Asian Games Bronze Medalist Athlete Ram Babu: करत करत अभ्यास त जड़मति होत सुजान…जी हां इस कहावत को सच कर दिखाया है सोनभद्र के रहने वाले रामबाबू ने। एशियाई खेलों की पैदल चाल स्पर्धा के कांस्य पदक विजेता राम बाबू ने आज अपनी निजी जीवन के संघर्ष से जुड़ी जानकारी साझा की हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे सोनभद्र से हांगझोऊ तक का सफर तय किया।
रामबाबू ने कहा- क्या मेरा सपना क्या कभी पूरा होगा? रोजाना यही बात अपनी मां से किया करता था, लेकिन मां सलाह देती थीं कि सपने में नहीं हकीकत में जीयो। बस फिर क्या था, अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक समय ऐसा भी आया कि रोजाना खेल की प्रैक्टि्स के साथ पेट की भूख मिटाने के लिए मजदूरी करनी पड़ी।
मां ने हमेशा सपोर्ट किया
वेटर चल पानी ला…रामबाबू को कभी यह भी सुनने को मिला, लेकिन इनकी मां ने इन्हें हमेशा सपोर्ट किया और हमेशा लक्ष्य पर फोकस करने को कहा। इतना ही नहीं राम बाबू को कभी मनरेगा मजदूर भी बनना पड़ा, लेकिन उन्होंने सफलता पाने के लिए अपनी गरीबी को कभी हावी नहीं होने दिया। दिहाड़ी मजदूर पिता के बेटे रामबाबू ने एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीतकर भारत का मान सम्मान को बढ़ाया है।
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न्यूज़ 24 से खास बातचीत में सेना के हवलदार रिक्रूटर रामबाबू ने बताया कि संघर्ष के आगे मैंने कभी नतमस्तक होना नहीं सीखा। हमेशा सच्चाई और कड़ी लग्न से सभी बाधाओं को तोड़ा। 2014 में मुझे एहसास हुआ कि मैराथन में हेल्दी खाने का जुगाड़ करना आसान नहीं है क्योंकि पौष्टिक आहार के लिए पैसे की जरूरत होती है और इतना पैसा इनके पास नहीं था।
बनारस में वेटर का काम किया
पैसे का जुगाड़ करने के लिए रामबाबू ने बनारस में वेटर का काम किया। एथलीट में बेटे का जुनून देख मां-बाप मेहनत मजदूरी कर पैसे भेजा करते थे। उस समय दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था। होटल में वेटर का काम करने से राम बाबू की ट्रेनिंग प्रभावित हो रही थी। इसके बाद राम बाबू ने कई नौकरियां बदलीं, लेकिन कहते हैं, अगर आप मेहनत करोगे तो कामयाबी भी आपके आगे नतमस्तक होने पर मजबूर हो जाएगी। इसका परिणाम यह हुआ कि नॉर्दर्न कोल फील्ड लिमिटेड ने एथलेटिक्स कैंप के लिए रामबाबू को चुन लिया। फिर इन्हें कोच ने मैराथन दौड़ को बदलने और रेस वॉक करने की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया।
हालांकि यह सब आसान नहीं था, रेस वॉक राम बाबू के लिए कठिन थी। राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद राम बाबू का चयन विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए हुआ। ट्रायल्स में अच्छा प्रदर्शन काम नहीं आया। इस दौरान विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हैमस्ट्रिंग की चोट लग गई। हैमस्ट्रिंग की चोट राम बाबू के लिए गंभीर थी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने 35 किमी पैदल चाल में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया और एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीत लिया। मजदूर के तौर पर करने शुरुआत करने और अब इंटरनाशनल रिकॉर्ड धारक गले मे पदक लटकाए रामबाबू के लिए सफलता की यात्रा धैर्य और दृढ़ संकल्प की कहानी है।