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कैसा होगा 2047 का विकसित भारत? कितने और क्यों अहम हैं अगले 23 साल?

Bharat Ek Soch: देश को साल 2047 का विकसित भारत बनाने का लक्ष्य तो साध लिया है, लेकिन यह लक्ष्य पूरा कैसे होगा? क्या-कैसी होगी 2047 के विकसित भारत की तस्वीर? किन तरीकों से देश को विकसित बनाया जा सकता है, आइए इस पर एक नजर डालते हैं...

Edited By : Anurradha Prasad | Updated: Jan 5, 2025 10:25
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Bharat Ek Soch

Bharat Ek Soch: समय किसी का इंतजार नहीं करता…बिना रुके, बिना थके आगे बढ़ता रहता है। जो समय का सही सदुपयोग करता है, कामयाबी उसी के कदम चूमती है। आपने भी अपने लिए सालभर, 5 सालए 10 साल या अगले 25 साल के लिए कुछ-न-कुछ टारगेट सेट किया होगा। उसे हासिल करने के लिए मेहनत कर रहे होंगे। इसी तरह हमारे देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे तो किसी भी देश के जीवनकाल में 25 या 50 साल का वक्त खास मायने नहीं रखता है, लेकिन जिस रफ्तार से विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में बदलाव हो रहा है। उसमें कुछ भी नामुमकिन नहीं है। विकसित भारत का काउंटडाउन जारी है, जिसमें हमारे पास 23 साल से भी कम का समय बचा है। अगले 23 साल हमारे खुद के लिए, हमारे देश के लिए कितने अहम हैं?

एक-एक सेकंड का किस तरह सदुपयोग होना चाहिए? हमारे देश के जीवट और मेहनती लोगों ने किस तरह से दुनिया की गलतफहमी को दूर किया है? अगले 25 साल बाद का विकसित भारत कैसा होगा? उसमें लोगों का रहन-सहन, पढ़ाई-लिखाई का तौर-तरीका किस तरह का होगा? विकसित भारत के शहर आज से कितने अलग होंगे? उसमें हवा आज की तरह ही प्रदूषित होगी या साफ होगी? किसानी की तस्वीर कितनी बदली-बदली दिखेगी? हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में महिलाओं की भूमिका किस तरह की होगी? विकसित भारत में बुर्जुगों की स्थिति क्या होगी? भारत के एक कॉमनमैन के लिए Developed India का मतलब क्या होगा और उसमें वह किस तरह की भूमिका निभाएगा? अगर 2025 में खड़े होकर दूरबीन से 2047 के भारत को देखने की कोशिश करें तो विकसित भारत की तस्वीर किस तरह की दिख सकती है? आइए जानते हैं…

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प्रति व्यक्ति आय विकसित देश का एक पैमाना

भारत के लोग कितने जीवट होते हैं? कितने साहसी, कितने स्वाभिमानी, कितने प्रयोगधर्मी होते हैं? इसकी अनगिनत कहानियां हमने सुनी, पढ़ी और देखी हैं। जब पूरी दुनिया बंदूक-तोप से जंग लड़ रही थी, तब महात्मा गांधी ने अहिंसा को अपना हथियार बनाया और ताकतवर ब्रिटिश हुकूमत को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। आजादी के समय पश्चिम के पॉलिटिकल पंडितों ने कुछ वर्षों में ही भारत के बिखरने की भविष्यवाणी की, लेकिन पिछले 77 वर्षों से हम न सिर्फ एकजुट हैं, बल्कि मजबूत हुए हैं। आजादी के समय भारत की आबादी 34 करोड़ थी, जिसमें से 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे। हर 10 में से 8 आदमी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-बसर कर रहे थे। तब साइकिल और छाता रईसों के इस्तेमाल की चीज हुआ करता था। आज शहरों में कार खड़ी करने के लिए जगह कम पड़ रही है।

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1947 में एक भारतीय की औसत सालाना कमाई 274 रुपये थी, जो 2023-24 में बढ़कर 2.12 लाख तक पहुंच गई है, लेकिन आपको पता है कि भारत को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने के लिए अगले 23 साल में प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाकर कहां ले जाना होगा? आज की तारीख में विकसित देशों में शामिल होने का एक पैमाना प्रति व्यक्ति आय भी है, जिसके मुताबिक मौजूदा समय में प्रति व्यक्ति आय 12 से 15 हजार डॉलर सालाना होनी चाहिए। अगर रुपये में देखा जाए तो यह रकम बैठती है, 10 से साढ़े 12 लाख रुपये। अनुमान लगाया जा रहा है कि जिस रफ्तार से देश तरक्की कर रहा है, उसमें 2047 तक भारत में प्रति व्यक्ति आय सालाना 14.9 लाख रुपये तक जा सकती है। ऐसे में अब यह समझना जरूरी है कि हमारे देश के युवा किस तरह से इस लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं?

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1947 और 2024 के भारत में यह अंतर होगा

साइंस एंड टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है। जॉब मार्केट में डायनमिक और फास्ट लर्नर प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी। ऐसे में विकसित भारत में 2 तरह के कॉलेज दिख सकते हैं। एक जो दुनिया में तेजी से होते बदलावों के हिसाब से वर्क फोर्स तैयार करें और दूसरे एक्टव वर्क फोर्स को क्रैश कोर्स के जरिए हर 3-4 साल में अपग्रेड और अपडेट कर सकें। आज की तारीख में पूरी दुनिया में करीब साढ़े 3 करोड़ से अधिक भारतीय मूल के लोग रहते हैं। यह संख्या कई गुना बढ़ सकती है, क्योंकि भारत का पूरा जोर वर्ल्ड जॉब मार्केट के हिसाब से उच्च प्रशिक्षित वर्क फोर्स तैयार करने पर है। अब दूसरे पक्ष की बात करते हैं। कमाई के साथ महंगाई भी बढ़ती है। अगर आजादी के समय प्रति व्यक्ति आय 274 रुपये थी तो 10 ग्राम गोल्ड 90 रुपये में मिलता था।

आज की तारीख में 10 ग्राम गोल्ड खरीदने के लिए 78 हजार रुपये से अधिक खर्च करने पड़ते हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो 1947 में एक आदमी अपनी सालाना कमाई से जितना सोना खरीद सकता था, उससे थोड़ा कम ही सोना आज अपनी कमाई से खरीद पाएगा। ऐसे में यह हिसाब भी लगाना होगा कि 2047 तक कमाई और महंगाई के बीच फासला कितना बढ़ेगा? विकसित भारत के शहर किस तरह के होंगे? क्या विकसित भारत के शहरों में भी प्रदूषण लोगों की जिंदगी के दिन कम करता रहेगा? क्या बारिश में शहर की सड़कों पर पानी जमा हो जाएगा? क्या सड़क पर पार्किंग के लिए लोग आपस में लड़ते दिखेंगे? ऐसे में समझते हैं कि विकसित भारत के लिए हमें किस तरह के शहर बसाने होंगे? पुराने शहरों की तस्वीर किस तरह से बदलनी होगी ?

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आज के भारत की तस्वीर 2047 में बदल जाएगी

जिस रफ्तार से शहरों में आबादी बढ़ रही है, उसमें में बहुत हद तक संभव है कि विकसित भारत के लिए कई स्मार्ट सिटी बसाई जाएं, जो पहले से मौजूद बड़े शहरों से 50 या 100 किलोमीटर की दूरी पर हों। जो अपनी जरूरतभर बिजली खुद सूरज से पैदा करें। स्मार्ट सिटी को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए सिर्फ और सिर्फ इलेक्ट्रिक व्हीकल या साइकिल इस्तेमाल हो। घर के अंदर या बाहर गाड़ियों की पार्किंग पूरी तरह बैन कर दी जाए। पार्किंग के लिए कॉलोनी के बाहर एक जगह तय कर दी जाए। यह भी संभव है कि जिस तरह से खाने-पीने की चीजों में केमिकल बढ़ रहा है, जिससे नई-नई बीमारियां पैदा हो रही हैं। लोग अपनी जरूरत का अनाज और सब्जियां खुद उगाएं, ऑर्गेनिक फार्मिंग करें। विकसित भारत में लोग सेहत और फिटनेस को लेकर बहुत सतर्क दिख सकते हैं।

2047 तक देश की आर्थिक और सामाजिक तरक्की में महिलाओं की भूमिका में बड़े बदलाव होने की उम्मीद है। आजादी के समय देश की ज्यादातर महिलाओं की पहचान किसी की पत्नी, किसी की मां, किसी की बहू, किसी की बेटी के रूप में थी। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने का चलन तेजी से आगे बढ़ा है, उसकी धमक हर सेक्टर में महसूस की जाने लगी है। ऐसे में विकसित भारत में महिलाएं हर क्षेत्र में टॉप-टू-बॉटम आधी से अधिक संख्या में दिखनी तय हैं। अभी जिस तरह ज्यादातर घरों में पुरुष नौकरी पर जाते हैं और महिलाएं घर संभालती हैं या महिला-पुरुष दोनों नौकरी करते हैं। यह तस्वीर 2047 तक बदली दिख सकती है। विकसित भारत में ऐसे परिवार अधिक दिख सकते हैं, जिसमें महिलाएं बाहर नौकरी करें और पुरुष घरेलू जिम्मेदारियां निभाते दिख सकते हैं?

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GDP में कृषि का योगदान कम करना होगा

2047 तक हमारे देश की आबादी में 20 करोड़ लोग और जुड़ने की उम्मीद है। मतलब आजादी की 100वीं वर्षगांठ तक भारत की आबादी एक अरब 60 करोड़ तक जा सकती है, जिसमें बुजुर्गों की हिस्सेदारी 33 से 35 करोड़ के बीच होगी यानी सीधे आज से डबल होगी। ऐसे में विकसित भारत में बुजुर्गों का इलाज, उनकी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का इंतजाम करना सरकार के सामने सामने बड़ी चुनौती होगी। रोजी रोजगार के चक्कर में युवाओं का देश-विदेश में माइग्रेशन बढ़ेगा। इससे बुजुर्ग आबादी का बड़ा हिस्सा अकेले या तन्हाई में जिंदगी काटने के लिए मजबूर होगा।

ऐसे में विकसित भारत में लग्जरी, सुपर लग्जरी, सामान्य कैटेगरी के वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ सकती है, जिसमें लोग अपनी जेब के हिसाब से जिंदगी के बाकी दिन हंसी-खुशी के साथ गुजार सकें। विकसित भारत में कृषि क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव दिखना तय है। बिना इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव के 2047 तक विकसित भारत बनना असंभव है। आजादी के वक्त हमारे देश की आबादी के 80 फीसदी लोगों की आजीविका का साधन खेती थी। अब यह घटकर 42 फीसदी पर आ गई है। देश की GDP में कृषि का योगदान 18 फीसदी के आसपास है। ऐसे में विकसित भारत के लिए लोगों की खेती पर निर्भरता कम करते हुए इसे 5 फीसदी से नीचे लाना होगा।

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7 दशकों में भारत कहीं से कहीं पहुंच गया

आजादी की 100वीं वर्षगांठ तक विकसित भारत बनाने में विश्वकर्मा की भूमिका में यहां का जोश से लबरेज नागरिक होगा। अमेरिका आज जिस मुकाम पर खड़ा है, उसे यहां तक पहुंचने में 200 साल से अधिक का समय लगा। आज का सुपर पावर अमेरिका 1776 में आजाद हुआ था, लेकिन जीवट और हमेशा जोखिम लेने के लिए तैयार मेहनती भारतीयों ने आजादी के 7 दशकों में ही बहुत कुछ हासिल किया है। यह भारतीयों के खून में दौड़ता हौसला और संविधान से मिले समानता के अधिकार का ही कमाल है कि बहुत ही गरीब परिवारों से निकले नरेंद्र मोदी, मायावती, लालू यादव और मुलायम यादव जैसे नेताओं ने राजनीति में बहुत ऊंचा मुकाम हासिल किया तो धीरूभाई अंबानी, गौतम अडानी, अनिल अग्रवाल जैसे कारोबारी दिग्गज शून्य से शिखर तक पहुंचे।

यह कुछ कर गुजरने का हौसला ही है कि भारतीय दुनिया की दिग्गज टेक कंपनियां चला रहे हैं। बिजनेस से लेकर पॉलिटिक्स तक में अपनी दमदार जगह बनाते जा रहे हैं। 1970-80 के दशक में यूपी-बिहार में गरीब किसान पिता अपने बच्चे को शुरू से ही कुदाल और कलम दोनों चलाने की ट्रेनिंग देता था। बच्चे को बेहतर शिक्षा देने के लिए खेत और गहने बिकते भी देर नहीं लगती थी। बाद में कुदाल, कलम के साथ कंप्यूटर जुड़ गया। आज उसी जीवट हौसला और बुलंद सोच का कमाल है कि गरीब परिवारों से निकले बच्चे बड़ी संख्या में IAS-IPS जैसी नौकरियों में सेलेक्ट हो रहे हैं।

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यूपी के बलिया से बिहार के बेगूसराय तक के छोटे गांवों के सामान्य परिवारों के बच्चे IIT-IIM से पास आउट होकर दुनिया की दिग्गज कंपनियों का हिस्सा बन रहे हैं। कामयाबी की बुलंदियों पर खड़े ऐसे कई युवाओं के माता-पिता का आर्थिक और सामाजिक स्तर ऐसा है कि वो न तो ठीक से हिंदी बोल पाते हैं, न कभी हवाई जहाज में सफर किया है, लेकिन अपने त्याग और हौसले से एक ऐसी जूझारू पीढ़ी को खड़ा किया, जो विकसित भारत गढ़ने के लिए सही मायनों में विश्वकर्मा की भूमिका में हैं।

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Edited By

Anurradha Prasad

First published on: Jan 05, 2025 09:25 AM

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