Ron Bahadur Thapa Interesting Family Tree: लोकसभा चुनाव 2024 की पहले फेज की वोटिंग में अब 3 दिन बाकी है। 19 अप्रैल को देशभर में 102 सीटों पर वोटिंग होगी। असम में भी 14 लोकसभा सीटों पर मतदान होंगे और यहां पहले फेज में भी वोटिंग होगी। इसके अलावा असम में 26 अप्रैल और 7 मई को दूसरे और तीसरे फेज के भी मतदान होंगे, लेकिन यहां असम लोकसभा चुनाव और वोटिंग की बात हो रही है एक परिवार के कारण, जिसकी कहानी काफी अनोखी है।
कहानी का कनेक्शन, इस परिवार के मेंबरों से हैं। जी हां, यह परिवार इतना बड़ा है कि इसमें 350 वोटर्स हैं, जो 19 अप्रैल को एक साथ मतदान करेंगे। यह परिवार नेपाली मूल के रॉन बहादुर थापा का है, जो आजकल असम के रंगपारा विधानसभा क्षेत्र और सोनितपुर संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले फुलोगुरी में रहता है।
LS polls: This big, fat Assam family has nearly 350 voters!
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— ANI Digital (@ani_digital) April 15, 2024
कितने सदस्य हैं रॉन थापा के परिवार में?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नेपाली पाम गांव के ग्राम प्रधान रहे रॉन बहादुर थापा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे तिल बहादुर थापा और उनका भरा पूरा परिवार आज भी पूरे देश में सुर्खियों में है। तिल बहादुर थापा ने ANI से बातचीत करते हुए बताया कि उनके परिवार के 350 लोग मतदान करने के लिए उत्साहित हैं। उनके पिता रॉन बहादुर की 5 पत्नियां थीं और उनसे उन्हें 12 बेटे और 9 बेटियां हुईं।
बेटों से करीब 56 पोते-पोतियां हैं। वहीं पूरे परिवार में करीब 150 से अधिक पोते-पोतियां आज भी जीवित हैं। बेटियों से कितने दोहते-दोहतियां हैं, इसकी पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन पूरे परिवार में कुल मिलाकर 1200 से ज्यादा मेंबर्स हैं। रॉन बहादुर थापा 1964 में नेपाल से आकर भारत में बसे थे, लेकिन 1997 में अपना इतना बड़ा फैमिली ट्री छोड़कर वे दुनिया से चले गए।
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सरकारी सुविधाओं से वंचित पूरा परिवार
दिवंगत रॉन बहादुर के दूसरे बेटे 64 साल के सरकी बहादुर थापा बताते हैं कि उनकी 3 पत्नियां और 12 बच्चे हैं। इसमें भी 8 बेटे हैं। वे खुद 1989 से ग्राम प्रधान हैं, लेकिन इतना बड़ा परिवार होने के बावजूद उन्हें इस बार का अफसोस हमेशा रहेगा। उनके दादा रॉन बहादुर 1964 में नेपाल से भारत आए और उसके बाद आज तक पूरा परिवार भारत में ही रहा है।
बावजूद इसके आज तक परिवार राज्य और केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाया है। कई बच्चे पढ़े-लिखे हैं। हायर एजुकेशल ले चुके हैं, लेकिन उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिली। परिवार के कुछ सदस्य नौकरी की तलाश में बेंगलुरु चले गए। देश के अन्य शहरों में भी उनके परिवार के कई सदस्य नौकरी कर रहे हैं। जो गांव में रहते हैं, उनमें से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूरी करके गुजारा करते हैं, लेकिन सरकारी स्कीमों से परिवार वंचित है।
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