Covid Patients Study: दुनियाभर में उस वक्त हड़कंप मच गया जब लाखों लोगों की कोरोना के कारण जान चली गई। पहले और दूसरे वेव के दौरान कोरोना का असर लोगों पर काफी गंभीर पड़ा। संक्रमण की चपेट में आने के बाद जिन लोगों को खराब हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया था, उनमें लंबे समय तक संक्रमण का असर काफी देखने को मिला। हालांकि, सवाल ये ही रहा कि आखिर क्यों अस्पताल से छुट्टी के बाद भी लोगों की कोरोना से मौत हो गई? इसका जवाब अब एक अध्ययन से सामने आया है।
महामारी के प्रभावों की बेहतर समझ के लिए एक शोध में बताया गया है कि कोविड मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उनमें से आधे मरीज एक साल बाद भी थकान और सांस की तकलीफ से जूझ रहे हैं। कोविड के लगभग आधे मरीजों कई लक्षण पाए गए।
आईसीएमआर (ICMR) ने कोविड मरीजों के मृत्यु के कारणों का ऐनालिसिस किया, जिसमें पता चला है कि अस्पताल से छुट्टी के बाद कम उम्र और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की मृत्यु का संदेह ज्यादा होता है। इसके अलावा डोज लेने से पहले संक्रमित मरीजों को कम खतरा होता है।
स्टडी से हुआ खुलासा
स्टडी में पता चला है कि अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद एक साल के अंत में 6.5% की मृत्यु हो गई। नेस्टेड मैच्ड केस कंट्रोल ऐनालिसिस, कोरोना संक्रमण के एक वर्ष के बाद मृत्यु की वजहों का पता किया गया था। जिनमें पाया गया कि 40 वर्ष से ज्यादा आयु के पुरुषों को छुट्टी मिलने के एक साल के अंदर मरने की आशंका अधिक होती है, जो पहले से पीड़ित थे और बाद में उन्हें कोरोना ने जकड़ लिया था। जिन मरीजों ने कोविड टीके की कम-से-कम एक डोज ली, उनमें मृत्यु में 60% कमी आ गई। ये सभी वही रोगी पाए गए जिन्हें शुरु में कोविड के दौरान अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
कई मरीजों को ठीक होने के बाद भी लगा अधिक समय
वैसे 18 से 45 वर्ष के लोगों में थ्रोम्बोटिक घटनाओं पर कोरोना टीके का असर को पता लगाने के लिए अध्ययन किया जा रहा है, जिसे 2022 में शुरू किया गया। कोरोना से हुई मौतों पर कई और स्टडी भी हो रही हैं। बिना ट्रिटमेंट लंबे समय तक कोविड मरीजों की सामान्य जिंदगी को फिर से शुरू करने और काम करने की क्षमता को प्रभावित करता है। कई मरीजों के लिए कोविड से ठीक होने में एक साल से ज्यादा समय लगेगा।
मध्य चीनी शहर वुहान में जनवरी और मई 2020 के बीच कोरोना से पीड़ित लगभग 1,300 लोगों पर यह शोध किया गया। कोरोना महामारी वुहान से ही फैला था जिसने करोड़ों लोगों को संक्रमित किया और कई अधिक लोगों की मौत का जिम्मेदार है।
कम से कम एक लक्षण वाले रोगी की हिस्सेदारी 68 प्रतिशत से घटकर 49 प्रतिशत हो गई। 6 महीने के बाद 26 प्रतिशत में सांस लेने में तकलीफ 12 महीने के बाद बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई। पुरुषों की तुलना में ज्यादातर महिलाओं में थकान या लगातार कमजोरी की संभावना 43 प्रतिशत अधिक है। लेकिन कुछ रोग निर्णय से पहले काम करने वाले 88 प्रतिशत एक साल बाद अपनी नौकरी पर लौट आए थे।