Joshimath Sinking: पहाड़ एक बार फिर ‘प्राकृतिक और मानवजनित’ आपदा का शिकार हो रहा है? आखिर देवभूमि का जोशीमठ किनके कर्मों की सजा भुगत रहा है? कुछ ऐसे ही सवाल लोगों के मन में उठ रहे हैं। कुछ ऐसे ही सवालों का जवाब देते हुए देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सेन ने अपनी राय रखी। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि मानवजनित और प्राकृतिक दोनों कारणों से जोशीमठ का धंसना शुरू हुआ है। उन्होंने कहा कि कारक हाल-फिलहाल के नहीं हैं।
न्यूज एजेंसी से बात करते हुए कलाचंद सेन ने बताया कि तीन प्रमुख कारक जोशीमठ की कमजोर नींव हैं। उन्होंने बताया कि एक शताब्दी से भी पहले भूकंप से उत्पन्न भूस्खलन के मलबे पर ये शहर विकसित किया गया था। ये भूकंप के अति जोखिम वाले क्षेत्र जोन पांच में आता है। पानी के साथ लगातार मिट्टी का बहना शहर के नींव को कमजोर बनाता गया।
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उन्होंने कहा, “एटकिंस ने पहली बार 1886 में हिमालयन गजेटियर में भूस्खलन के मलबे पर जोशीमठ के स्थान के बारे में लिखा था। यहां तक कि मिश्रा समिति ने 1976 में अपनी रिपोर्ट में इस स्थान के बारे में लिखा था।” सेन ने कहा कि हिमालयी नदियों के नीचे जाने और पिछले साल ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ के अलावा भारी बारिश से भी स्थिति और खराब हो सकती है।
बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और औली का प्रवेशद्वार है जोशीमठ
कलाचंद सेन ने कहा कि चूंकि जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और स्कीइंग स्थल औली का प्रवेश द्वार है, इसलिए इस क्षेत्र में बेतरतीब निर्माण गतिविधियां लंबे समय से चल रही हैं, बिना इस बारे में सोचे कि शहर किस दबाव से निपटने में सक्षम है।
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उन्होंने कहा कि होटल और रेस्तरां हर जगह बना दिए गए हैं। आबादी का दबाव और पर्यटकों की भीड़ का आकार भी कई गुना बढ़ गया है।” उन्होंने कहा, “कस्बे में कई घरों के बचने की संभावना नहीं है और उनमें रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।”
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