Bihar Elections: बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और चुनावी रणभूमि में घोषणाओं की बौछार शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार बड़े वादों का ऐलान कर रहे हैं, वहीं इन घोषणाओं के बीच विपक्ष भी सवाल उठा रहा है कि इतना पैसा कहां से आएगा? 2015 की तरह इस बार भी एनडीए ने भारी घोषणाओं का दांव खेला है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने युवाओं, महिलाओं और कर्मचारियों को रिझाने की कोशिश की है. बड़े पैकेज और नकद लाभ एनडीए को निर्णायक बढ़त दिलाने में कितना कामयाब होंगे, इसका फैसला तो चनुाव में बिहार की जनता ही करेगी.
एनडीए ने की 7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की घोषणाएं
बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने से पहले ही NDA ने चुनावी रणभूमि में अपनी तैयारियों का बिगुल बजा दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री मोदी ने मिलकर अब तक 7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की घोषणाएं कर चुके हैं. युवाओं के लिए 2030 तक एक करोड़ नौकरियों का वादा, शिक्षकों की भर्ती, इंटर्नशिप और स्किल ट्रेनिंग के जरिए स्टायपेंड की योजना. महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण, आशा-ममता कार्यकर्ताओं का मानदेय दोगुना, आंगनबाड़ी सेविकाओं को स्मार्टफोन खरीदने के लिए सहायता और 75 लाख महिलाओं को नकद लाभ की पहली किस्त जारी. कर्मचारी वर्ग और ग्रामीण वोटरों के लिए भी ढेर सारी योजनाएं लागू की गई हैं. बीजेपी और जेडीयू का कहना है कि यह घोषणाएं केवल वादे नहीं, बल्कि बिहार के विकास और जनता की भलाई के लिए ठोस कदम हैं.
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वादों को पूरा करना मुश्किल है- तजस्वी यादव
वहीं विपक्ष इस चुनावी तिकड़म पर सवाल उठा रहा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष में बिहार का बजट तीन लाख सत्रह हजार करोड़ रुपये था. इसके अलावा पचास हजार करोड़ का सप्लीमेंट्री बजट और बीस हजार करोड़ की अतिरिक्त घोषणाएं हुई हैं. कुल मिलाकर सरकार के पास लगभग तीन लाख पैंतीस हज़ार करोड़ रुपये ही खर्च करने के लिए बचते हैं. जिसमें से दो लाख करोड़ पहले से कमिटेड खर्च हैं. तेजस्वी यादव का कहना है कि इस हिसाब से करोड़ों रुपये के वादों को पूरा करना मुश्किल है. वह सवाल उठाते हैं कि क्या यह पैसा वास्तव में योजनाओं पर खर्च होगा या चुनाव खत्म होते ही यह घोषणाएं कागजों में दबी रह जाएंगी.
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