Shri Ram Mata Sita and Hanuman ji Aarti In Hindi: राम लला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर पूरी अयोध्या नगरी इस समय राममय में मुग्ध है। अगर आप अयोध्या नहीं जा रहे हैं तो भगवान श्रीराम की पूजा कुछ इस प्रकार कर सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार, आप घर बैठे श्रीराम की स्तुति के साथ उनकी आरती कर सकते हैं। अब राम जहां पर हैं वहा पर माता सीता और हनुमान जी तो जरूर रहेंगे। कहा जाता है जहा राम वहां हनुमान। इसलिए आप श्रीराम जी की स्तुति के साथ माता सीता और हनुमान जी की भी स्तुति कर सकते हैं। साथ ही हनुमान जी की आरती भी कर पढ़ सकते हैं। आज इस खबर में भगवान श्रीराम, माता सीता और हनुमान जी यानी तीनों देवी-देवताओं की आरती बता रहे हैं।
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राजा श्री राम की आरती
हे राजा राम तेरी आरती उतारूँ,
आरती उतारूँ प्यारे तुमको मनाऊँ,
अवध बिहारी तेरी आरती उतारूँ,
हे राजा राम तेरी आरती उतारूँ ॥
कनक सिहासन रजत जोड़ी,
दशरथ नंदन जनक किशोरी,
युगल छबि को सदा निहारूँ,
हे राजा राम तेरी आरती उतारूं ॥
बाम भाग शोभित जग जननी,
चरण बिराजत है सुत अंजनी,
उन चरणों को सदा पखारू,
हे राजा राम तेरी आरती उतारूं ॥
आरती हनुमत के मन भाए,
राम कथा नित शिव जी गाए,
राम कथा हृदय में उतारू,
हे राजा राम तेरी आरती उतारूं ॥
चरणों से निकली गंगा प्यारी,
वंदन करती दुनिया सारी,
उन चरणों में शीश नवाऊँ,
हे राजा राम तेरी आरती उतारूं ॥
हे राजा राम तेरी आरती उतारूं,
आरती उतारूँ प्यारे तुमको मनाऊँ,
अवध बिहारी तेरी आरती उतारूँ,
हे राजा राम तेरी आरती उतारूं ॥
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माता सीता की आरती
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
परम दयामयी दिनोधारिणी,
सीता मैया भक्तन हितकारी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
सती श्रोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्त वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन मति आई,
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय हरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
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हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
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