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Aditya-L1 Mission: धरती और सूरज की 10वें हिस्से की दूरी तक ही जाएगा ISRO का नया यान आदित्य एल-1; जानें प्रोजेक्ट की लागत और वर्किंग

Aditya-L1 Mission, नई दिल्ली: चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के बाद अब भारत की नजर सूरज पर हैं कि वह इतना क्यों झुलसाता है। इसके लिए इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने तैयारी कर ली है। इसके लिए इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) 2 सितंबर की सुबह 11:50 बजे एक खास सैटेलाइट Aditya-L1 लॉन्च […]

Edited By : Balraj Singh | Updated: Aug 28, 2023 20:01
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Aditya-L1 Mission, नई दिल्ली: चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के बाद अब भारत की नजर सूरज पर हैं कि वह इतना क्यों झुलसाता है। इसके लिए इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने तैयारी कर ली है। इसके लिए इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) 2 सितंबर की सुबह 11:50 बजे एक खास सैटेलाइट Aditya-L1 लॉन्च करने का ऐलान कर चुका है। हमारा यह यान 128 दिन में 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय कर लेगा। फिर वहां से अगले लगभग 5 साल तक सूरज की किरणों पर रिसर्च चलेगी। News 24 हिंदी इस विशुद्ध स्वदेशी उपक्रम (Purely Indian Project) के नामकरण आदित्य एल-1 के पीछे की वजह और इस पर आने वाली लागत समेत दूसरी अहम बातों से आपको रू-ब-रू करा रहा है। जानें वो सब, जो आप जानना चाहते हैं…

  • सूरज की तरफ भेजे गए अब तक कुल 22 में से सिर्फ 2 मिशन ही कामयाब हो पाए हैं, भारत ऐसा करने वाला तीसरा देश बन जाएगा

  • 2019 में लगभग 400 करोड़ की लागत आंकी गई थी चंद्रयान 3 के आधे भी कम यानि कुल 1,500 किलोग्राम भार वाले आदित्य एल-1 की लागत

  1. अब तक 22 में से सिर्फ 2 ही मिशन कामयाब हो सके, अब तीसरा भारत होगा: यह एक बात यह भी बहुत अहमियत रखती है कि अब तक सूरज की तरफ धरती से 22 मिशन भेजे जा चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 14 मिशन NASA की तरफ से भेजे गए, वहीं जर्मनी, अमरीका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी भी इस दिशा में कोशिशें लगा चुकी हैं। हालांकि अभी तक इनमें से NASA और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के उपग्रह ही उस जगह तक पहुंच पाए हैं, जहां भारत अब अपनी स्पेश लैब स्थापित करेगा। इस मिशन के बाद ऐसा करने वाला भारत तीसरा उम्मीदवार है।
  2. कहां तक जाएगा हमारा यान और यहीं तक क्यों: इसरो के मुताबिक विशेष यान आदित्य एल-1 धरती और सूरज के बीच हेलो ऑर्बिट में स्थापित होगा। हालांकि इसके नाम से इसके सूरज तक पहुंचने का अनुमान लग रहा है, लेकिन एक बड़ी सच्चाई है कि यह सूरज तक नहीं, बल्कि सिर्फ धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर तक ही जाएगा। यह दूसरी धरती और सूरज के बीच की कुल दूरी का लगभग 10वां हिस्सा है। जहां तक इसके पीछे की वजह की बात है-सूरज के केंद्र में 1.5 करोड़ डिग्री और सतह पर साढ़े 5 हजार डिग्री सेल्सियस तापमान की वजह से अभी तक सूरज पर कोई भी भौतिक मिशन भेजना एकदम नामुमकिन है। इसके उलट लैग्रेंज प्वाइंट 1 (L1) वो जगह है, जहां रहकर सूरज को बिना किसी ग्रहण के लगातार देखना संभव है। यही कारण है कि हमारा ये यान यहीं तक भेजा जा रहा है।</<

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  3. क्यों दिया गया आदित्य एल-1 नाम: श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किए जा रहे विशेष उपग्रह का नाम भारत ने बेशक चंद्रयान की तरह सूरज या सन से नहीं जोड़ा है, लेकिन खास बात यह है कि आदित्य सूर्य का ही पर्यायवाची शब्द है। इसके अलावा ISRO के वैज्ञानिकों की मानें तो यह देश की संस्थाओं की भागीदारी से तैयार पूर्ण स्वदेशी प्रयास है। इसके पेलोड बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ ने तैयार किए हैं। सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजर पेलोड पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाया है। इसी के चलते इसे आदित्य लैग्रेंजियन प्वाइंट-1 (Aditya-L1) नाम दिया गया है।
  4. ये है मिशन की अनुमानित लागत: चंद्रयान 3 से चार गुणा ज्यादा दूरी तय करने वाले इस खास अंतरिक्ष यान आदित्य लैग्रेंजियन प्वाइंट-1 का भार चंद्रयान 3 के आधे भी कम यानि कुल 1,500 किलोग्राम है। 2019 में इस मिशन के लिए लगभग 400 करोड़ की लागत आंकी गई थी। हालांकि मौजूदा स्थिति में ऐसी कोई सटीक जानकारी सामने नहीं आ सकी है।
  5. सुलझ सकते हैं अनेक खगोलीय रहस्य: उम्मीद है कि हमारा मिशन आदित्य एल-1 हमें तारों के संबंध में जानकारी जुटाने में मदद करेगा, ऐसी उम्मीद है। असल में सूरज हमारे सबसे नजदीक का तारा है। इसरो के मुताबिक माना जा रहा है कि सूरज की कक्षा से मिलने वाली जानकारी के आधार पर हम दूसरे तारों, आकाश गंगा और खगोल विज्ञान के गहरे राज सुलझा सकेंगे।यह भी पढ़ें: सूरज की तरफ उड़ान भरने को तैयार है भारत का आदित्य L-1
  6. कैसे होगी स्टडी: मिशन आदित्य एल-1 के जरिये हमारे वैज्ञानिकों का एल-1 के चारों तरफ की कक्षा से सूरज के प्रभाव का अध्ययन करना ही मुख्य उद्देश्य है। इससे रियल टाइम सोलर एक्टिविटीज और आकाशीय मौसम पर नजर रखी जा सकेगी। इसमें भेजे जा रहे सात पेलोड में से विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VLAC) कोरोना और उत्सर्जन में बदलावों पर नजर रखेगा। सोलर अल्ट्रा-वॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (SUIT) सूरज के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें लेगा। सोलेक्स और हेल-1 ओएस का काम सूरज का एक्सरे करके सूरज की लपटों को देखने में मदद करना होगा। पार्टिकल डिटेक्टर और मैग्नेटोमीटर पेलोड से चार्ज्ड पार्टिकल के हेलो ऑर्बिट तक पहुंचने वाली मैग्नेटिक फील्ड को समझने में मदद मिलेगी। एसपेक्स और पापा का काम सौर पवन की जानकारी जुटाना और ऊर्जा के वितरण को समझना है। मैग्नेटोमीटरएल-1 कक्षा के आसपास विभिन्न ग्रहों के चुम्बकीय प्रभाव को मापेगा।
  7. लॉन्चिंग देखने के चाहवानों के लिए ISRO ने किया रजिस्ट्रेशन लिंक सांझा: एक और खास बात यह भी है कि इस अनमोल मिशन की लॉन्चिंग को देश के नागरिक खुद देख सकता है। ISRO की तरफ से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर बताया गया है कि जो भी आदित्य-एल1 मिशन की लॉन्चिंग का गवाह बनना चाहता है, वो https://lvg.shar.gov.in/VSCREGISTRATION/index.jsp पर जाकर श्रीहरिकोटा में लॉन्च व्यू गैलरी के लिए रजिस्ट्रेशन कर सकता है।

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Edited By

Balraj Singh

First published on: Aug 28, 2023 07:26 PM

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