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दिल्ली

22 हफ्ते के बाद अबॉर्शन का क्या है नियम? दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट की एक बेंच ने नया फैसला सुनाया है जिसके तहत अब अविवाहित महिला भी 22 हफ्तों की प्रेग्नेंसी को खत्म कर सकती है. इस मामले में पीड़िता को और तकलीफ न देने के आधार पर फैसला लिया गया था. आइए जानते हैं इसको लेकर कानून क्या कहता है.

Author Written By: Namrata Mohanty Author Published By : Namrata Mohanty Updated: Sep 19, 2025 09:19

Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 30 वर्षीय महिला को 22 हफ्तों की प्रेग्नेंसी को खत्म करने का आदेश दिया है. हालांकि, ऐसा हर महिला के साथ संभव नहीं है. इसके अलावा, भारतीय कानून के मुताबित, 22 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म करने के लिए भी कोर्ट की मंजूरी चाहिए होती है. ऐसे में क्यों महिला को बिना किसी मौजूदा कारणों के बाद गर्भपात की मंजूरी दी गई? चलिए जानते हैं पूरी बात.

किस मामले में सुनाया यह फैसला?

दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट मे एक 30 वर्षीय महिला के केस की सुनवाई चल रही थी. महिला अपने बॉयफ्रेंड के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रही थी. उस दौरान वह दो बार प्रेग्नेंट हुई थी. पहली बार भी उसे अपने पार्टनर द्वारा बहलाये जाने के बाद गर्भनिरोधक गोलियों से अबॉर्शन किया. मगर दूसरी बार जब वह फिर गर्भवती हुई तो अब लंबे समय की प्रेग्नेंसी थी. हालांकि, महिला ने पहले ही बच्चे को गिराने से इंकार किया था लेकिन पार्टनर ने उसे जबरदस्ती मेडिकल अबॉर्शन करने के लिए कहा.

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दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस की टिपण्णी

पार्टनर की बात न मानने पर उसके साथ मारपीट की गई और प्रताड़ित किया गया. इसके बाद महिला ने FIR कर केस दर्ज करवाया था. इस पर दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस रविंद्र डुडेजा ने स्पष्ट कहा है कि गर्भावस्था को जारी रखना पीड़िता की तकलीफों को बढ़ाना होगा. दरअसल, महिला को शादी का झूठा वादा किया गया था. मगर अब ऐसा नहीं होगा तो गर्भावस्था को जारी रखना युवती के लिए कठिन हो सकता है.

किस संदर्भ में दिया गया फैसला?

जस्टिस ने यह फैसला महिला को और कष्ट न पहुंचाने और सामाजिक कलंक से बचाने के लिए सुनाया था. पीड़ित महिला को पहले से ही आरोपी मित्र से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था और कोर्ट भी उसकी मनोस्थिति को नहीं समझेगा तो उसके लिए मुश्किल आ सकती है. कोर्ट ने महिला को एम्स में गर्भपात करवाने की अनुमति दे दी है.

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क्या है यह नियम और कब महिला को ऐसे अधिकार मिलते हैं?

भारतीय कानून में यह नियम नया नहीं है. इस नियम को साल 1970 में ही लागू कर दिया गया था, जिसमें 20 हफ्ते के भ्रूण को गिराने का प्रावधान है लेकिन कुछ विशेष मामलों में. इसे MTP Act, 1971 कहते हैं. इसमें लीगल अबॉर्शन प्रोसेस के बारे में बताया जाता है. इसे साल 2021 में बदला गया जिसके बाद 24 हफ्तों तक गर्भपात करने की अनुमति दी जाती है. मगर विशेष परिस्थितियों में. एक्ट के मुताबिक, शादीशुदा और अविवाहित महिलाओं के बीच अब कोई फर्क नहीं रखा गया है. दोनों को समान अधिकार हैं. रेप सर्वाइवर, नाबालिग, विकलांग महिलाओं को 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार दिया गया है.

इस केस में भी मामला यौन शोषण से जुड़ा था. इसलिए, गर्भपात की अनुमती दी गई है.

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First published on: Sep 19, 2025 08:26 AM

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