Maulana Madani on Nitish-Naidu: जमीयत उलेमा ए हिंद के संविधान संरक्षण सम्मेलन के साथ मौलाना अरशद मदनी ने मोदी सत्ता की दो बैसाखियों को हिला दिया है। जमीयत की अगुवाई में पहला कार्यक्रम इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित हुआ और इसी कार्यक्रम में मौलाना मदनी ने नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू को चेताया कि संसद से वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पास हुआ तो इसके जिम्मेदार नीतीश और नायडू भी होंगे।
मदनी ने साफ कर दिया कि वे गठबंधन की बारीकियों को समझते हैं कि और ये बात जानते हैं कि केंद्र की सत्ता नीतीश और नायडू के समर्थन पर टिकी है। मदनी ने दिसंबर से पहले आंध्र प्रदेश में 5 लाख मुस्लिमों को इकट्टा कर अपनी बात नायडू तक पहुंचानी है। हालांकि 25 नवंबर से संसद का शीत सत्र शुरू होने जा रहा है। और उससे पहले ही वक्फ बोर्ड विधेयक को लेकर ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी में घमासान मचा हुआ है।
विपक्षी सांसदों ने लोकसभा स्पीकर से मिलकर जेपीसी चेयरमैन की शिकायत की और उन पर पक्षपात के आरोप लगाए। देखना होगा कि वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक संसद में कब पेश होता है?
मदनी की चेतावनी को अनदेखा कर पाएंगे नीतीश-नायडू?
सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू मौलाना मदनी की चेतावनी को नजरअंदाज कर पाएंगे? ये बात ध्यान रखी जानी चाहिए लोकसभा के साथ हुआ आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनावों में नायडू ने मुसलमानों के लिए अलग से आरक्षण देने का वादा किया था। और जैसे कि आज की राजनीति है नायडू ने कभी ये नहीं कहा कि उन्हें मुस्लिम वोट नहीं चाहिए।
दिल्ली में भी जमीयत के कार्यक्रम में नायडू के दूत नवाब जान ने कहा कि हिंदू-मुस्लिम हिंदुस्तान की दो आंखें हैं और नायडू एक सेकुलर व्यक्ति हैं। फिर सवाल ये है कि नायडू मौलाना मदनी की चेतावनी नजरअंदाज करेंगे या फिर वक्फ बोर्ड विधेयक पर अलग स्टैंड लेंगे।
हालांकि नीतीश कुमार की स्थिति चंद्रबाबू नायडू से ज्यादा मुश्किल है। बिहार में मुस्लिम आबादी 17 प्रतिशत से ज्यादा है। और नीतीश को पता है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट उनके लिए कितना जरूरी है। ऐसे में मदनी की चेतावनी को अनदेखा कर पाना नीतीश कुमार के लिए आसान नहीं है। लेकिन क्या नीतीश कुमार मोदी सत्ता से अलग स्टैंड ले पाएंगे?
बता दें कि संसद के शीत सत्र से पहले बीजेपी ने चिराग पासवान, जयंत चौधरी और जीतनराम मांझी के साथ मीटिंग की है और मुद्दों पर आपसी तालमेल के साथ सहमति बनाने की बात की है। लेकिन इस मीटिंग में न तो जेडीयू के नेता थे, और न ही तेलुगू देशम पार्टी के… यहां तक कि अपना दल के नेता भी उपस्थित नहीं थे।
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नीतीश-नायडू का स्टैंड बहुत कुछ बदल देगा
संसद में वक्फ बोर्ड विधेयक चाहे जब पेश हो, लेकिन वक्फ बोर्ड विधेयक संसद में पास होगा या नहीं, ये नीतीश कुमार और नायडू के समर्थन पर निर्भर है। अगर संसद में नीतीश और नायडू बिल का विरोध करते हैं तो मोदी सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगी। इससे एक संदेश साफ जाएगा कि सरकार स्थिर नहीं है और फिर एनडीए की बुनियाद हिल जाएगी। लेकिन नीतीश कुमार वक्फ बोर्ड विधेयक के समर्थन में गए तो फिर बिहार विधानसभा चुनाव में उनके मुश्किल हो जाएगी।
पिछले 6 महीने से नीतीश कुमार पटना स्थित मजारों पर घूम-घूम कर चादर चढ़ा रहे हैं। मकसद यही है कि मुस्लिम वोट को संदेश दिया जाए कि वे भले ही एनडीए में हों, लेकिन वे मुस्लिम हितों से परहेज नहीं करते हैं।
लेकिन मौलाना मदनी नीतीश कुमार से एक चादर से ज्यादा की उम्मीद रखते हैं, और ये मौका वक्फ बोर्ड विधेयक के संसद में पेश होने पर आएगा। चंद्रबाबू नायडू के पास अभी पांच साल का वक्त है, लेकिन नीतीश कुमार के पास इतना वक्त नहीं है। हो सकता है कि 2025 की सर्दियों से पहले उन्हें फैसला लेना पड़े और यही निर्णय तय करेगा कि नीतीश कुमार की सियासत का रुख क्या होगा?