Surrogacy Law: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सरोगेसी एक्ट के कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट के दायरे से दूर रखा जाए। क्योंकि इससे इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा मिलेगा साथ ही किराए की कोस से जन्मे बच्चे के भविष्य को लेकर भी हमेशा आशंका बनी रहेगी।
केंद्र सरकार ने इस मामले में एक हलफनामा भी दायर किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्यों ने 19 जनवरी को अपनी बैठक में राय दी थी कि अधिनियम (एस) के तहत परिभाषित युगल की परिभाषा सही है। अधिनियम के तहत समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। वहीं, लिव-इन पार्टनर कानून से बंधे नहीं हैं और सरोगेसी के जरिए पैदा हुए बच्चे की सुरक्षा सवालों के घेरे में आ जाएगी।
Centre informs SC live-in partners, same-sex couples cannot be allowed to avail services under surrogacy law
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दो ही परिस्थितियों में एक्ट का मिल सकता है लाभ
मामले की सुनवाई जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच कर रही है। केंद्र ने कहा कि सिर्फ दो ही परिस्थितियों में सिंगल महिला को किराए की कोख की इजाजत मिल सकती है। पहला या तो महिला विधवा हो या समाज के डर से खुद बच्चा न पैदा करना चाहती हो। दूसरा कि महिला तलाकशुदा हो या और वो दोबारा शादी करने को इच्छुक न हो, लेकिन बच्चा पालने की ख्वाहिश रखती हो। इन दोनों ही स्थितियों में महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा होने की शर्त रखी गई है।
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