरिए सुलझाने की कोशिश की। चाहे वो लोगों के हक से जुड़ा मसला हो या राज्य और केंद्र के बीच विवाद। अधिकारों का इस्तेमाल हो या अधिकारों की लक्ष्मण रेखा। भाषा का मसला हो या धार्मिक परंपराओं को लेकर तालमेल बैठाना। हर छोटे-बड़े मसले पर संविधान सभा ने बहुत गंभीरता और दूर की सोच के साथ रास्ता निकला। संविधान सभा ने भारत के लोगों को आजादी की आबोहवा में जिस तरह से जीने का तौर-तरीका निकाला। उसमें समय-समय पर नई बहस के लिए पूरी जगह बनी। इन दिनों दो मुद्दों पर जोरदार बहस चल रही है। पहली, भारत बनाम इंडिया और दूसरी एक देश, एक चुनाव। संसद के स्पेशल सेशन में The Chief Election Commissioner & other Election commissioners बिल भी पेश करने की योजना है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार को मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा बिल संसद के विशेष सत्र में लाने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या सरकार को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में बड़ी खामी नज़र आ रही है? क्या संविधान निर्माताओं ने भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए जो व्यवस्था बनाई थी, उसे वक्त के साथ अपग्रेड करने की जरूरत है? ऐसे में सबसे पहले ये समझते हैं कि आखिर स्वतंत्र भारत में चुनाव जैसे मुद्दे को संविधान सभा ने किस तरह देखा?

किस तरह चुनाव आयोग ने निभाई भूमिका?

संविधान सभा ने बड़ी शिद्दत से भारतीय लोकतंत्र की कामयाबी के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग पर मुहर लगा दी। संविधान ने 26 जनवरी, 1950 को भारत को दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र तो बना दिया लेकिन, भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में तब्दील करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर थी। भारत में चुनावी ढांचा खड़ा करने का क्रेडिट कुछ हद तक अंग्रेजों को भी दिया जा सकता है लेकिन, विशालकाय स्वतंत्र भारत में चुनाव करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम था। संविधान में सबको बराबरी के आधार पर वोटिंग का अधिकार दिया गया। देश में कई ऐसे हिस्से भी थे, जहां लोग सदियों से अपने फैसले तीर-कमान, तलवार और भाला से किया करते थे लेकिन, संविधान निर्माताओं ने आजाद भारत में सत्ता से जुड़े अहम फैसले का अद्भुत रास्ता कबीलाई समाज के लोगों को वोट के जरिए दिखाया। ऐसे में आजादी के अमृत काल में ये जानना भी जरूरी है कि चुनाव आयोग ने भारतीय लोकतंत्र की कामयाबी में किस तरह दमदार भूमिका निभाई है।

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रामनाथ कोविंद की अगुवाई में बनी कमेटी

चुनाव आयोग समय-समय पर देश की चुनावी प्रक्रिया में सुधार के लिए कदम बढ़ाता रहा है। कई चुनाव आयुक्तों ने समय के साथ चुनावी प्रक्रिया को और पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने में अपनी चटक छाप छोड़ी है। ये संविधान सभा से निकली राह ही है, जिसमें जनता के फैसले को सत्ता के शीर्ष पर बैठे हर ताकतवर शख्स ने दोनों हाथ जोड़कर स्वीकार किया है। ये बुलंद भारत की निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया ही है, जिसमें इंदिरा गांधी जैसी ताकतवर शख्सियत को भी इमरजेंसी के बाद जनता सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा देती है और दो साल में ही दोबारा वापस सत्ता में बैठा देती है। जनता ने कभी किसी को प्रचंड बहुमत से सत्ता में बैठाया तो कभी गठबंधन सरकारों के प्रयोग के लिए भी मौका दिया। लोग स्वतंत्र होकर वोट की चोट से फैसला सुनाते रहे हैं। इसमें चुनाव आयोग और चुनाव आयुक्तों की भूमिका सिर्फ क्रिकेट मैच के अंपायर वाली रही है। लेकिन, मोदी सरकार एक देश, एक चुनाव की ओर बढ़ रही है। जिसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक कमेटी बनाई जा चुकी है। दूसरी ओर, मोदी सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के नियमों में बदलाव करने का बिल भी हाथ में लिए खड़ी है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार ऐसा क्यों कर रही है? क्या इससे चुनाव आयोग और लोकतंत्र मजबूत होगा?

ये है भारत बनाम इंडिया का मुद्दा

आजादी के अमृत काल में सत्ता में बैठे हुक्मरानों और विपक्ष में बैठे नेताओं के बीच ईमानदारी से इस बात पर सोच-विचार होना चाहिए कि चुनाव आयोग को किस तरह से और निष्पक्ष, और पारदर्शी, और ताकतवर बनाया जा सके। चुनाव आयोग आज भी एक बिना दांत और नाखून के शेर की तरह है, जो चुनावी मौसम में दहाड़ता जरूर है। लेकिन, चुनाव प्रचार के दौरान जुबानी जहर उगलने वाले नेताओं पर ठोस एक्शन नहीं ले पाता है। वोट के बदले जिस तरह मुफ्तखोरी की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसे रोकने के लिए भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। एक और मुद्दे ने हाल में बहुत जोर पकड़ा है। ये है भारत बनाम इंडिया का मुद्दा। ये मुद्दा देश के नाम से जुड़ा है। संविधान सभा के सामने भी ये गंभीर मसला आया। तब कुछ सदस्य इंडिया के पक्ष में दलील दे रहे थे। कुछ भारत की जोरदार वकालत कर रहे थे, कोई भारतवर्ष नाम रखने पर अड़ा था तो कोई संयुक्त राज्य भारत नाम फाइनल करने के लिए जोर दे रहा था। लंबी बहस के बाद संविधान के अनुच्छेद एक में लिखा गया INDIA THAT IS BHARAT। ऐसे में उस दौर में इंडिया और भारत को लेकर संविधान सभा में हुई बहस को भी समझना बहुत जरूरी है।

अक्सर लोग कहा करते हैं कि नाम में क्या रखा है? जैसा मैंने कार्यक्रम के शुरू में जिक्र किया था- भारतीय परंपरा में आश्रम व्यवस्था के हिसाब से देखा जाए तो ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास चारों आश्रम में खड़े लोगों के लिए भारत…इंडिया और चुनाव के मायने समय चक्र के साथ बदलते रहे हैं। लेकिन, अगर आप किसी चौक-चौराहे पर चल रही इंडिया बनाम भारत की बहस में उलझेंगे तो नाम में बहुत कुछ दिखाई देगा? दलील ये भी दी जाएगी कि इंडिया दैट इज भारत की जगह भारत दैट इज इंडिया भी तो हो सकता था। अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री और राजनीतिक विश्लेषक भी भारत और इंडिया पर बंटे हुए हैं। एक वर्ग के लिए इंडिया का मतलब देश का शहरी और चकाचौंध वाला अपर मिडिल क्लास है। दूसरे वर्ग के लिए भारत का मतलब गांवों में रहने वाली बड़ी आबादी है। वोट के तराजू पर देखें तो विशालकाय देश पर कौन हुकूमत करेगा, इसका फैसला करने में कौन दमदार भूमिका निभाता है, ये राजनीतिक पार्टियां अच्छी तरह जानती है । ऐसे में इंडिया बनाम भारत के बीच अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने का खुला खेल जारी है। ऐसे में ये भी सवाल बना हुआ है कि संसद की पुरानी बिल्डिंग से नई अत्याधुनिक इमारत में दाखिल होने के बाद मुकद्दस संविधान में कितना बदलाव होगा और उन बदलावों से पहले कितनी ईमानदारी से बहस होगी? पुरानी संसदीय परंपराओं में लोकतंत्र की मजबूती देखी जाएगी या समय के साथ बदलावों का हवाला देते हुए किनारे लगा दिया जाएगा?

स्क्रिप्ट-रिसर्च: विजय शंकर

 

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Edited By

Bhola Sharma

First published on: Sep 16, 2023 09:00 PM

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