प्रभाकर कुमार मिश्रा, दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि सभी महिलाओं को सुरक्षित और क़ानून सम्मत तरीके से गर्भपात करने का अधिकार है। कोर्ट के आज के फैसले के बाद सिर्फ विवाहित महिलाएं ही नहीं, अविवाहित महिलाएं भी 24 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती है।
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कोर्ट के इस फैसले से लिव-इन रिलेशनशिप और सहमति से बने संबंधों से गर्भवती हुई महिलाओं को बड़ी राहत मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी रूल्स के नियम 3-B का विस्तार किया है। सामान्य मामलों में 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के गर्भ के एबॉर्शन का अधिकार अब तक विवाहित महिलाओं को ही था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत रेप में ‘वैवाहिक रेप’ शामिल होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि पतियों के द्वारा किया गया महिला पर यौन हमला बलात्कार का रूप ले सकता है और बलात्कार की परिभाषा में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के तहत वैवाहिक बलात्कार शामिल होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति, उसे अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है और यहां तक कि एक एकल और अविवाहित महिला को भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत यह अधिकार है और उसे गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक नियमों के तहत गर्भपात का अधिकार है।
एक अविवाहित महिला ने कोर्ट में 24 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी जिस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
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गौरतलब है कि पत्नी की सहमति के बगैर पति द्वारा शारीरिक सम्बंध बनाये जाने को बलात्कार का अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल लम्बित है। दिल्ली हाईकोर्ट के दो जजों में सहमति न बन पाने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट आया था।
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