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दिल्ली

नाबालिग रेप केस में हाईकोर्ट के फैसले पर ‘सुप्रीम’ रोक, जानें क्या कहा गया था जजमेंट में?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से रेप मामले में जो फैसला सुनाया था, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। पूरे देश में हाईकोर्ट जज के फैसले और टिप्पणी की निंदा हुई और फैसले को असंवदेनशील करार दिया गया था।

Author Reported By : Prabhakar Kr Mishra Edited By : Khushbu Goyal Updated: Mar 26, 2025 11:50
Supreme Court of India
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नाबालिग लड़की के साथ रेप की कोशिश से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था, जिस पर फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार को भी नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सुनवाई के दौरान कोर्ट की सहायता करने को कहा है।

जस्टिस गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हमें एक जज द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने पर खेद है। CJI के निर्देशों के अनुसार यह मामला स्वतः संज्ञान में लिया गया है। हाईकोर्ट के आदेश को देखा है। हाईकोर्ट के आदेश के कुछ पैरा जैसे 24, 25 और 26 में जज द्वारा बरती गई असंवेदनशीलता नज आई हैं और ऐसा नहीं है कि फैसला जल्द में लिया गया है। फैसला रिजर्व होने के 4 महीने बाद सुनाया गया है। पीड़िता की मां ने भी फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है और उसकी याचिका को भी इसके साथ जोड़ा जाए।

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क्या है नाबालिग रेप केस?

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उत्तर प्रदेश के कासगंज में 3 लोगों ने 11 साल की बच्ची से रेप करने की कोशिश की थी। पुलिस ने पहले केस दर्ज नहीं किया। कोर्ट के आदेश पर केस दर्ज हुआ तो जांच में खुलासा किया गया कि आरोपियों ने पीड़िता के ब्रेस्ट छुए। पायजामे का नाड़ा तक तोड़ दिया था। बच्ची को पकड़कर वे पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनकर लोग दौड़े आए तो आरोपी पीड़िता को छोड़कर भाग गए। मामला ट्रायल कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने इसे पॉक्सो एक्ट का केस बताया। रेप की कोशिश या यौन उत्पीड़न के प्रयास का मामला कहते हुए इसमें एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के साथ IPC की धारा 376 को एड कराया और आरोपियों को समन जारी करने आदेश दिया।

आरोपी समन और पुलिस केस के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे। हाईकोर्ट के जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने केस में फैसला सुनाया। अपने फैसले में उन्होंने कहा कि नाबालिग पीड़िता के ब्रेस्ट पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना, उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप या रेप करने की कोशिश नहीं माना जा सकता है। इसलिए आरोपियों के ऊपर लगाई गई रेप की कोशिश करने की धारा को हटाया जाए, लेकिन इस फैसले में सवाल यह उठा कि अगर लोग मौके पर नहीं आए होते तो बच्ची के साथ क्या होता? हाईकोर्ट जज के इस फैसले की देशभर में निंदा हुई। जिस तरह के शब्द फैसला सुनाते हुए इस्तेमाल किए गए, उनकी आलोचना हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया।

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Edited By

Khushbu Goyal

Reported By

Prabhakar Kr Mishra

First published on: Mar 26, 2025 11:27 AM

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