---विज्ञापन---

Meerut Ki Gajak: अजी…. मुरैना नहीं, मेरठ की है ‘असली गुड़ की गजक’, जानें 150 साल पुरानी कहानी

Meerut Ki Gajak: सर्दियां आते ही बाजारों में कई तरह की गजक (Gajak) दिखने और बिकने लगती हैं। इसकी कई वैरायटी भी बाजार में मौजूद होती हैं। पर क्या आप जानते हैं कि इस गजक को पहली बार किसने बनाया? गुड़ और तिल की बनी एक मिठाई जैसी चीज की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) […]

Edited By : Naresh Chaudhary | Updated: Jan 19, 2023 14:21
Share :
Meerut Ki Gajak

Meerut Ki Gajak: सर्दियां आते ही बाजारों में कई तरह की गजक (Gajak) दिखने और बिकने लगती हैं। इसकी कई वैरायटी भी बाजार में मौजूद होती हैं। पर क्या आप जानते हैं कि इस गजक को पहली बार किसने बनाया?

गुड़ और तिल की बनी एक मिठाई जैसी चीज की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मेरठ (Meerut Ki Gajak) जिले में हुई थी। धीरे-धीरे लोगों ने इसे अपना कारोबार बना लिया, लेकिन आज इसी गजक की वजह से एक सफलता मेरठ के नाम होने वाली हैं, क्योंकि मेरठ की इस गजक को जीआई टैग (GI Tag) मिलने वाला है।

---विज्ञापन---

और पढ़िए –Rajasthan Hindi News: अल्पसंख्यक छात्रावास के विरोध में बीजेपी, एडीए ने गुपचुप किया जमीन का आवंटन, जानें…

बदलने वाली है मेरठ में गजक कारोबार की तस्वीर

मेरठ के उद्योग विभाग ने इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है। उद्योग उपायुक्त दीपेद्र कुमार ने बताया कि जीआई टैग खरीदारों को गजक के बेमिसाल स्वाद, बनाने के तरीके और इसके पीछे की मूल कहानी की जानकारी हासिल करने में मदद करेगा। अधिकारी ने बताया कि गजक के लिए जीआई टैग का प्रस्ताव कुछ दिन पहले (उच्च अधिकारियों को) भेजा गया था।

---विज्ञापन---

150 साल पुरानी है मेरठ की गजक की कहानी

मेरठ के स्थानीय निवासियों की मानें तो करीब 150 साल पहले मेरठ शहर में गजक का उत्पत्ति हुई थी। उस वक्त यहां रहने वाले राम चंद्र सहाय ने गुड़ और तिल को मिलाकर एक स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किया था। इस कारोबार से जुड़े लोगों ने बताया कि गजक बनाने की प्रक्रिया में करीब दो दिन का समय लगता है। यह कैंडी बनाने जैसे है।

ऐसे बनाई थी पहली बार मेरठ की गजक

सबसे पहले गुड़ और पानी को तब तक उबाला जाता है जब तक कि एक गाढ़ा घोल न बन जाए। फिर इसे ठंडा किया जाता है। घोल को फैलाकर सूखने के लिए लटका दिया जाता है। इसके बाद इसे छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। इस दौरान इसनें तिल डाले जाते हैं और विभिन्न प्रक्रियाओं के बाद इसे मनचाही आकृतियां दी जाती हैं।

और पढ़िए –Lakhimpur Kheri Case: सुप्रीम कोर्ट में आशीष मिश्रा की याचिका पर सुनवाई, UP सरकार ने दिया ये जवाब

समय के साथ बदला गजक का स्वरूप

हालांकि समय के साथ गजक के मूल स्वरूप में कई परिवर्तन आए हैं। फिलहाल बाजार में खस्ता गजक, चॉकलेट गजक, काजू गजक, मलाई गजक, गजक रोल, गुड गजक और ड्राई फ्रूट गजक बाजार में मौजूद हैं। गजक निर्माता और विक्रेता नवीन मित्तल ने बताया कि मेरठ की गजक को जीआई टैग मिलने के बाद मेरठ की शान बढ़ेगी और कारोबार को बढ़ावा मिलेगा। नवीन मित्तल ने बताया कि इसकी विशिष्टता को भी बरकरार रखा जाएगा।

इन देशों में सप्लाई होती है मेरठ की गजक

राम चंद्र सहाय के वंशज वरुण गुप्ता ने बताया कि जीआई टैग निश्चित रूप से गजक की बिक्री बढ़ाएगा। वर्तमान में मेरठ से कनाडा, लंदन, सऊदी अरब, सिंगापुर, अमेरिका और लंदन समेत 18 देशों के लिए इसका निर्यात किया जाता है। मेरठ में 500 से अधिक गजक की दुकानें हैं, जो बुढाना गेट, बेगम पुल, गुजरी बाजार और गढ़ रोड जैसे क्षेत्रों में स्थित हैं। इस कारोबार में सालाना करीब 80 करोड़ रुपये का मुनाफा होता है।

और पढ़िए –Badrinath Temple: दिन-रात धंसता जा रहा है जोशीमठ, क्या बद्रीनाथ यात्रा पर पड़ेगा असर?

क्या होता है जीआई टैग

जीआई टैग का पूरा नाम है Geographical Indication Tag। हिंदी में कहें तो भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग। इसका मतलब है कि एक ऐसा उत्पाद जिसकी खुद की एक भौगोलिक पहचान है। यानी मेरठ की गजक यहां की एक पहचान है। इस गजक का आविष्कार या उत्पत्ति यहीं हुई है। टैग मिलने के बाद इसके पीछे की पूरी कहानी बताई जाएगी।

और पढ़िए –देश से जुड़ी खबरें यहाँ पढ़ें

HISTORY

Written By

Naresh Chaudhary

First published on: Jan 19, 2023 12:52 PM
संबंधित खबरें