India canada tension update: कनाडा में खालिस्तानी आतंकी की हत्या के बाद से लगातार भारत से तनाव बढ़ रहा है। इस बीच जानने की जरूरत है कि आखिर कैसे कनाडा खालिस्तानी आतंक का गढ़ बन गया। आज की बात करें, तो भारत की जनसंख्या में सिख 1.7 फीसदी हैं। जबकि कनाडा में ये जनसंख्या के हिसाब से 2.1 फीसदी हो चुके हैं। भारत में फिलहाल 13 लोकसभा सदस्य सिख हैं, जबकि कनाडा में 15 सांसद। अंग्रेजी और फ्रेंच के बाद पंजाबी कनाडा की तीसरी मुख्य भाषा बन चुकी है। कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो तो यहां तक कह चुके हैं कि उनकी कैबिनेट में जितने सिख मंत्री हैं, पीएम मोदी की कैबिनेट में भी नहीं।
हैरानी की बात है कि 126 साल पहले तक कनाडा में एक भी सिख नहीं था। 1897 में पहली बार ब्रिटिश इंडिया आर्मी के मेजर केसर सिंह कनाडा में बसे थे। 1980 तक लगभग 35 हजार सिख सेटल हो चुके थे। आज आंकड़ा लगभग पौने 8 लाख है। आखिर क्या कारण है कि ट्रूडो का झुकाव खालिस्तानियों की ओर क्यों है। फिलहाल दोनों देशों के बीच तनाव का कारण जस्टिन ट्रूडो का बयान है। जिसके बाद भारत के सीने में सुलग रही खालिस्तान की चिंगारी को हवा मिली है। जो लोग पंजाब को भारत से अलग देखना चाह रहे हैं, उनके लिए कनाडा किसी जन्नत से कम नहीं है। क्योंकि ऐसे लोगों को कनाडा में काफी तरजीह दी जाती है।
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1897 में महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड सेलिब्रेशन में शामिल होने बुलाया था। ज्यादातर जवान सिख थे, क्योंकि ये ब्रिटिश भारतीय सेना की 36वीं (सिख) रेजिमेंट से जुड़े थे, जिसके सिर्फ 21 जवानों ने सारागढ़ी में 10 हजार पठानों को हरा दिया था। भारतीय घुड़सवारों का दल कोलंबिया के रास्ते सेलिब्रेशन में गया था। जिसकी अगुआई मेजर केसर सिंह कर रहे थे। जिसके बाद इन्होंने कनाडा में रहने का ही फैसला किया। बाद मं कोलंबिया से लगभग 5 हजार भारतीय भी कनाडा आ गए। जिसमें अधिकतर सिख थे।
1907 में बदल दिया गया था नियम
1857 के बाद जब कॉमनवेल्थ हुए तो महारानी विक्टोरिया ने कहा था कि जो ब्रिटिश इंडिया के लोग इनमें भाग लेंगे, उनको बराबर के अधिकार मिलेंगे। इससे लोग प्रभावित हुए और बाद में जो भी सेना से रिटायर हुए, लगभग बसने के लिए कनाडा जाने लगे। ज्यादातर संख्या इनमें सिखों की थी। लेकिन इसके बाद कनाडा के मूल निवासी परेशान होकर विरोध करने लगे। जिसके बाद हिंसा भड़की और भारतीयों के आने पर बैन लगाया गया।
कनाडा के तत्कालीन पीएम विलियम मैकेंजी ने कहा कि भारतीय इस देश की आभा में रहने के हकदार नहीं हैं। 1907 में नियम बना कि अगर कनाडा आना है तो अपने मूल देश से आना होगा। यानी भारतीय भारत से ही वहां जा सकते थे। दूसरी जगहों से नहीं। भारतीयों के लिए ये भी नियम बना कि अगर कनाडा आना है तो उनके पास 125 डॉलर होने जरूरी हैं।
2036 तक 33 फीसदी हो जाएगी प्रवासियों की आबादी
जबकि यूरोपियंस के लिए सिर्फ 25 डॉलर का प्रावधान था। बाद में 1914 आते-आते सिखों को जबरन भारत भेजा जाने लगा। एक जहाज में गए भारतीयों को कोलकाता लौटा दिया गया था। जिसके कारण 19 लोगों की मौत भी हुई थी। 2016 में जस्टिन ट्रूडो ने हाउस ऑफ कॉमन में इस घटना पर माफी भी मांगी थी। हिंसा के बाद कनाडा में लिबरल सरकार आई। जिसने कई नियम बदले। जिससे सिखों को फायदा हुआ और 1981 में जो आबादी 4.7 थी, वह 2016 आते-आते 22.3 फीसदी हो गई।
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इस हिसाब से बताया जा रहा है कि 2036 तक आबादी 33 फीसदी हो जाएगी। जिसके बाद इन लोगों को राजनीति, नौकरियों में अधिकार मिले। मौजूदा ट्रूडो सरकार भी सिखों को खूब सहूलियत दे रही है। ट्रूडो की सरकार को फिलहाल न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का सपोर्ट है, जो जगमीत सिंह की है। इस पार्टी के पास 24 सीटें हैं। पहले पार्टी को 39 सीटें मिली थीं। कनाडा में पहली बार निरंजन सिंह गरेवाल ने पब्लिक ऑफिसर का चुनाव जीता था।
1985 में मारे गए थे 329 लोग
अब कनाडा में पाकिस्तान से ज्यादा आतंक को पोषित किया जा रहा है। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में सरे नाम के शहर में जो मर्डर हुआ है। वहां पर गुरुद्वारे की दीवार पर आतंकी तलविंदर सिंह परमार की फोटो लगी है। जो 2021 से नहीं हटाई गई है। परमार खालिस्तानी का बड़ा आतंकी है, जिसने भारत के खिलाफ कई साजिशें रची हैं। 1985 में कनाडा के मांट्रियल एयरपोर्ट से एयर इंडिया की एक फ्लाइट रवाना हुई थी। कनिष्क फ्लाइट नई दिल्ली आनी थी, लेकिन लंदन पहुंचने से पहले इसमें ब्लास्ट हो गया था। इस हमले का मास्टरमाइंड परमार था।
329 लोग हमले में मारे गए थे, जिसमें 82 बच्चे थे। 1970 के दशक से खालिस्तान की मांग तेज हुई थी। परमार ने कनाडा में ही बब्बर खालसा इंटरनेशनल की स्थापना की थी। 80 के दशक में उसने कई मर्डर करवाए थे। वह अक्टूबर 1992 में पंजाब पुलिस के हाथों मारा गया था। उसने पाकिस्तान के रास्ते भारत में घुसपैठ की थी। कनाडा में 2019 में इलेक्शन हुए थे। तब ट्रूडो की पार्टी को 157 सीटें मिली थी। लेकिन बहुमत से 20 सीट कम होने के कारण एनडीपी से गठबंधन किया गया था। जिसको 24 सीटें मिली थी। इसके दबाव के बाद से ट्रूडो ने हमेशा खालिस्तान के हितों को लेकर बेतुके बयान दिए हैं।