डॉ. के पी द्विवेदी शास्त्री
Miracles of Gopeshwar Mahadev: पौराणिक कथा के अनुसार द्वापरयुग में एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज की गोपियों के साथ महारास किया था। ये दृश्य इतना मनोहर था कि कई देवता भी इस दृश्य को देखने के लए आतुर थे, लेकिन इस महारास में सिर्फ महिलाएं ही शामिल हो सकती थीं। महादेव नारायण को अपना आराध्य मानते हैं, इसलिए वे अपने आराध्य की इस लीला का आनंद लेने के लए व्याकुल हो रहे थे। जब वे महारास देखने पृथ्वी लोक पर आए, तो गोपियों ने उन्हें वहां से ये कहकर लौटा दिया कि इस रास में पुरुषों का आना वर्जित है। इससे महादेव बहुत परेशान हो गए। तब माता पार्वती ने उन्हें यमुना मैया के पास भेजा। महादेव की इच्छा को देखकर यमुना मां ने उनका गोपी के रूप में शृंगार कर दिया।
तब महादेव गोपी रूप में उस महारास में शामिल हुए। इस रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें पहचान लिया। महारास समाप्त होने के बाद उन्होंने राधारानी के साथ मिलकर महादेव के गोपी रूप की पूजा की और उनसे इस रूप में ब्रज में ठहरने का आग्रह किया। महादेव ने अपने आराध्य के आग्रह को स्वीकार कर लिया। तब राधारानी ने उनके इस रूप को गोपेश्वर महादेव का नाम दिया। तब से आज तक महादेव का ये रूप वृंदावन में विराजमान है।
शिवरात्रि के दिन यहां दूर-दूर से भक्त आकर महादेव की आराधना करते हैं। भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं। सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक बताया जाता है गोपेश्वर महादेव का ये मंदिर। वृंदावन के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि मंदिर में मौजूद शिवलिंग की स्थापना भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने की थी। वज्रनाभ मथुरा के राजा थे और उनके नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है। उन्होंने महाराज परीक्षित और महर्षि शांडिल्य के सहयोग से संपूर्ण ब्रजमंडल की दोबारा स्थापना की थी और ब्रजमंडल में कृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर सहित अनेक मंदिरों का निर्माण कराया गया था। गोपेश्वर महादेव का मंदिर भी उनमें से एक है। इस मंदिर में आज भी शिव का गोपी के समान ही सोलह शृंगार कया जाता है। उसके बाद ही उनका पूजन होता है।
ज्ञातव्य हो कि यह विवरण गोपेश्वर महादेव सेवक परिवार से राकेश शर्मा द्वारा प्राप्त हुआ है। वह सेवक भी हैं और भक्त भी।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता कल्याण समिति दिल्ली, राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)