बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले पशुपति पारस की पार्टी रालोजपा ने एनडीए से अलग होकर विधानसभा की सभी 243 सीटों पर अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी एवं दलित सेना की ओर से पटना के गांधी मैदान के पास स्थित बापू सभागार में सोमवार (14 अप्रैल ) को संविधान निर्माता डॉ. भीम राव आंबेडकर की जयंती समारोह एवं पार्टी का संकल्प महासम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसी दौरान पशुपति पारस ने एनडीए से नाता तोड़ने और विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की। ऐसे में सियासी गलियारे में पशुपति पारस के इस ऐलान को 2020 में चिराग की ओर से की गई घोषणा से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, 2020 के चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था और 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।
बता दें कि 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपमान का घूंट पीकर भी पारस ने NDA का साथ नहीं छोड़ा था, लेकिन पारस के ताजा तेवर बता रहे हैं कि वो 2025 में अपने सम्मान के साथ समझौता नहीं करेंगे। अगर महागठबंधन के साथ भी बात नहीं बनी तो वे सभी 243 सीट पर चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या 2020 में जो राह भतीजे चिराग पासवान ने तैयार की थी, 2025 में चाचा भी उसी राह पर चलेंगे।
‘चिराग मॉडल’ ने नीतीश कुमार को दिया था बड़ा डेंट
2020 के चुनाव में चिराग ने 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारा था। इस चुनाव में चिराग को बड़ी सफलता तो नहीं मिली थी, लेकिन वे नीतीश कुमार का खेल खराब करने में जरूर सफल रहे थे। चिराग की वजह से नीतीश कुमार की पार्टी बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। बिहार विधानसभा की करीब 40 सीटों पर जेडीयू, लोजपा (आर) की वजह से हार गई थी। नीतीश कुमार की पार्टी ने इसे चिराग मॉडल बताया था। चिराग इसके बाद करीब 4 साल तक एनडीए से अलग रहे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हस्तक्षेप के बाद चिराग को वापस लाया गया।
पशुपति पारस का NDA को लेकर बड़ा ऐलान
रालोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने पार्टी नेताओं से बिहार की सभी 243 सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने को कहा है। पशुपति पारस ने कहा कि आज से हम एनडीए के साथ नहीं हैं, एनडीए से हमारा कोई संबंध नहीं है। 2014 से एनडीए के साथ जुड़ने के बाद से हम उनके वफादार सहयोगी रहे हैं। लेकिन,हमने देखा कि 2024 लोकसभा चुनाव के समय हमारी पार्टी के साथ दलित पार्टी होने के कारण अन्याय किया गया। अगर महागठबंधन हमें समय रहते उचित सम्मान देता है तो हम निश्चित रूप से भविष्य की राजनीति के बारे में सोचेंगे। पशुपति पारस ने कहा कि मैं आज यही घोषणा करने के लिए आया था कि अब से एनडीए से हमारा कोई संबंध नहीं है। हम सभी 243 सीटों पर अपनी पार्टी की तैयारी करेंगे और पार्टी कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर संगठन को मजबूत करेंगे।
पारस किसका नुकसान करेंगे?
ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि इस बार पशुपति पारस किसका खेल खराब करेंगे? पशुपति पारस 2025 के विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि पारस किसका नुकसान करेंगे, यह इन बातों पर तय होगा।
- पारस अगर एनडीए के बागी उम्मीदवार को टिकट देते हैं तो इसका सीधा नुकसान संबंधित सीट पर लड़ने वाले उम्मीदवार को हो सकता है। 2020 में चिराग ने भी कई सीटों पर बागियों को ही टिकट दिया था, जिससे जेडीयू का खेल बिगड़ गया था।
- पारस के निशाने पर चिराग पासवान भी हैं। चाचा-भतीजे की इस जंग में 2025 का चुनाव टर्निंग प्वॉइंट्स माना जा रह है। बिहार में दोनों की नजर पासवान वोटर्स पर है। पशुपति इन वोटों को अपने पाले में खींचना चाहेंगे, अगर ऐसा हो पाता है तो चिराग को नुकसान होगा।
- पारस मुख्य तौर पर समस्तीपुर, हाजीपुर और मुंगेर पर फोकस कर रहे हैं। मुंगेर की कमान बाहुबली सूरजभान के पास है। प्रिंस पासवान समस्तीपुर में फोकस कर रहे हैं। खुद पारस हाजीपुर की कमान संभाले हुए हैं। इन इलाकों में जेडीयू और आरजेडी का दबदबा है। पारस अगर अपने राजनीतिक मंसूबे में सफल होते हैं तो जेडीयू और आरजेडी को नुकसान हो सकता है।
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पशुपति पारस का राजनीतिक कद
पशुपति कुमार पारस की गिनती बिहार के वरिष्ठ नेताओं में की जाती है। भले ही उनकी सियासत रामविलास पासवान की छत्रछाया में फूली-फली लेकिन वे 8 बार बिहार विधानसभा के सदस्य रहे हैं और एक बार लोकसभा सांसद भी चुने गए हैं। बिहार सरकार में 4 बार मंत्री पद पर रहे हैं तो मोदी कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। यही नहीं एलजेपी के गठन के बाद पार्टी के संगठन का पूरा जिम्मा पशुपति कुमार पारस के कंधे पर ही था। यही कारण है कि पार्टी के संगठन पर उनका पूरा प्रभाव है। पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, पूर्व विधायक सुनील कुमार पांडेय और पारस के भतीजे पूर्व सांसद प्रिंस राज आज भी उनके साथ हैं। पशुपति कुमार पारस का गृह जिला खगड़िया है और अगर पारस अकेले चुनाव लड़ते हैं तो खगड़िया में NDA को नुकसान पहुंचा सकते हैं। गृह जिला होने के कारण खगड़िया में पशुपति कुमार पारस का बड़ा जनाधार है।