Hernia Causes: मनुष्य की मांसपेशियों या कनेक्टिव टिशूज के किसी कमजोर हिस्से से अंदर के किसी अंग या टिशू के बाहर आने से हर्निया होता है. देखने में यह एक जगह की समस्या लग सकती है, परंतु यह शरीर की बनावट और मेटाबॉलिज्म में बुरे बदलाव की चेतावनी है. इसी बारे में बता रहे हैं डॉ. आशीष गौतम, सीनियर डायरेक्टर-जनरल, लेप्रोस्कोपिक और रोबोटिक सर्जरी, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल पटपड़गंज, दिल्ली. डॉ. गौतम ने बताया कि अधिक वजन बढ़ना (Obesity) हर्निया होने का स्पष्ट खतरा है. फैट बढ़ जाने से मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है, पेट के अंदर दबाव बढ़ता है और ऐसे में यदि सर्जरी हो तो मरीज के ठीक होने में भी अधिक समय लग सकता है. यहां जानिए मोटापा किन-किन तरीकों से हर्निया के खतरे को बढ़ाता है और इससे किस तरह बचकर रहा जा सकता है.
पेट के मोटापे से बढ़ता हर्निया का खतरा
डॉ. आशीष गौतम बताते हैं पेट के मोटापे से शरीर की गतिविधि बदल जाती है. अंदर के अंगों के चारों ओर फैट के जमाव से पेट की दीवरों पर दबाव बढ़ जाता है. साथ ही, सबक्यूटेनियस फैट कमजोर पड़ता है और फिर मांसपेशियों और फेसिया की परतें फैल कर कमजोर हो जाती हैं. धीरे-धीरे ये टिशू अपनी ताकत और लचीलापन खो देते हैं. ऐसे में अंदर की कमजोर दीवार पर दबाव पड़ने, जैसे कि खांसने, भारी चीज उठाने या मलत्याग के लिए जोर लगाने के कारण टिशू किसी गैप से बाहर निकल सकते हैं और इस तरह हर्निया हो सकता है.
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हर्निया कितनी तरह का होता है
हर्निया आम तौर पर तीन तरह के होते हैं – इनगुइनल, अम्बिलिकल और इनसिजनल. वैसे तो प्रत्येक का अपना कमजोर बिंदु होता है, लेकिन सभी की गतिविधि एक समान है, सही से काम नहीं करने वाले टिशू पर पेट के अधिक दबाव का असर पड़ता है. अधिक वजन वाले लोगों में लगातार अधिक दबाव पड़ने से हर्निया होने और सर्जरी (Hernia Surgery) के बावजूद दोबारा होने का अधिक खतरा रहता है.
हर्निया होने की बड़ी वजह है इनएक्टिव लाइफस्टाइल
आजकल लोग घंटों बैठ कर काम करते हैं. इससे पेट की कैविटी दब जाती है और बुनियादी मांसपेशियों में खून का बहाव कम हो जाता है. झुककर बैठने और गलत पोस्चर की वजह से समस्या और गंभीर हो सकती है. इससे शरीर के निचले हिस्से पर और भी दबाव पड़ता है. परिणामस्वरूप समय के साथ अंदरूनी अंगों को मजबूती देने वाली मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं. डॉक्टर बताते हैं कि कब्ज भी हर्निया की वजह बन जाती है. आहार में कम फाइबर लेने और शारीरिक व्यायाम नहीं करने से कब्ज एक आम समस्या बन रही है. ऐसे में मलत्याग के लिए जोर लगाने से पेट का दबाव बढ़ता है. पहले से कमजोर हो गए टिशू दबाव में आ जाते हैं. ये हर्निया होने के मैकेनिकल फैक्टर्स हैं. साथ ही, मोटापे में कनेक्टिव टिश्यू के बदलावों के चलते भी हर्निया का खतरा बना रहता है.

आहार और खानपान की गलत आदत
अधिक से अधिक लोगों के आहार में रिफाइंड कार्ब्स, फैट और नमक की अधिकता है, जबकि फाइबर की कमी है. खाने की गलत आदतों की वजह से लोगों का वजन बढ़ता है और कब्ज जैसी समस्या हो जाती है. इसलिए नियमित रूप से पेट साफ होना जरूरी है और इसके लिए आहार में पर्याप्त फाइबर शामिल करना चाहिए और पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए. अपनी डाइट में फल, सब्जियां, फलियां और पूर्ण अनाज लेना पाचन के लिए अच्छा है और यह वजन कम करने में भी सहायक है.
कैसे कम होगा हर्निया का खतरा
मोटे लोगों को हर्निया से बचने के लिए शारीरिक तनाव और मेटाबॉलिक असंतुलन दोनों से बचना होगा. ऐसा तब संभव है जब आप खानपान की अच्छी आदत डालकर और लाइफस्टाइल बदल कर धीरे-धीरे अपना वजन कम करें. शरीर के अंदर फैट और पेट के अंदर की दीवारों पर दबाव कम करें. डॉ. गौतम सलाह देते हैं कि शारीरिक व्यायाम की आदत डाल कर आप भी पेट को सहारा देने वाली मांसपेशियों को मजबूत बना सकते हैं. कुछ बुनियादी व्यायाम जैसे प्लैंक, ब्रिज और कंट्रोल्ड स्ट्रेच से मांसपेशियां मजबूत होंगी और फिर पोस्चर में भी सुधार करना होगा. यदि घंटों बैठ कर काम करते हैं तो सीधे बैठा करें. पीठ को सही सहारा दें. हर घंटे खड़े होकर कुछ समय टहलने से पेट का दबाव कम होगा और मांसपेशियों को मजबूती मिलेगी.
हर्निया की सर्जरी
मोटे लोगों के हर्निया के इलाज में तकनीकी कठिनाई है. ज्यादा फैट में जरूरी एनाटॉमिकल पॉइंट्स छिप सकते हैं, इन्फेक्शन का खतरा बढ़ सकता है और हीलिंग में भी समय लग सकता है. हेल्दी बॉडी वेट वाले लोगों की तुलना में रिकवरी में अधिक समय लगने और दोबारा समस्या होने का खतरा भी अधिक होता है. ऐसे में मोटापे को कंट्रोल करना जरूरी है. मोटापा कम करने का मतलब सिर्फ वजन कम करना नहीं, बल्कि मांसपेशियों को मजबूत बनाना, पोस्चर सही करना, पाचन क्षमता बढ़ाना और संतुलित आहार और नियमित व्यायाम करना भी है. ये सभी अच्छी आदतें हैं जो हर्निया का खतरा कम करने, सर्जरी के बाद रिकवरी में सुधार और बढ़ती उम्र में भी जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जरूरी हैं.
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