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Watch Video: नवरात्रि में रोजाना कर लें मां दुर्गा की यह स्तुति, मां जगदम्बा की कृपा से मिलेगा राजा जैसा सुख!

Devyaparadha Kshamapana Stotra: नवरात्रि व्रत के दौरान मां दुर्गा की आरती के समय शंकराचार्य रचित देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् का पाठ करने से भगवती जबदंबा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि जो भक्त नवरात्रि में रोजाना इसका पाठ करते हैं, उनकी अभिलाषा निश्चित ही पूर्ण होती है।

Edited By : Dipesh Thakur | Updated: Oct 19, 2023 13:17
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Devyaparadha Kshamapana Stotram
Devyaparadha Kshamapana Stotram

Devyaparadha Kshamapana Stotra: नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। इस दौरान भगवती के भक्त दिन-रात मां की उपासना में तल्लीन है। नवरात्रि के दौरान मां हर भक्त चाहता है कि माता रानी की कृपा से उसका भी जीवन खुशहाल रहे। दरअसल दुर्गा सप्तशती में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि जिस भक्त की जो अभिलाषा होती है, उसे वह निश्चित ही प्राप्त होता है, (“यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्”)। मगर सिर्फ इतना जान लेने मात्र से नहीं, बल्कि इसके लिए तो नवरात्रि में मां दुर्गा की विशेष स्तुति और आरती भी करनी पड़ती है, ताकि जगतजननी मां जगदम्बा की कृपा से जीवन में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं रहे। साथ ही हमेशा मां दुर्गा की विशेष कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता रहे। ऐसे में नवरात्रि के दौरान अगर आप रोजाना आरती के समय देवी की स्तुति करते हैं तो समझिए मां दुर्गा निश्चित ही आपकी और आपके परिवार की हर मनोकामना पूर्ण करेंगी। चलिए आदि शंकराचार्य रचित देवी की उस स्तुति के बारे में जानते हैं, जिसका जिक्र दुर्गा सप्तशती में किया गया है।

॥ अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् ॥ Devyaparadha Kshamapana Stotram

ॐ न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥1॥

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विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥2॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला: परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:।
मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥3॥

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जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति॥4॥

परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्॥5॥

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा निरातङ्को रङ्को विहरित चिरं कोटिकनकै:।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥6॥

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥7॥

न मोक्षस्याकाड्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत:॥8॥

नाराधितासि विधिना विविधोपचारै: किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥9॥

आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा: क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥10॥

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्॥11॥

मत्सम: पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु ॥12॥

डिस्क्लेमर:यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

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Edited By

Dipesh Thakur

First published on: Oct 19, 2023 01:10 PM

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