Lucknow News: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रविवार को स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना ऊदा देवी पासी की 21 फीट ऊंची प्रतिमा का भव्य अनावरण हुआं. मंच पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों मौजूद रहे, लेकिन इस पूरे आयोजन में इसका राजनीतिक संदेश की सबसे अधिक चर्चा इसी बात की रही. यह कार्यक्रम बीजेपी एमएलसी रामचंद्र प्रधान ने आयोजित किया था. रामचंद्र प्रधान को कभी मायावती के बेहद करीबी माना जाता था और यही बात राजनीतिक संकेत देती है कि बीजेपी अब दलित समाज, खासकर पासी समुदाय, को लेकर आक्रामक मोड में है. बीजेपी ये मैसेज देना चाहती है कि दलित नायकों की असली पहचान और सम्मान वही दे रही है और यह सिर्फ सांस्कृतिक नहीं, बल्कि पॉलिटिकल मूव भी है.
अखिलेश के वोट बैंक में सेंध का प्रयास
अखिलेश यादव का पूरा चुनावी नैरेटिव इस वक्त पीडीए यानि पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक के इर्द-गिर्द घूम रहा है, लेकिन आज का ये मंच, ऊदा देवी की प्रतिमा और बीजेपी के टॉप लीडरों की मौजूदगी को देखते हुए एक ही बात कह रहे हैं पीडीए की राजनीति को काटने के लिए बीजेपी दलित प्रतीकों पर ज़ोर दे रही है. अगर पासी समुदाय का झुकाव बीजेपी की तरफ बढ़ता है, तो सपा की PDA रणनीति कमजोर पड़ सकती है. पासी समाज का यूपी में बड़ा वोटबैंक है और दलित बिरादरी में इस जाति की राजनैतिक चेतना भी ज्यादा मजबूत है. ऐसे में उदादेवी के नाम पर ये आयोजन दलितों को बीजेपी के पक्ष में एकजुट करेगा. इसके अलावा बीएसपी के लिए पासी वोट बैंक हमेशा निर्णायक रहा है, लेकिन आज का कार्यक्रम मायावती के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि दलितों की नई राजनीति बीजेपी के हाथ में शिफ्ट हो रही है. रामचंद्र प्रधान जैसे नेता का इस तरह के आयोजन का चेहरा बनना और राजनाथ और योगी जैसे कद्दावर नेताओ की उपस्थिति दोनों मिलकर संकेत देते हैं कि बीजेपी अब दलित आइडेंटिटी पॉलिटिक्स को भी अपने रंग में रंगने की कोशिश कर रही है.
बीजेपी अपने दलित गौरव अभियान को दे रही धार
ऊदा देवी जैसी वीरांगना को बड़े स्तर पर सम्मान देना, स्थानीय समुदाय में प्रभावी पासी समाज को टार्गेट करना, और कार्यक्रम को राजनीतिक तौर पर हाई-प्रोफाइल बनाने से ये साफ़ दिखाता है कि बीजेपी सिर्फ विकास की राजनीति ही नहीं, बल्कि सामाजिक पहचान की राजनीति भी मजबूत कर रही है. लखनऊ का आज का कार्यक्रम सिर्फ प्रतिमा का लोकार्पण नहीं था, बल्कि यह एक राजनीतिक संकेत था कि यूपी की लड़ाई में बीजेपी दलित वोट बैंक को लेकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहती. पीडीए की बढ़ती ताकत और बसपा की परंपरागत पकड़ दोनों को काउंटर करने के लिए बीजेपी ने एक बड़ा दांव खेल दिया है.
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