केजे श्रीवास्तन/जयपुर
Rajasthan Assembly Elections: राजस्थान में सत्ता का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले वागड़ इलाके में नई पार्टी के गठन ने कांग्रेस और बीजेपी की चुनावी समीकरण को बिगाड़कर रख दिया है। यहां पर भारतीय ट्राईबल पार्टी (BTP) पहले से ही मजबूत थी, अब इसी पार्टी के दो विधायकों ने अलग होकर भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) बना ली। यहां की 17 आदिवासी सीटों के साथ सूबे की कुल 200 में से कुल 59 आरक्षित सीट ऐसी हैं, जहां पर प्रत्याशियों की जीत-हार का फैसला आदिवासी और दलित करते हैं। राजस्थान की राजनीति में कहा जाता है कि जो मेवाड़-वागड़ जीतता है, सरकार उसी की बनती है। यही कारण है कि पीएम मोदी दो बार, राहुल गांधी 1 बार और सीएम अशोक गहलोत पिछले 5 महीने में यहां 6 बड़े कार्यक्रम कर चुके हैं।
-
2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी को जबरदस्त पटखनी दे चुके BTP के दो विधायकों ने किया भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) का गठन
-
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 सीटों में से कांग्रेस 19 सीटों पर और भाजपा 12 सीटों पर और अन्य 3 सीट पर जीते, मेवाड़-वागड़ में कांग्रेस के 10 विधायक
कांग्रेस और बीजेपी दोनों की ही नजर आदिवासियों के वोटबैंक पर है, लेकिन राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सलूंबर, प्रतापगढ़ और उदयपुर की आदिवासी बाहुल्य सीट पर अब भारतीय आदिवासी पार्टी यानी BAP अस्तित्व में आ गई है। इस पार्टी का गठन उन्हीं दोनों विधायकों ने किया है, जिन्होंने साल 2018 के विधानसभा चुनावों में BTP से चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस और बीजेपी को चौंकाते हुए जबरदस्त जीत दर्ज की थी। अब नई पार्टी BAP 17 सीटों पर दमदार तरीके से इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के लिए बड़ी चुनौती पेश करेगी, इन दोनों दलों के लिए चिंता इसलिए भी है।
भील प्रदेश की मांग जोर पकड़ेगी
राजस्थान से सटे मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र आदिवासी हमेशा से ही अलग भील प्रदेश की मांग करते आए हैं नई बनी ‘भारतीय आदिवासी पार्टी’ पहले वह एक सामाजिक संगठन के रूप काम कर रही थी. पिछले विधानसभा चुनाव में उसने भारतीय ट्रायबल पार्टी (बीटीपी) को समर्थन को दिया था। अब ये बरसों पुरानी अलग भील प्रदेश के नाम पर राजनीती के मैदान में हैं। नई पार्टी बनाने वाले विधायक राजकुमार रोत ने आदिवासियों की पुराने मांग को लेकर ही अपनी नई पार्टी बनाई है। दावे की मानें तो राजस्थान से लगे मध्यप्रदेश, गुजारत और महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में भी उनकी पार्टी दमखम के साथ मैदान में नजर आएगी, क्योंकि कांग्रेस हो या बीजेपी इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने संवैधानिक प्रावधानों को यहां लागू करने के लिए काम नहीं किया है। फ्री की योजनाओं को ही वोट लेने का आधार बना रखा था। उनकी भील प्रदेश की मांग बरसों से है।
17 सीटें, लेकिन मुद्दों का असर 200 से से 59 आरक्षित सीटों पर
नई पार्टी के इस दावे के चलते दरअसल सत्ता का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले मेवाड़-वागड़ इलाके में भले ही महज 17 सीटें ही आदिवासी इलाके में हैं, लेकिन यहां पर उठने वाले मुद्दों का असर प्रभाव सूबे की 59 आरक्षित सीटों पर नजर आता है, इसलिए कोई भी पार्टी इस इलाके को नजरन्दाज नहीं करती।
कांग्रेस के लिए भावनात्मक इलाका
कांग्रेस के लिए यह इलाका इसलिए भी अहम है कि मेवाड़- वागड़ इलाके ने कांग्रेस को तीन मुख्यमंत्री दिए हैं। 17 साल तक सीएम रहने वाले मोहनलाल सुखाड़िया मेवाड़ के उदयपुर सीट से विधायक थे, लेकिन अब पिछले दो दशक से ज्यादा समय से बीजेपी के कब्जे में है। इसी इलाके से उसके दूसरे सीएम हरदेव जोशी बांसवाडा से विधायक थे, जिन्होंने लगातार 10 बार चुनाव जीता और शिवचरण माथुर ने नगर पालिका बोर्ड के अध्यक्ष से सीएम तक का सफ़र इसी इलाके से तय किया और ये तीनों ही कांग्रेस के कद्दावर नेता बाद में राज्यपाल भी बने।
यह है था चुनावी समीकरण
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 सीटों में से कांग्रेस 19 सीटों पर और भाजपा 12 सीटों पर और अन्य 3 सीट पर जीते थे। मेवाड़-वागड़ में 10 सीटों पर कांग्रेस जीती थी, यही कारण है कि प्रदेश के मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में सियासी वर्चस्व की लड़ाई चल रही है।
बीजेपी के लिए चिंता
पिछले एक दशक से बीजेपी मेवाड़- वागड़ के इलाक में लगातार मजबूती से पैर जमाती नजर आ रही है। मेवाड़ तो उसका गढ़ माना जाता है। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति की 32 सीटें भाजपा ने जीती थी। उसमें से वागड़ क्षेत्र की 10 में से 7 सीटों पर उसका कब्जा रहा था, जबकि कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी और सत्ता से दूर होना पड़ा था, लेकिन इस बार उसके मेवाड़ के बड़े नेता गुलाब चंद कटारिया सक्रीय राजनीति से विदाई ने बीजेपी के लिए यहां बड़ा वैक्यूम बना दिया है।
कांग्रेस की सक्रियता
राजस्थान में कांग्रेस के मुखिया सीएम अशोक गहलोत पिछले 5 महीने में आदिवासी बहुल दक्षिणी राजस्थान का तूफानी दौरा कर कई बड़ी सौगातें दी हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ हाल ही में राहुल गांधी ने भी आदिवासियों के प्रमुख धार्मिक स्थल मानगढ़ धाम पर बड़ी-बड़ी सभाएं कर चुके हैं।
भाजपा-कांग्रेस के लिए अब क्या?
फिलहाल तो बीटीपी, जनता सेना और अब भारतीय आदिवासी पार्टी का बढ़ता आधार कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही सताने लगा है। यही कारन है की अब ये दोनों ही पार्टियां एक स्पेशल टास्क के तहत इस क्षेत्र में चुनाव मैदान में नजर आएगी और दोनों ही पार्टियों की कोशिश रहेगी कि आदिवासी इलाकों की इन पार्टियों से बेहतर सम्बन्ध बनाए रखें, ताकि सत्ता में आने की सूरत में उनका समर्थन लिया जा सके।