भगवान राम को लेकर भारत में काफी सालों से राजनीति होती आ रही है। अभी कुछ समय से भगवान राम के नाम को लेकर भी कुछ राजनीतिक संगठनों ने अपने मत रखने शुरू किए हैं। आजकल कुछ नेता श्रीराम बनाम सीताराम कर रहे हैं। उनका कहना है कि जय श्रीराम एक सांप्रदायिक नारा है, जबकि सीता राम बोलना नारी के प्रभुत्व को दर्शाता है। भारतीय संस्कृति में स्त्री को देवी स्वरूप माना गया है और पुरुष से पहले उनका नाम लेना चाहिए। जैसे गौरीशंकर, उमामहेश की तरह ही श्रीराम की जगह सीताराम होना चाहिए।
जबकि ऐसे बिल्कुल भी नहीं है। सीताराम और श्रीराम एक ही नाम हैं। शास्त्रों के अनुसार कृष्ण से पहले राधा और राम से पहले माता सीता का नाम आता है। ऐसे में अगर श्रीराम के नाम को देखा जाए तो यह सीताराम से अलग नहीं है।
एक ही हैं श्रीराम और सीताराम का नाम
स्कंद पुराण के श्लोक ‘रामस्य धर्मपत्नी या सा देवी लोकपूजिता। वैदेही जानकी सीता लक्ष्मीर्भूत्वाऽयोनिजा।।’ के अनुसार भगवान विष्णु ने राम के रूप में और माता लक्ष्मी ने सीता के रूप में त्रेतायुग में अवतार लिया था। वहीं, श्रीसूक्त, जो ऋग्वेद और अथर्ववेद में पाया जाता है, इसमें माता लक्ष्मी की स्तुति दी गई है। इसमें उन्हें बार-बार ‘श्री’ कहा गया है। इसका अर्थ है कि माता लक्ष्मी को श्री कहा जाता है। स्कंद पुराण, ब्रह्मांड पुराण आदि में माता सीता को लक्ष्मी का अवतार कहा गया है। इसी कारण माता सीता को शास्त्रों और ग्रंथों में ‘श्री’ से संबोधित किया गया है। विष्णु भगवान को भी श्रीहरिविष्णु कहा जाता है। इसका अर्थ श्री मतलब लक्ष्मी के हरि भगवान विष्णु है।
जब भी श्रीराम लिखा जाता है तो श्री और राम को अलग नहीं एकसाथ लिखा जाता है। इस मुख्य कारण है कि श्रीराम दो शब्दों से मिलकर बना है पर इनका अर्थ एक ही है। इसमें श्री+राम है, जिसमें श्री का अर्थ सीता से है। दरअसल श्रीराम में कर्मधारय समास है। इस समास में दोनों शब्द एक व्यक्ति या वस्तु के बारे में बताते हैं। इस कारण सीताराम और श्रीराम एक ही शब्द हैं। अगर सीताराम कहें या श्रीराम, दोनों में कोई भी अंतर नहीं होगा।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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