Assembly Election Latest Updates MP CG Rajasthan CM Face: साल 2023 के आखिर में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से मध्य प्रदेश में भाजपा, जबकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। तीनों राज्यों में कांग्रेस और भाजपा ने चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। तीनों ही राज्यों में भाजपा की रैलियां जारी हैं, लेकिन अब तक किसी भी रैली में इन तीनों प्रदेशों के लिए मुख्यमंत्री चेहरे का ऐलान नहीं किया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो तीनों ही राज्यों में भाजपा पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। अब सवाल ये है कि आखिर क्यों भाजपा मुख्यमंत्री के चेहरे का ऐलान नहीं कर रही? क्या कारण है कि भाजपा को पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव में उतरना पड़ रहा है?
दरअसल, सोमवार को राजस्थान की राजधानी जयपुर में पीएम मोदी की सभा थी। पीएम मोदी ने सभा में साफ कर दिया कि आगामी विधानसभा चुनाव सिर्फ कमल के निशान पर लड़ा जाएगा। वहीं, मध्य प्रदेश में 3 केन्द्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को जैसे ही विधानसभा चुनाव के लिए टिकट दिया गया, जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया। सोशल मीडिया पर भी चर्चा है कि आखिर ऐसा क्यूं है कि भाजपा शिवराज सिंह के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ रही। पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को टिकट क्यों दिया? फिलहाल, इस बारे में भाजपा का कोई नेता बयान नहीं दे रहा लेकिन सूत्रों की मानें तो ‘सांसद फार्मूला’ आने वाले चुनाव में कमल खिलाने की ही कवायद है।
‘सांसद फार्मूला’ राजस्थान में आया तो क्या होगा?
कहा जा रहा है कि अगर मध्यप्रदेश वाला ‘सांसद फार्मूला’ राजस्थान में आया तो नेताओं, कार्यकर्ताओं की नाराजगी सामने आनी तय है। हालांकि राजस्थान के पाली लोकसभा सीट से भाजपा सांसद पीपी चौधरी का कहना है कि पार्टी को जो कुछ भी उचित लगेगा वह किया जा रहा है। हम तो सिपाही हैं… कारगिल की तरह जहां भी काम देंगे, करेंगे। वहीं, टोंक सवाई माधोपुर से भाजपा सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया ने कहा कि ‘संगठन फार्मूले’ का पहले तो हम समर्थन करते हैं, जहां जरूरत होती है, वहां पार्टी जिम्मेदारियां लेती है। सांसद और विधायक से पहले हम सभी पार्टी के कार्यकर्ता हैं।
मध्यप्रदेश में ‘सांसद फार्मूला’ प्रयोग या हताशा में उठाया गया कदम
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को उम्मीदवार बनाया गया है। दूसरी लिस्ट में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सासंदों के नाम आने के बाद सवाल उठने लगा कि क्या ये बीजेपी का प्रयोग है या फिर हताशा में उठाया गया कदम?
राज्य में 18 साल से बीजेपी की सरकार है, लेकिन ये समझ से थोड़ा परे है कि आखिर भाजपा ने क्षेत्रीय नेताओं को छोड़ केंद्रीय नेताओं पर दांव क्यों लगाया? सवाल ये भी है कि आखिर बीजेपी ने 3 केंद्रीय मंत्रियों, 4 सांसदों और 1 राष्ट्रीय महासचिव को विधानसभा चुनाव के मैदान में क्यों उतार दिया?
भाजपा ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, रीति पाठक, उदय प्रताप सिंह और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव के मैदान में उतारा है। खुद प्रदेश भाजपा के कई नेताओं को भी केंद्र के इस फैसले पर हैरानी हो रही है।
कहा जा रहा है कि सबको सिर्फ खुद के चुनाव लड़ने की जानकारी थी। लेकिन जब लिस्ट में एक साथ बड़े नेताओं का नाम आया तो तस्वीर कुछ और नजर आई। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी का ये फैसला आउट ऑफ द बॉक्स जाकर सोचने वाली राजनीति का हिस्सा है। ऐसा लगता है, मानो पार्टी को अब समझ आ गया है कि मध्य प्रदेश में इस बार का चुनाव आसान नहीं है।
पार्टी की एक कोशिश ये भी है कि ऐसा करने से पार्टी का यूनाइटेड चेहरा दिखेगा, जो एंटी इनकम्बेंसी को काउंटर करेगा। भाजपा ये दिखाने का प्रयास कर रही है कि अगर शिवराज के नाम पर सत्ता विरोधी लहर है तो हमारे दूसरे लोग भी हैं, जो पार्टी के खेवनहार बन सकते हैं। कहा जा रहा है कि पार्टी के नेताओं में अपने परफॉर्मेंस को लेकर भी ये दवाब रहेगा कि अच्छा प्रदर्शन करना है, क्योंकि फिलहाल तो माहौल है कि कोई भी मुख्यमंत्री बन सकता है। अगर प्रदर्शन बेहतर रहा तो, उचित इनाम भी मिल सकता है।
आखिर पीएम मोदी के चेहरे की जरूरत क्यों?
मध्यप्रदेश में भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा इस बार बहुत सफल नहीं रही है। लोगों में उत्साह नहीं दिखा। भाजपा कई योजनाएं लाई, लेकिन इससे भी जनता में भाजपा को लेकर बहुत उत्साह नहीं दिख रहा है। इसलिए बीजेपी केंद्रीय स्तर के नेताओं को चुनाव में उतारकर मोबिलाइज करने का काम कर रही है। मोदी के नाम पर विधानसभा चुनाव लड़ा जाना है, इसकी झलक जन आशीर्वाद यात्रा में ही दिख गई थी, जिसका थीम सॉन्ग था- मोदी मध्य प्रदेश के लिए, मध्य प्रदेश मोदी के लिए।
शिवराज के भविष्य पर सस्पेंस
मध्य प्रदेश में वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 64 साल के हो चुके हैं। शिवराज सिंह चौहान 2005 से राज्य के मुख्यमंत्री हैं। हां बीच के दो साल को छोड़ दिया जाए तो वे करीब 16 साल राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। 2005 में जैसे ही शिवराज सिंह चौहान का नाम मुख्यमंत्री के लिए सामने आया, उस वक्त कुछ नेताओं ने उनके नाम पर ऐतराज जताया। लेकिन शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन ही गए।
तीन साल बाद यानी 2008 में जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए, तो शिवराज के नेतृत्व में भाजपा ने फिर सरकार बनाई। इसके बाद शिवराज का भाजपा में कद बढ़ गया। इसके बाद तो राज्य के कद्दावर नेताओं में शामिल प्रभात झा, नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजवर्गीय दिल्ली बुला लिये गए। कहा जाता है कि इन नेताओं को दिल्ली भेजने में शिवराज की अहम भूमिका रही। इस साल हुए कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के हार के बाद हार के बाद शिवराज ने कहा था कि यहां मैं हूं। कर्नाटक-फर्नाटक भूल जाओ। लेकिन अब बीजेपी हाईकमान के रुख के बाद शिवराज के भविष्य पर सस्पेंस है।
राजस्थान में वसुंधरा भी संशय में
भैरो सिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति बनने के बाद राजस्थान की सियासत पूरी तरह बदली। वसुंधरा राजे ने बीजेपी को सत्ता का स्वाद चखाया। वे दो बार सीएम बन चुकी हैं। 2013 में वसुंधरा ने पूरी ताकत लगाई। 2018 में अंदरूनी राजनीति के कारण हारी। तब शोर मचा कि मोदी तुझसे बैर नहीं, पर वसुंधरा तेरी खैर नहीं। लेकिन हार के बाद उनको राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। किसी राज्य का प्रभार नहीं दिया गया। चुनाव से पहले भी समर्थकों को बड़े पद की आस थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पीएम मोदी ने भी हाल की रैली में कमल का ध्यान रखने की बात कर उनको संशय में डाल दिया है।
छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री फेस पर सस्पेंस बरकरार
23 साल पुराने राज्य में शुरुआत के तीन साल अजीत जोगी की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार रही। इसके बाद 2003 से 2018 यानी 15 साल तक लगातार भाजपा की सरकार रही। भाजपा के कद्दावर नेता रमन सिंह ने तीन बार राज्य का नेतृत्व किया।
2015 में भाजपा की यहां करारी हार हुई। 90 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 71, जबकि भाजपा ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की। भाजपा की करारी हार के बाद राज्य में कांग्रेस सरकार को लेकर कोई नाराजगी नहीं दिख रही है। पांच सालों के कार्यकाल में नक्सली हमलों को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस के लिए कुछ भी ऐसा नहीं है, जो उसके लिए चुनावी माहौल खराब कर सकता है।
वहीं, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को लेकर भाजपा आलाकमान की ओर से कुछ भी स्पष्ट नहीं है। लेकिन वे एक्टिव मोड में हैं। रमन के पास अभी बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अध्यक्ष की जिम्मेदारी है। वे किसी राज्य के प्रभारी नहीं हैं। आने वाला विधानसभा चुनाव रमन सिंह के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लेकिन पार्टी फिलहाल उन्हें खास महत्व नहीं दे रही है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चुनाव बाद अगर भाजपा सत्ता में आती है, तो रमन सिंह की जगह किसी और को कमान दी जा सकती है।