Dharmendra Bollywood Struggle: ‘मैं जट यमला पगला दीवाना’, ‘बस इत्ती सी बात ना जाना, ये लाइन्स पढ़कर आप समझ ही गए होंगे कि यहां बात हो रही है लेजेंड्री एक्टर धर्मेंद्र की।
धर्मेंद्र, इंडस्ट्री का वो सितारा हैं, जिन्होंने बिना किसी जान-पहचान और बिना किसी गॉडफादर के सिनेमा में अपना वो मुकाम बनाया, जिसे पूरी दुनिया सलाम करती है। धर्मेंद्र के इसी विश्वास और लगन ने उन्हें आज लेंजेंड्री एक्टर बना दिया, लेकिन एक वक्त वो भी था, जब धर्मेंद्र सिर्फ एक नाम था एक ऐसे लड़के का जो पंजाब के गुरदासपुर के एक किसान के घर जन्मा था।
पिता से छुप-छुपकर फिल्में देखा करते थे धर्मेंद्र
धर्मेंद्र को बचपने से फिल्मों से लगाव रहा है, वह अपने पिता से छुप-छुपकर फिल्में देखा करते थे। धीरे-धीरे उनका मन पढ़ाई में कम और फिल्मों की ओर ज्यादा आकर्षित होने लगा। फिल्मों को लेकर उनका क्रेज इस बात से ही पता चलता है कि 1949 में आई फिल्म दिल्लगी को उन्होंने तकरीबन 40 बार से ज्यादा देखा।
दिलीप कुमार की फिल्में देखने का था चसका
वह सबसे ज्यादा दिलीप कुमार की फिल्में देखा करते थे, उन्हें दिलीप कुमार की फिल्में देखना इस कदर पसंद था, कि वह अपने घरवालों से छुपकर उनकी फिल्में देखा करते थे।
धर्मेंद्र बचपन से ही दिलीप कुमार के फैन रहे है। दिलीप कुमार को एक्टिंग करते देख उनके मन में भी यही कसक उठने लगी कि वह भी सिनेमा में एक्टिंग करना चाहते हैं और सिनेमा के लिए उनकी यही चाहत उन्हें मुंबई खींच लाई।
पढ़ने की बजाए सिनेमा हॉल पहुंच जाया करते थे धर्मेंद्र
मन में हीरो बनने का सपना लिए धर्मेंद्र अक्सर क्लास में पढ़ने की बजाए सिनेमा हॉल पहुंच जाया करते थे। अपने सपनों को सच करने की चाह रखने वाले केवल मेट्रिक पास धर्मेंद्र बिना किसी प्लानिंग के मुंबई पहुंच गए।
मुंबई में न ही वह किसी को जानते थे और ना ही मुंबई में उनका कोई सगा, संबंधी या फिर दोस्त था। बस, यूं ही दिलीप कुमार जैसा बनने की चाह उन्हें मुंबई खींच लाई, क्योंकि उन्हें यह लगता था कि मुंबई नगरी में सब मिलता है बस सब्र करना होता है और यही बात धर्मेंद्र के मन में कहीं ना कहीं पिंच कर रही थी।
निर्माता-निर्देशक मारते थे ताने
जब धर्मेंद्र मुंबई आए तो उनके पास ना रहने का ठिकाना था और ना ही खाना खाने के लिए पैसे, ऐसे में धर्मेंद्र जहां भी खाना खाते उसे यही कहते कि बस सब्र करो पैसे आते ही सारे पैसे चुका देंगे। धर्मेंद्र ने मुंबई के हर फिल्म स्टूडियो के चक्कर लगाने शुरू कर दिए।
लगातार स्टूडियो के धक्के खाते रहे, लेकिन बात नहीं बनी। कोई कहता अपने गांव वापस चले जाओ, तो कोई कहता बॉक्सर बन जाओ। धर्मेंद्र की कदकाठी को देखकर ज्यादातर निर्माता-निर्देशक उन्हें काम देना तो दूर उन्हें ताने मारते रहते।
खर्चा चलाने के लिए गैरेज में काम किया
उनकी हट्टी-कट्टी लंबी बॉडी को देखकर सभी उन्हें एक्टर नहीं बल्कि बॉक्सर बनने की सलाह देते। कुछ लोग तो यह तक कह दिया करते थे कि तुम हीरो नहीं बन सकते इसलिए कुश्ती करो, लेकिन धर्मेंद्र ने हार नहीं मानी वह अपनी जिद के आगे डटे रहे।
अपना खर्चा चलाने के लिए उन्होंने गैरेज में काम किया और वहीं पर सो भी जाया करते थे। एक्टिंग के वक्त दो वक्त की रोटी जुटाना धर्मेंद्र के लिए मुश्किल हो रहा था, इसलिए कभी-कभी वह और पैसा कमाने के लिए ड्रिलिंग के काम के अलावा ओवर टाइम काम भी किया करते थे।
बतौर हीरो फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ में मिला काम
अब भी मंजील दूर थी, धर्मेंद्र का मन किसी काम में नहीं लग रहा था, क्योंकि वो तो मुंबई हीरो बनने की चाह में आए थे। आखिरकार उनका संघर्ष काम आया और उनकी लाइफ में वह सुनहरा दिन आ गया, जब उन्हें निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ मिली।
धर्मेंद्र ने फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ में बतौर हीरो काम मिला। इस फिल्म से बतौर हीरो धर्मेंद्र का सपना पूरा हुआ। इस फिल्म के बाद से धर्मेंद्र की लाइफ के सभी रास्ते खुलते चले गए। 1960 से लेकर 1970 के बीच धर्मेंद्र ने कई रोमांटिक फिल्में करी।
फिल्मी दुनिया में बनाई एक अलग पहचान
धर्मेंद्र ने अपने फिल्म करियर में कई तरह के रोल निभाए, फिर चाहें फिल्म ‘सत्यकाम’ में सीधे सादे ईमानदार हीरो का रोल हो, फिल्म ‘शोले’ में एक एक्शन हीरो का रोल हो या फिर फिल्म ‘चुपके चुपके’ में एक कॉमेडियन का रोल ही क्यूं ना हो।
धर्मेंद्र ने अपने फिल्मी सफर में हर तरह के रोल निभाए, जिन्हें लोगों ने खूब पसंद भी किया। 1962 में फिल्म ‘अनपढ़’, 1963 में ‘बंदिनी’ के अलावा ‘सूरत और सीरत’ धर्मेंद्र को निर्देशक ओ.पी.रल्हन की फिल्म ‘फूल और पत्थर’ ने फिल्मी दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई।
पांच दशकों के करियर में 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया
सबसे खास बात ये कि धर्मेंद्र अक्सर अपने एक्शन सींस खुद ही किया करते थे। वह अपनी फिल्म में अपने एक्शन सीन्स को किसी डुप्लीकेट की मदद से नहीं कराया करते थे। यहां तक कि निर्देशक चिनप्पा देवर की फिल्म ‘मां’ में उन्होंने खुद असलियत में एक चीते के साथ फाइट की थी।
बॉलीवुड के ही-मैन के नाम से फेमस धर्मेंद्र ने पांच दशकों के करियर में 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, उन्हें हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिला है। इसके अलावा धर्मेंद्र भारत की 15वीं लोकसभा के सदस्य रह चुके है। 2012 में उन्हें भारत सरकार की ओर से भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।