Lok Sabha Election 2024 (केजे श्रीवत्सन) : राजस्थान की राजनीति में मेवाड़-वागड़ का अलग ही रुतबा है। यहां से ही राजनीति में चलने वाली आंधी से सत्ता के रुख की पहचान होती है। सियासी दल भी यहां की इस तासीर को समझते हैं। राजस्थान का यह दक्षिण जिला मध्य प्रदेश और गुजरात से सटा हुआ है। इसके चलते इन दोनों राज्यों के मुद्दों और सियासी बयार का भी यहां असर नजर आता है। सियासी हवा का असर होता है। बेणेश्वर के किनारे बैठे मावजी महाराज का मंदिर संपूर्ण देश के आदिवासियों का तीर्थ स्थल है। परंपरागत तौर पर आदिवासी इलाके में कांग्रेस की जड़े काफी गहरी थी। इसी आदिवासी इलाके से जीतकर हरदेव जोशी राजस्थान के सीएम भी बने, लेकिन साल 2014 में मोदी लहर के बाद यहां कांग्रेस के पांव उखाड़ते नजर आए।
कांग्रेस से नहीं BAP से है बीजेपी का मुकाबला
वैसे भी कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के लिए ही आदिवासी वोट बैंक को साधना एक बड़ी चुनौती रही है, लेकिन राजस्थान में आदिवासी पार्टियों के दमखम ने दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों की बेचैनी बढ़ा दी है। ऐसी ही एक आदिवासी लोकसभा सीट बांसवाड़ा-डूंगरपुर है, जहां से बीजेपी ने मैदान में ताल ठोंका है, लेकिन यहां उसका मुकाबला कांग्रेस के साथ नहीं बल्कि भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के साथ है, जिसने विधानसभा चुनाव में वागढ़ इलाके में कांग्रेस और बीजेपी की बेचैनी बढ़ा दी थी।
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भाजपा ने महेंद्रजीत सिंह मालवीय को दिया टिकट
बीजेपी ने बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट से कांग्रेस से आए महेंद्रजीत सिंह मालवीय को टिकट दिया है। मालवीय कभी अशोक गहलोत के करीबी माने जाते थे। कांग्रेस में रहते हुए मालविया ने पार्टी का यहां से नेतृत्व किया था और दूसरी बार विधानसभा जीतकर पहुंचे। बीजेपी में शामिल होने के साथ ही उन्होंने अपने विधायकी पद से इस्तीफा दे दिया। इस बार पार्टी बदल गई है, लेकिन वे दमखम दिखाने का दावा कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि बीजेपी ने मालवीय को चुनावी मैदान में उतारकर आक्रामक रुख अपनाया है। साथ ही भाजपा ने कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव पैदा करने का काम किया है। कहा जा रहा है कि इस कदम के जरिए बीजेपी करीब एक दर्जन आदिवासी इलाकों पर अपनी धाक जमाने की कोशिश भी करेगी।
इंडिया गठबंधन के तहत BAP उम्मीदवार इस सीट से ठोंकेगे ताल
BAP की ओर से चौरासी के विधायक और आदिवासी नेता राजकुमार रौत चुनाव मैदान में हैं। इससे पहले वे भारतीय ट्राईबल पार्टी में थे। साल 2018 में वे राज्य में सबसे कम उम्र के विधायक बने थे और 2023 में सबसे ज्यादा वोट लेकर विधानसभा पहुंचे। इस बार वे संसद में जाकर आदिवासियों से जुड़े मुद्दों को उठाने का दावा कर रहे हैं। वहीं, डूंगरपुर में राजकुमार का वर्चस्व माना जा सकता है। चार विधानसभा चुनावों में दो पर उन्हीं की पार्टी के विधायक हैं और दो विधानसभा चुनावों में दूसरे नंबर पर रहे।
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रोचक होगा मुकाबला
इंडिया गठबंधन के तहत राजकुमार रौत इस सीट से ताल ठोंक रहे हैं। BAP के साथ कांग्रेस का वोट बैंक भी उनके पाले में आएगा तो मुकाबला रोचक होगा। विधानसभा चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी कई बार यहां आकर आदिवासियों को साधने की कोशिश कर चुके हैं। चूंकि, मालवीय के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिए यहां रोड शो करके डैमेज कंट्रोल की कोशिश की थी। इस बार मुकाबला टक्कर का माना जा रहा है।
क्यों गेम चेंजर हो सकती है BAP पार्टी
BAP ने 2023 के विधानसभा चुनाव में डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले की तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी। इससे पहले यह पार्टी गुजरात की भारतीय ट्राईबल पार्टी थी और उससे अलग होकर बनी है। राजकुमार रौत ने 2023 में राजस्थान की सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी।
डूंगरपुर-बांसवाड़ा क्षेत्र के क्या हैं चुनावी मुद्दे?
जहां बीजेपी मोदी सरकार द्वारा आदिवासी इलाकों में किए गए विकास कार्यों को गिनाकर वोट मांगा जा रही है तो वहीं BAP कई सालों से आदिवासी अधिकार और आदिवासी के लिए आरक्षण जैसे मुद्दों पर बात करती है। इसमें अलवर भील राज्य की मांग भी शामिल है। मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा नहीं दिए जाने से बीजेपी से आदिवासी खफा हैं। BAP ने भील आदिवासियों के लिए अलग राज्य और आदिवासी इलाकों में अनुसूचित जनजाति को शिक्षा और नौकरी में 75 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था।
इंडिया गठबंधन की राजस्थान में एक और एंट्री
सबसे पहले नागौर में हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी से गठबंधन करके INDIA ने गठबंधन की शुरुआत की थी। इसके बाद सीकर की सीट माक्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को दे दी गई और अब बांसवाड़ा की सीट पर कांग्रेस के साथ यह आदिवासी पार्टी गठबंधन कर सकती है। इसके लिए इंडिया को कुछ शर्तों के साथ गठबंधन का प्रस्ताव भी भेज दिया गया है।
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जानें वोटों का गणित
डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर कुल वोटर लगभग 21 लाख है। अगर जातिगत समीकरण के लिहाज से देखें तो आदिवासी 76%, ओबीसी 10%, मुस्लिम 1.5% , एससी 3.5% और सामान्य 5 से 7% वोटर हैं। यानी आदिवासी वोटर एकतरफा अपने प्रत्याशी का नेता चुनते हैं। यहां पर डूंगरपुर, सागवाड़ा, चोरासी, घाटोल, गढ़ी, बांसवाड़ा, बागीदौरा और कुशलगढ़ विधानसभा सीटें हैं।