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हेल्थ

National Autistic Pride Day 2025: अगर आपके बच्चे में भी दिखें ये 3 लक्षण, तुरंत कराएं जांच, हो सकता है ऑटिज्म

National Autistic Pride Day 2025: ऑटिज्म बच्चों में होने वाली एक हेल्थ प्रॉब्ल्म है, जो उनके व्यवहार से पता लगाई जा सकती है। मगर किसी को कैसे पता लगेगा कि उसके बच्चे को ऑटिज्म है? नेशनल ऑटिस्टिक प्राइड डे के अवसर पर जानिए इस रोग के बारे में विस्तार से।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Namrata Mohanty Updated: Jun 18, 2025 14:36

National Autistic Pride Day 2025: कई बार हमें कुछ ऐसी समस्याएं या बीमारी हो जाती है, जिसके बारे में न तो हम कुछ जानते हैं और न ही उसे समझ पाते हैं। वैसे ही बच्चों को भी एक समस्या होती है-जिसे ऑटिज्म कहते हैं। हालांकि, यह रोग किसी को भी हो सकता है लेकिन इसकी शुरुआत बचपन में ही होती है। अगर इसकी रोकथाम या नियंत्रण करना है, तो माता-पिता को अपने बच्चे के अंदर दिख रहे बदलावों को समझने की जरूरत होती है। आज नेशनल ऑटिस्टिक प्राइड डे के मौके पर चलिए जानते हैं माता-पिता कैसे बच्चे के अंदर इस बीमारी की पहचान कर सकता है।

क्या है ऑटिज्म?

ऑटिज्म एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिजीज होता है। यह मस्तिष्क के कार्यों को प्रभावित करता है। जो बच्चे या लोग इस रोग से पीड़ित होते हैं, उनका व्यवहार बाकियों की तुलना में काफी अलग होता है। यह जन्मजात बीमारी होती है। हालांकि, इसे मेंटल हेल्थ से संबंधित बीमारियों की श्रेणी में ही रखा जाता है।

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भारत में ऑटिज्म का आंकड़ा

भारत में हर 68 में से 1 बच्चे को ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) होने का खतरा बना रहता है। यह एक न्यूरो-डेवलपमेंटल विकार है, जो व्यक्ति के बात करने में, सामाजिक व्यवहार और बर्ताव को प्रभावित करता है। यह आंकड़ा वैश्विक ट्रेंड से मेल खाता है, लेकिन हमारे देश की सामाजिक और चिकित्सकीय स्थिति इसे एक अनूठी चुनौती बना देती है। हाल के अध्ययनों से भी यह पता चलता है कि भारत में ऑटिज्म की दर वैश्विक स्तर के समान ही है। वहीं, देश के कई हिस्सों में न्यूरोडायवर्स बच्चों को समय पर पहचान, थेरेपी और सामुदायिक सहयोग नहीं मिल पाता।

आकाश हेल्थकेयर की पीडियाट्रिक्स एवं नियोनेटोलॉजी की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. मीना जे बताती हैं कि विशेषज्ञों का मानना है कि ऑटिज्म में मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना उतना ही जरूरी है, जितना कि व्यवहार से जुड़ी समस्याओं का इलाज। ऑटिज़्म से जूझ रहे कई बच्चे और वयस्क चिंता, डिप्रेशन, मूड स्विंग्स और भावनात्मक असंतुलन का सामना करते हैं, क्योंकि वे अपने भाव ठीक से जाहिर नहीं कर पाते या सामाजिक परिस्थितियों को समझ नहीं पाते।

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एक्सपर्ट क्या बताते हैं?

डॉ. मीना जे कहती हैं अगर मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को नजरअंदाज किया गया तो इससे बच्चों की सीखने की क्षमता, रिश्ते और ओवरऑल ग्रोथ को प्रभावित कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए सहयोग केवल दवाओं या थेरेपी रूम तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसमें परिवार, स्कूल और समाज को भी शामिल करना जरूरी है।

ये 3 लक्षण सबसे आम

  • भाषा सीखने में दिक्कत
  • छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होना
  • नींद ना आना

कैसे होगी रोकथाम?

डॉ. प्रवीण गुप्ता नोएडा के सीनियर और मशहूर न्यूरोलॉजिस्ट बताते हैं कि मिथकों को तोड़ने और शुरुआती पहचान को बढ़ावा देने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाएं जाने चाहिए। इसके लिए कुछ जरूरी काम करने की जरूरत है, जैसे-

  • शिक्षकों और काउंसलरों द्वारा स्कूल पर स्क्रीनिंग हो, जहां बीमारी के बारे में बताया जाए।
  • सरकारी फंडिंग बढ़े ताकि परामर्श और थेरेपी को व्यापक स्तर पर सभी के लागू किया जा सके।
  • 2 से 5 साल की उम्र में दिखने वाले संकेतों को समझकर शुरू में ही स्पीच, बिहेवियरल और सोशल स्किल्स थेरेपी से बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • छोटे शहरों और गांवों में टेलीसेशंस और पैरेंट ट्रेनिंग के जरिए इलाज मुहैय्या करवाया जा सके।

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Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से राय अवश्य लें। News24 की ओर से जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।

First published on: Jun 18, 2025 02:36 PM

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