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बिहार की 215 में से मात्र 20 जातियां ही संसद तक पहुंचीं, सवर्ण समाज से मात्र 2 CM ने ही पूरा किया कार्यकाल

Bihar Which Caste Representation In Parliament And Assembly: बिहार की जातीय गणना के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में कुल 215 जातियां पाई गईं हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि इन 215 में से मात्र 20 जातियों के लोग ही जनप्रतिनिधि के रूप में संसद तक पहुंच पाएं हैं। मतलब बिहार की 195 जातियां संसद […]

Edited By : Om Pratap | Updated: Oct 4, 2023 10:54
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Bihar Which Caste Representation In Parliament And Assembly

Bihar Which Caste Representation In Parliament And Assembly: बिहार की जातीय गणना के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में कुल 215 जातियां पाई गईं हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि इन 215 में से मात्र 20 जातियों के लोग ही जनप्रतिनिधि के रूप में संसद तक पहुंच पाएं हैं। मतलब बिहार की 195 जातियां संसद तक पहुंच से वंचित हैं। इसका एक मुख्य कारण ये भी है कि राज्य की राजनीतिक में मात्र 10 से 15 जातियों के प्रतिनिधि ही ऐसे हैं, जो सक्रिय हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2019 के आम चुनाव में बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर अलग-अलग पार्टियों के नेताओं ने जिन्हें चुनावी मैदान में उतारा था, उनमें 215 में से मात्र 21 जातियों को ही इस लायक समझा गया था। अगर बिहार की कुल जातियों के अनुसार प्रतिशत के अनुसार ये आंकड़ा देखें तो ये मात्र 10 फीसदी है। मतलब, बिहार में राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियों ने 90 फीसदी जातियों को राजनीति के लायक माना ही नहीं।

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सीनियर पत्रकार श्रीकांत की किताब ‘बिहार में चुनाव, जाति और बूथ लूट’ के आकंड़ों के मुताबिक, आजादी के बाद से से अब तक राज्य की राजनीति में मुख्य रूप से यादव, ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ, कुर्मी, कोइरी, बनिया, कहार, नाई, मल्लाह, मांझी, पासी, मुस्लिम और ईसाईयों का ही बोलबाला रहा है।

जो सीट रिजर्व नहीं, वहां इन जातियों के बीच टिकटों के लिए मारामारी

बिहार की जिन सीटों को रिजर्व नहीं किया गया है, उन सीटों पर यादव, भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, कुर्मी, कोईरी, मल्लाह के बीच ही टिकटों के लिए मारामारी होती है। लोकसभा की बात करें तो राज्य की 40 में से मात्र छह सीटें अनुसूचित समुदाय के लिए रिजर्व हैं। जिन जातियों का संसद तक प्रतिनिधित्व हैं, उनमें से पांच से छह जातियों का इन सीटों पर आधिपत्य होता है, बाकी अन्य 15 जातियों के उम्मीदवारों को मुकाबले से बाहर मान लिया जाता है।

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राज्य में सत्ता के शीर्ष पर किन-किन जातियों का दबदबा?

राज्य की बात की जाए तो पिछले 75 सालों में से 35 साल से अधिक पिछड़ा, अति पिछड़ा वर्ग के नेता सत्ता पर काबिज रहे हैं। जबकि बाकी के सालों में मात्र दो मुख्यमंत्री सवर्ण वर्ग से ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया है। राज्य की अनुसूचित जाति के नेताओं को तीन बार सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का मौका मिला है, जिसमें से कोई भी एक साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। इनमें रामसुंदर दास (302 दिन), जीतनराम मांझी (278 दिन), भोला पासवान शास्त्री (112) शामिल हैं।

वहीं, अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधित्व की बात करें तो मात्र एक बार ऐसा हुआ है, जब अल्पसंख्यक समुदाय का नेता मुख्यमंत्री बना है। अब्दुल गफूर एक बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे और उन्होंने 1 साल 283 दिनों तक शासन किया था।

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Written By

Om Pratap

First published on: Oct 04, 2023 10:54 AM

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