Sita Apaharan: रामायण में रावण को ज्योतिष का प्रकांड पंडित एवं अपने समय का महानतम विद्वान बताया गया है। वह एक महान शिवभक्त भी था, फिर भी उसने सीता का अपहरण किया। कई लोगों का मानना है कि रावण ने शूर्पणखा का बदला लेने के लिए ही माता सीता का अपहरण किया था। परन्तु कुछ लोगों के अनुसार यह असत्य है।
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अरण्य कांड में आता है पूरा वर्णन (Sita Apaharan)
पंडित कमलेश शास्त्री के अनुसार रावण ने माता सीता का अपहरण बहुत सोच-विचार कर ही किया था। इस संबंध में रामचरितमानस में तुलसीदास ने लिखा भी है। मानस के अरण्यकांड में रावण की मानसिक स्थिति का वर्णन करते हुए तुलसीदास लिखते हैं-
सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं॥
खर दूषन मोहि सम बलवंता । तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता॥
भावार्थ: रावण मन ही मन सोचता है कि देवता, मनुष्य, असुर, नाग और पक्षियों में कोई ऐसा नहीं, जो मेरे सेवक को भी पा सके। खर-दूषण तो मेरे ही समान बलवान थे। उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है?
सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥
तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥
भावार्थ: देवताओं को आनंद देने वाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है, तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक वैर करूंगा और प्रभु के बाण (के आघात) से प्राण छोड़कर भवसागर से तर जाऊँगा।
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इस प्रकार वह आगे विचार करता है कि
होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥
जौं नररूप भूपसुत कोऊ। हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ॥
भावार्थ: इस तामस शरीर से भगवत भजन तो होगा नहीं, अतएव मन, वचन और कर्म से यही दृढ़ निश्चय है। और यदि वे मनुष्य रूप कोई राजकुमार होंगे तो उन दोनों को रण में जीतकर उनकी स्त्री को हर लूंगा।
इस प्रकार रावण ने यह अनैतिक काम खुद को और अपने परिवार को मोक्ष दिलाने के लिए किया था। वह जानता था कि राम ही भगवान विष्णु हैं, इसी कारण वह खर-दूषण को इतनी सरलता से मार पाएं। यही कारण था कि उसने बार-बार संदेश आने पर भी माता सीता को नहीं लौटाया, क्योंकि उसके लिए मोक्ष पाने का यह सबसे सरल मार्ग था।