Ravan ka Punarjanm: ऐसा लगता है कि महाभारत में किस्सों और प्रसंगों का कोई अंत ही नहीं है। इसकी कथाओं का संबंध त्रेता युग और रामायण से भी है तो आने वाले समय कलियुग से भी है। महाभारत के जिस प्रसंग की बात यहां हो रही है, उसका संबंध रावण के पुनर्जन्म से है। कहते हैं, जब द्वापर युग में रावण ने दोबारा जन्म लिया, तब भी उसकी मृत्यु भगवान विष्णु के अवतार के हाथों ही हुई थी। आइए जानते हैं, द्वापर युग में रावण ने किस रूप में जन्म लिया और उसकी मृत्यु कैसे हुई?
कृष्ण के रिश्तेदार बने रामायण के रावण!
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, त्रेता युग में भगवान श्रीराम के हाथों सद्गति पाने के बाद रावण के छोटे भाई विभीषण ने उसका अतिम संस्कार किया था। लेकिन महाभारत काल में रावण ने फिर जन्म ले लिया। लेकिन त्रेतायुग में जहां वह भगवान श्रीराम के शत्रु के रूप में जन्मा था, तो वहीं द्वापर में रावण ने भगवान श्रीकृष्ण के एक रिश्तेदार के रूप में जन्म लिया। महाभारत के मुताबिक, रावण ने भगवान श्रीकृष्ण की बुआ सुतसुभा के गर्भ से जन्म लिया था। कहते है, जन्म के समय बच्चे का रूप सामान्य बालक की तरह नहीं बल्कि राक्षस बालक की भांति था। उसके चार हाथ थे और माथे पर एक सींग भी था। उसके माता-पिता उससे छुटकारा पाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन तभी आकाशवाणी हुई, जो नए जन्म में रावण की मृत्यु से जुड़ी हुई थी।
क्या थी आकाशवाणी?
आकाशवाणी के अनुसार, जिसकी भी गोद में जाने से बच्चे के अतिरिक्त हाथ और सींग गायब हो जाएंगे, उसके हाथों ही रावण का इस नए जन्म में वध होगा। अपनी बुआ के बेटे को देखने के लिए भगवान श्रीकृष्ण भी पहुंचे थे। उन्होंने ही बच्चे का नामकरण किया और उसका नाम शिशुपाल रखा। जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने बच्चे को यानी शिशुपाल को गोद में लिया, उसके दो हाथ और सींग गायब हो गए, जिससे यह सिद्ध हो गया कि श्रीकृष्ण के हाथों ही शिशुपाल का अंत होगा।
बुआ ने लिया 100 अपराध माफ करने का वचन
भगवान श्रीकृष्ण की बुआ को यह जानकर बहुत दुख हुआ कि उनके पुत्र की मृत्यु श्रीकृष्ण के हाथों होगी। उन्होंने अपने पुत्र शिशुपाल के 100 अपराध माफ करने का वचन श्रीकृष्ण से लिया। इस वचन को श्रीकृष्ण ने निभाया भी। उन्होंने शिशुपाल की वे सभी गलतियां और दुर्व्यवहार माफ कर दिए, जो 100 के नीचे थे। लेकिन नियति कहां किसी को माफ करती है?
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में हुई शिशुपाल की मृत्यु
शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण का महान विरोधी था। वह हमेशा श्रीकृष्ण को अपमानित करने की ताक में रहता था। जब अपने राजसूय यज्ञ में युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण को विशेष पूजनीय अतिथि का दर्जा दिया दिया तो यह शिशुपाल को सहन नहीं हुआ। उसने भगवान श्रीकृष्ण को भरी सभा में भला-बुरा कहना और गालियां देना शुरू कर दिया। शिशुपाल के 100 दुर्व्यवहारों तक भगवान श्रीकृष्ण धैर्य से सब सुनते रहे। जब शिशुपाल ने 101वां दुर्व्यवहार किया, भगवान श्रीकृष्ण ने उसका शीश सुदर्शन चक्र से काट दिया। इस प्रकार रावण का उसके पुनर्जन्म में भी उसकी सद्गति फिर भगवान श्रीहरि के हाथों ही हुई।
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