Delhi High Court Verdict: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बहू को उसका अधिकार दिलाया है और उसके सास-ससुर की याचिका खारिज करते हुए एक अहम फैसला सुनाया है, जो देशभर की उन बहुओं के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, जो इस बहू जैसी समस्या से जूझ रही हैं, जिसे न्याय मिला है. जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की.
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कानूनी प्रक्रिया बिना नहीं निकाल सकते
हाई कोर्ट जस्टिस ने कहा कि शादी के बाद बहू परिवार की सदस्य बन जाती है. अगर मां-बाप बेटे को बेदखल कर दें तो भी उसे ससुराल से कानूनी प्रक्रिया पूरी किए बिना नहीं निकाला जा सकता. पति को घर से निकाले जाने के बावजूद वह अपने सास-ससुर के घर में रह सकती है. सास-ससुर उसे पति के साथ जाने को मजबूर नहीं कर सकते, जब तक वह खुद उसके साथ न जाना चाहे.
15 साल पुराने केस का हुआ निपटारा
बता दें कि विवाद 2010 से चल रहा था और याचिका का निपटारा हाई कोर्ट ने 15 साल बाद 16 अक्टूबर 2025 को किया. सास-ससुर का केस वकील काजल चंद्रा ने लड़ा और बहू की वकील संवेदना वर्मा थीं. साल 2011 में पति-पत्नी के संबंध खराब हो गए थे और विवाद कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन पत्नी ने घर नहीं छोड़ा. वह घर में ही लेकिन अलग रहने लगी.
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याचिकाकर्ता के द्वारा दी गई ये दलील
इस बीच बहू के ससुर दलजीत सिंह की मौत हो गई तो उसकी सास ने अपने और पति की ओर से याचिका दायर करके दलील दी कि प्रॉपर्टी स्वर्गीय दलजीत सिंह की खुद से कमाई हुई प्रॉपर्टी है और इस पर बहू का अधिकार नहीं है. घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत भी यह घर उसका नहीं, लेकिन जज ने कहा कि बेटे को बेदखल कर दो, तब भी उसे नहीं निकाल सकते.
शादी होने के बाद कानूनी प्रक्रिया पूरी हुए बिना बहू को घर से निकाला ही नहीं जा सकता, चाहे कुछ भी हो. इसलिए वर्तमान स्थिति बरकरार रहेगी. बहू ग्राउंड फ्लोर पर और सास पहली मंजिल पर ही रहेगी, जिस दिन बेटे-बहू के आपसी विवाद का कानूनी निपटारा होगा, उस दिन बहू को घर छोड़ना पड़ेगा. यह फैसला पति के साथ घर से निकाली गई बहुओं के लिए नजीर है.