Mahadev Temple Story: भगवान शिव, असुरों को वरदान बड़ी ही आसानी से दे देते थे। ऐसे ही एक असुर को जब भगवान शिव ने वरदान दे दिया तो, उसने देवताओं को ही देवलोक से बाहर निकाल दिया। उसके बाद उस असुर का वध भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हुआ था। जहां असुर मारा गया था, वहां आज एक शिवलिंग स्थापित है, जो समुद्र में समा जाता है। चलिए जानते हैं इस शिवलिंग की कथा क्या है और ये कहां स्थित है?
शिव पुराण की कथा
ये उस समय की बात है जब देवी सती ने आत्मदाह कर लिया था। पौराणिक काल में ताड़कासुर नाम का एक असुर हुआ करता था। देवी सती के देह त्यागने के बाद, ताड़कासुर ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। कुछ सालों बाद भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए। फिर शिवजी ने ताड़कासुर से वरदान मांगने को कहा। तब ताड़कासुर ने कहा प्रभु मुझे अजर-अमर होने का वरदान दीजिए। तब भगवान शिव बोले, मैं तुम्हें ये वरदान नहीं दे सकता। तुम कोई दूसरा वरदान मांगो, क्योंकि जिसने भी जन्म लिया है उसे एक न एक दिन मरना ही पड़ेगा। फिर ताड़कासुर ने का प्रभु मुझे वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु आपके पुत्र के हाथों ही हो और उसकी उम्र केवल छह दिन की ही हो। भगवान शिव ने ताड़कासुर को वह वरदान दे दिया और वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
देवताओं की हार
भगवान शिव से वरदान मिलने के बाद ताड़कासुर अहंकारी हो गया। उसने सबसे पहले पृथ्वीलोक और पाताललोक को अपने अधीन कर लिया। फिर एक दिन उसने देवलोक पर भी आक्रमण कर दिया। देवताओं ने राजा मुचुकुंद की सहायता से ताड़कासुर को परास्त कर दिया। परन्तु ताड़कासुर बार-बार देवलोक पर आक्रमण करता रहा। अंत में उसने देवताओं को हरा कर देवलोक पर भी अधिकार कर लिया। फिर उसने देवताओं को देवलोक से बाहर कर दिया। देवताओं के जाने के बाद ताड़कासुर वहीं से तिनोलोकों पर शासन करने लगा।
भगवान शिव का विवाह
उसके बाद सभी देवतागण ब्रह्माजी जी के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर देवताओं ने ब्रह्माजी से रक्षा करने को कहा। तभी आकशवाणी हुई कि तुम लोगों की रक्षा केवल पर्वत राज हिमालय ही कर सकते हैं। उनसे जाकर कहो कि वह एक पुत्री को उत्पन्न करें। आकाशवाणी की बातें सुनकर, सभी देवता पर्वत राज हिमालय के पास गए और उन्होंने हिमालय को आकाशवाणी की बात बताई। उसके बाद पर्वत राज हिमालय की पत्नी ने नौ महीने बाद एक पुत्री को जन्म दिया। जब वह बड़ी हुई तो, नारद जी के कहने पर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या करने लगी। कई सालों बाद भगवान शिव पर्वत राज हिमालय की पुत्री गिरिजा के सामने प्रकट हुए और उनकी विनती स्वीकार कर ली। फिर धूम-धाम से भगवान शिव और देवी गिरिजा का विवाह हुआ। देवी गिरिजा ही माता पार्वती के नाम से जानी जाती हैं।
ताड़कासुर का वध
फिर कुछ समय बाद देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव और माता पार्वती ने एक पुत्र को उत्पन्न किया। ये पुत्र कुमार कार्तिकेय के नाम से जाने जाते हैं। फिर सभी देवताओं ने कुमार कार्तिकेय को अपना सेनापति नियुक्त किया। उसके बाद देवताओं और ताड़कासुर में भयंकर युद्ध हुआ। अंत में कुमार कार्तिकेय के हाथों ताड़कासुर मारा गया। लेकिन जब कुमार कार्तिकेय को पता चला कि यह असुर शिव जी का भक्त था तो, उन्हें पछतावा होने लगा। वह मन ही मन सोचने लगे, ऐसा क्या किया जाए जो इस पाप से मुक्त हो सकूं।
ऐसे हुई मंदिर की स्थापना
कुमार कार्तिकेय के बारे में जब भगवान विष्णु को पता चला तो, वह उनके पास पहुंचे। फिर उन्होंने ही कुमार कार्तिकेय से उस जगह शिवलिंग स्थापित करने को कहा। उसके बाद कुमार कार्तिकेय ने वहां एक शिवलिंग की स्थापना की, ऐसा माना जाता है की आज भी कुमार कार्तिकेय रोज यहां शिवलिंग पर जल अर्पित करने आते हैं। इस मंदिर को स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
कहां है स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर ?
भगवान शिव का ये अनोखा मंदिर गुजरात के जंबूसर में स्थित है। यह मंदिर अरब सागर के मध्य कैम्बे तट पर मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि यह अनोखा मंदिर सुबह और शाम, दिन में दो समुद्र में समा जाता है।
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