MP Assembly Election: मध्य प्रदेश में साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भले ही मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई घोषणा नहीं की है। लेकिन पार्टी पीसीसी चीफ कमलनाथ का फेस आगे करके ही चुनाव मैदान में उतरने जा रही है, कई मौके पर पार्टी के नेता कमलनाथ को भावी सीएम बता चुके हैं। लेकिन कांग्रेस के विधायक उमंग सिंघार ने प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठाकर प्रदेश में एक बार फिर नई सियासी चर्चा छेड़ दी है।
कांतिलाल भूरिया को सीएम बनाने की उठाई मांग
दरअसल, रविवार को धार जिले के बदनावर में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जिसमें उमंग सिंघार ने कांग्रेस के सीनियर नेता और कांग्रेस विधायक कांतिलाल भूरिया का नाम लेते हुए कहा कि अगर उन्हें बनाना ही है तो चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाने की जगह सीएम फेस बनाया जाता। क्योंकि अब प्रदेश में आदिवासी वर्ग से मुख्यमंत्री बनाना चाहिए। ऐसे में मंत्री उमंग सिंघार ने आदिवासी कार्ड खेलकर कमलनाथ के रास्ते में बड़ा रोड़ा अटकाने की कोशिश की है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। जब प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठी हो।
केवल कांग्रेस की ही नहीं बीजेपी के नेता भी गाहे बगाहे प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठाते रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक चुनाव में सबसे अहम माना जाता है। ऐसे में उमंग सिंघार की मांग के बाद प्रदेश में फिर से आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग जोर पकड़ सकती है। क्योंकि पिछले 54 साल से प्रदेश में कोई आदिवासी सीएम नहीं बना है।
22 प्रतिशत आदिवासी आबादी सिर्फ एक सीएम
दरअसल, मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। जबकि करीब 100 सीटों पर इस वर्ग का सीधा असर माना जाता है। जबकि प्रदेश में आदिवासी वर्ग की करीब 22 प्रतिशत आबादी है। जबकि प्रदेश के गठन से लेकर अब तक इतिहास में केवल एक मात्र मुख्यमंत्री राजा नरेश चंद्र सिंह बने हैं। वह भी 13 दिनों तक सीएम रहे थे। उनके बाद से प्रदेश में आदिवासी वर्ग से उपमुख्यमंत्री तो बने लेकिन सीएम नहीं बने।
उमंग सिंघार की बुआ और जमुना देवी प्रदेश की उपमुख्यमंत्री रह चुकी हैं। लेकिन अब उन्होंने प्रदेश में आदिवासी सीएम की मांग उठाई। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में हमेशा आदिवासी वोट बैंक जिस तरफ जाता है, सरकार उसी पार्टी की बनती है। 1993 के विधानसभा चुनावों से यही ट्रेंड चल रहा है। ऐसे में उमंग सिंघार ने अपने वर्ग से जोड़कर ही यह मांग की है।
2018 में कांग्रेस को मिला था आदिवासी वर्ग का साथ
दरअसल, 2003 से 2013 तक आदिवासी वर्ग कांग्रेस से दूर रहा। लेकिन 2018 में जब आदिवासी वर्ग का साथ कांग्रेस को मिला तो कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में वापस आ गई। पार्टी ने 47 में से 30 सीटों पर जीत हासिल की थी। यही वजह है कि कांग्रेस इस वोट बैंक की अहमियत को जानती है, जिससे पार्टी 2023 में भी आदिवासी वर्ग को लुभाने में जुटी है।
कांग्रेस का अपना तर्क
हालांकि कांग्रेस ने उमंग सिंघार के बयान को उनका निजी बयान बताया है। नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने कहा कि कांग्रेस आदिवासी वर्ग की सबसे हितेषी पार्टी है। प्रदेश को पहला उपमुख्यमंत्री कांग्रेस ने ही दिया था। जबकि फिलहाल हमारा पूरा फोकस चुनाव पर है। भले ही कांग्रेस के नेता उमंग सिंघार के बयान को उनका निजी बयान बता रहे हैं। लेकिन उनके इस बयान से कांग्रेस के अंदर भी एक सियासी मुद्दे पर चर्चा हो रही है।
ऐसे में एमपी में इस बार जनता का जनादेश किस पार्टी को मिलेगा ये तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतना तो साफ है कि, कांग्रेस में सर्वमान्य नेता बन जाने का जो सपना कमलनाथ सजोए बैठे हैं, उसकी डगर आसान नजर नहीं आ रही है।
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