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राजा के बेटे पर चेचक का प्रकोप, घटने की जगह बढ़ने लगा रोग, फिर किया ये काम…जानें असली शीतला सातम व्रत कथा

Shitala Satam Vrat Katha: भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि यानी जन्माष्टमी त्योहार से ठीक एक दिन पहले शीतला सातम व्रत रखा जाता है, ताकि देवी भगवती चेचक और अन्य संक्रामक बीमारियों से बचाएं। आइए जानते हैं, शीतला सातम की व्रत असली कथा।

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Aug 25, 2024 10:09
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Shitala Satam Vrat Katha: हिन्दू धर्म में शीतला माता चेचक की देवी मानी गईं हैं। शीतला का अर्थ है ‘शांत करने वाली’। माना जाता है कि वे रोगों, विशेषकर चेचक, को शांत करती हैं। गर्मियों और बारिश के मौसम में इस बीमारी का प्रकोप अधिक होता है। इसलिए भाद्रपद यानी भादो महीने में जन्माष्टमी से एक दिन पहले कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शीतला सातम व्रत रखा जाता है और माता शीतला की पूजा की जाती है। लोग शीतला सातम व्रत की कथा सुनते हैं। मान्यता है कि इससे चेचक और अन्य बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। आइए जानते हैं, शीतला सातम की व्रत असली कथा।

किसी का हैसियत देखकर नहीं आती शीतला

प्राचीन काल में एक बार एक राजा के इकलौते पुत्र को शीतला यानी चेचक निकली। संयोग से उसी के राज्य में एक काछी-पुत्र को भी चेचक हुई थी। शीतला माता किसी का घर देखकर नहीं आती-जाती हैं। वह यह नहीं देखती कि किसकी क्या हैसियत है। जहां काछी परिवार अत्यंत गरीब था, वहीं राजा के पास धन की कमी नहीं थी।

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ऐसे स्वस्थ हुआ काछी-पुत्र

काछी परिवार के लोग मां भगवती के उपासक थे। वे धार्मिक दृष्टि से जरूरी समझे जाने वाले सभी नियमों को बीमारी के दौरान भी भली-भांति निभाते रहे। घर में साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता था। नियम से भगवती की पूजा होती थी। नमक खाने पर पाबंदी थी। सब्जी में न तो छौंक लगता था और न कोई वस्तु भुनी-तली जाती थी। गरम वस्तु न वह स्वयं खाता, न शीतला वाले लड़के को देता था। ऐसा करने से उसका पुत्र शीघ्र ही ठीक हो गया।

राजा के यहां होते रहे ये कर्म

उधर जब से राजा के लड़के को शीतला का प्रकोप हुआ था, तब से उसने भगवती के मंडप में शतचंडी का पाठ शुरू करवा रखा था। रोज हवन और बलि दी जाती थी। राजपुरोहित भी सदा भगवती के पूजन में निमग्न रहते। राजमहल में रोज कड़ाही चढ़ती, विविध प्रकार के गर्म स्वादिष्ट भोजन बनते। सब्जी के साथ कई प्रकार के मांस भी पकते थे। इसका परिणाम यह होता कि उन लजीज भोजनों की गंध से राजकुमार का मन मचल उठता। वह भोजन के लिए जिद करता। एक तो राजपुत्र और दूसरे इकलौता, इस कारण उसकी अनुचित जिद भी पूरी कर दी जाती।

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घटने की बजाय बढ़ने लगा चेचक

राजा के यहां हो रहे क्रिया-कलापों से शीतला (चेचक) का कोप घटने के बजाय बढ़ने लगा। शीतला के साथ-साथ उसे बड़े-बड़े फोड़े भी निकलने लगे, जिनमें खुजली व जलन अधिक होती थी। शीतला की शांति के लिए राजा जितने भी उपाय करता, शीतला का प्रकोप उतना ही बढ़ता जाता। क्योंकि अज्ञानतावश राजा के यहां सभी कार्य उलटे हो रहे थे। इससे राजा और अधिक परेशान हो उठा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सब होने के बाद भी शीतला का प्रकोप शांत क्यों नहीं हो रहा है।

शीतला माता मंदिर, गुरुग्राम

शीतला माता मंदिर, गुरुग्राम | फोटो: Facebook

गंभीर चिंता में पड़ गया राजा!

एक दिन राजा के गुप्तचरों ने उन्हें बताया कि काछी-पुत्र को भी शीतला निकली थी, पर वह बिलकुल ठीक हो गया है। यह जानकर राजा सोच में पड़ गया कि मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा व अनुष्ठान में कोई कमी नहीं, पर मेरा पुत्र अधिक रोगी होता जा रहा है जबकि काछी पुत्र बिना सेवा-पूजा के ही ठीक हो गया। इसी सोच में उसे नींद आ गई।

मां भगवती ने दिया स्वप्न दर्शन

मां शीतला सब जानती थी। उसे राजा का दुःख और चिंता का कारण भली-भांति पता था। तब श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, “हे राजन्! मैं तुम्हारी सेवा-अर्चना से प्रसन्न हूं। इसीलिए आज भी तुम्हारा पुत्र जीवित है। इसके ठीक न होने का कारण यह है कि तुमने शीतला के समय पालन करने योग्य नियमों का उल्लंघन किया। तुम्हें ऐसी हालत में नमक का प्रयोग बंद करना चाहिए। नमक से रोगी के फोड़ों में खुजली होती है। घर की सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इसकी गंध से रोगी का मन उन वस्तुओं को खाने के लिए ललचाता है। रोगी का किसी के पास आना-जाना मना है क्योंकि यह रोग औरों को भी होने का भय रहता है। अतः इन नियमों का पालन कर, तेरा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा।” इस प्रकार शीतला रोग के नियम और विधि समझाकर देवी माता अंतर्ध्यान हो गईं।

राजा ने तत्काल किए ये काम

राजा की नींद खुल गई। उसने मन में बड़े सुंदर भाव आ रहे थे। वह भीतर से काफी आनंदित महसूस कर रहा था। उसने देवी माता की स्तुति कर उनका आभार व्यक्त किया। फिर सुबह होते ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी कार्यों की व्यवस्था कर दी। इससे राजकुमार की सेहत पर अनुकूल प्रभाव पड़ा और वह शीघ्र ही ठीक हो गया। साथ ही इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और माता देवकी का विधिवत पूजन करके मध्य-काल में सात्विक और शुद्ध पदार्थों से उनका भी भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से केवल पुण्य ही नहीं मिलता बल्कि समस्त दुखों का भी निवारण होता है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि यानी जन्माष्टमी त्योहार से ठीक एक दिन पहले शीतला सातम व्रत रखा जाता है, ताकि देवी भगवती चेचक और अन्य संक्रामक बीमारियों से बचाएं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को सुनते और पढ़ते हैं, उनको इस रोग से मुक्ति मिलती है और वे स्वस्थ रहते हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Written By

Shyam Nandan

First published on: Aug 25, 2024 10:09 AM

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