Magh Mela 2023: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के प्रयागराज (Prayagraj) यानी संगम नगरी (Sangam Nagri) में भव्य माघ मेले 2023 (Magh Mela 2023) का आयोजन चल रहा है। मेला कार्यक्रम की तिथियों के मुताबिक यहां कुल पांच प्रमुख स्नान होते हैं। इन पांचों स्नानों का विशेष महत्व है। इस दौरान देश-दुनिया से करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि माघ मेला प्रयागराज में ही क्यों आयोजित होता है? जानते हैं इसका कारण और महत्व।
ये पांच प्रमुख स्नान होते हैं माघ मेले में
जानकारी के मुताबिक माघ मेले में बड़े स्नानों का आयोजन होता है। इस बार जारी मेला कार्यक्रम के मुताबिक 6 जनवरी 2023 को पौष पूर्णिमा, 14-15 जनवरी 2023 को मकर संक्रांति, 21 जनवरी 2023 को मौनी अमावस्या, 5 फरवरी 2023 को माघी पूर्णिमा और 18 फरवरी 2023 को महाशिवरात्रि पर बड़ा स्नान होगा। पौष पूर्णिमा का स्नान निकल चुका है। अब कल, यानी मकर संक्रांति को लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां स्नान करेंगे।
सिर्फ मेला नहीं, जश्न का एक त्योहार है…
बात करें माघ मेले की मान्यताओं की तो इसके लिए कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के मुताबिक कहा जाता है कि माघ में भगवान ब्रह्मा ने इस संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना की थी। कहा जाता है कि यह रचना माघ में हुई थी, इसलिए इस माह को त्योहार के तौर पर मनाया जाता है। साथ ही काफी लोग इस माह में कल्पवास भी करते हैं। कल्पवास के काफी कठिन नियम हैं। इस दौरान श्रद्धालु जमीन पर सोता है और सादा खाना-पीना खाते हैं।
जन्म और मृत्यु के चक्र से मिलती है मुक्ति
इस दौरान की गई भक्ति से मनुष्य जन्म-मुत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। माना जाता है कि इस दौरान भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। यज्ञ अनुष्ठान किए जाते हैं। कल्पवास दान के साथ पूरा होता है। इस दौरान कल्पवास करने वाला श्रद्धालु दान स्वरूप ब्राह्मण को बिस्तर समेत खान-पान की चीजें दान करता है। इसके अलावा माघ मेले का एक और भी महत्व है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। माना जाता है कि उत्तरायण में शरीर त्यागने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसलिए लोग संगम में स्नान करते हैं।
इसलिए प्रयागराज का है विशेष महत्व
अब बात करते हैं प्रयागराज और यहां होने वाले माघ मेले के महत्व की। सभी जानते हैं कि प्रयागराज को संगम नगरी भी कहा जाता है, क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां आपस में मिलती हैं। हिंदू रीति रिवाजों और मान्यताओं के मुताबिक तीनों ही नदियां धार्मिक महत्व रखती हैं। इसके अलावा प्रयागराज को तीर्थों का राजा भी कहा जाता है। इसलिए यहां माघ मेले की खास महत्व है। माना जाता है कि नागा साधुओं के शाही स्नान के बाद ही आयोजन की शुरुआत होती है।