Raja Bhaiya News : देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी सरगर्मियां अपने चरम पर हैं। चार चरणों की वोटिंग संपन्न हो चुकी है और अब सिर्फ तीन चरण के मतदान बाकी हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों ने अगले चरणों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया सुर्खियों में हैं। दो लोकसभा सीट प्रतापगढ़ और कौशांबी पर जीत के लिए हर पार्टी को राजा भैया का सपोर्ट चाहिए, लेकिन उन्होंने किसी भी पार्टी को समर्थन देने के बजाए न्यूट्रल रहने का फैसला लिया है। आइए 5 पॉइंट में समझते हैं कि राजा भैया ने ये फैसला क्यों लिया?
प्रतापगढ़ और कौशांबी में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। दोनों दलों के नेताओं ने राजा भैया से मुलाकात की थी। बेंगलुरु में अमित शाह से मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि राजा भैया भाजपा को अपना समर्थन दे सकते हैं। इसके बाद भी राजा भैया ने किसी भी पार्टी को सपोर्ट देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मतदाता अपने विवेक और पसंद के उम्मीदवार को वोट दें।
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उम्मीदवारों से अच्छे संबंध नहीं
भारतीय जनता पार्टी ने कौशांबी से विनोद सोनकर और प्रतापगढ़ से संगम लाल गुप्ता को टिकट दिया है, जबकि समाजवादी पार्टी ने कौशांबी से पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज और प्रतापगढ़ से एसपी पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है। अगर एसपी पटेल को छोड़ दे तो तीनों उम्मीदवारों से राजा भैया के अच्छे रिश्ते नहीं हैं।
राजा भैया के समर्थन से बिगड़ सकता है सियासी समीकरण
भाजपा सरकार हो या फिर सपा, लेकिन राजा भैया ने कभी भी किसी पार्टी के सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ा। वे निर्दलीय चुनाव लड़ते रहें। 2018 में उन्होंने अपनी नई पार्टी जनसत्ता दल बनाई। राजा भैया कुंडा से और उनके करीबी विनोद सरोज बाबागंज से विधायक हैं। कौशांबी लोकसभा क्षेत्र में ये दोनों विधानसभा सीटें आती हैं। उनके चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह प्रतापगढ़ क्षेत्र से एमएलसी हैं। ऐसे में उनका प्रभाव दोनों लोकसभा सीटों पर है। राजा भैया का वोट बैंक सिर्फ राजपूत ही नहीं, बल्कि पासी, यादव, कुर्मी और मुस्लिम भी हैं। सपा ने कौशांबी से पासी समुदाय और प्रतापगढ़ से कुर्मी समुदाय के उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा है। राजा भैया ने भाजपा को समर्थन किया तो पासी और कुर्मी वोटर नाराज हो सकते हैं, जिससे कुंडा में उनका जातीय समीकरण बिगड़ सकता है।
मुस्लिम-यादव वोटर भाजपा को नहीं देगा वोट
मुस्लिम और यादव वोटरों में राजा भैया की मजबूत पैठ है, लेकिन उनके समर्थन देने के बाद भी ये दोनों समुदाय भाजपा को वोट नहीं देगा। मुस्लिम और यादव मतदाताओं का सपोर्ट सिर्फ सपा के साथ है। ऐसे में अगर समर्थन के बाद भी भाजपा उम्मीदवार हार गए तो राजा भैया की छवि को झटका लग सकता है, इसलिए उन्होंने किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं देने का फैसला लिया है।
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सपोर्ट के बाद भी उम्मीदवार हार हो गए तो धूमिल हो जाएगी छवि
पिछले दो लोकसभा चुनावों 2014-2019 में भाजपा ने दोनों सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर है और अखिलेश यादव ने प्रतापगढ़ और कौशांबी में जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की है। मोदी-योगी के दम पर भाजपा उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में अगर सपोर्ट के बाद उम्मीदवार हार गए तो राजा भैया की धवि धूमिल होगी।
सपा से पुराना नाता
राजा भैया का सपा से पुराना रिश्ता है। वे मुलायम से लेकर अखिलेश सरकार में मंत्री रहे हैं। हालांकि, सत्ता बदलने के बाद उनकी सपा से दूरी बढ़ गई, लेकिन इसके बाद भी राजा भैया ने किसी दूसरी पार्टी से हाथ नहीं मिलाया। बताया जा रहा है कि राजा भैया सपा से और दूरी नहीं बढ़ाना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने जनता को अपने विवेक के आधार पर वोट डालने के लिए कहा है।