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SkandPuran Story: ऐसे मनुष्यों के साथ बैठकर खाते हैं प्रेत! जानिए प्रेत क्या खाते हैं ?

मृत्यु के बाद मनुष्य का जन्म कर्मों के हिसाब मिलता है। जिसने अच्छा कर्म किया है उसे स्वर्ग में स्थान मिलता है और बुरे कर्म करनेवाले को नरक की सजा भुगतनी पड़ती है। कुछ आत्माओं को भूत-प्रेत की योनि में भी जन्म लेना पड़ता है।

Edited By : Nishit Mishra | Updated: Sep 24, 2024 21:05
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SkandPuran Story: कोई भी मनुष्य भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकता। मनुष्य जिन्दा रहने के लिए कई तरह  के भोजन करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भूत-प्रेत क्या खाते हैं? अगर नहीं तो चलिए जानते हैं स्कंदपुराण प्रेतों के आहार के बारे में क्या कहता है?

राजा विदुरथ की कथा

स्कंदपुराण में वर्णित कथा के अनुसार पौराणिक काल में विदुरथ के नाम एक राजा हुआ करते थे। वे दानवीर और महाप्रतापी राजा थे।  एक दिन की बात है राजा विदुरथ अपने सैनिकों के साथ सिंह,बाघ जैसे हिंसक पशुओं से भरे हुए जंगल में शिकार के लिए गए। शिकार करते हुए राजा विदुरथ का बाण एक पशु को जा लगा लेकिन वह मरा नहीं। बाण के साथ ही वो जंगल की ओर भागने लगा। यह देख राजा विदुरथ भी उसके पीछे हो लिए। उस पशु का पीछा करते हुए विदुरथ दूसरे जंगल पहुंच गए।

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काफी देर खोजने के बाद भी वह पशु राजा विदुरथ को नहीं मिला। राजा अपनी सेना से भी बिछुड़ गए। घोड़ा भी थककर जमीन पर गिर गया। उसके बाद भूख-प्यास से व्याकुल राजा विदुरथ पानी की खोज में पैदल ही भटकने लगे। कुछ देर भटकने के बाद वो भी बेहोश होकर गिर गए। फिर जब राजा विदुरथ को होश आया तो उन्हें तीन प्रेत दिखाई दिया। प्रेतों को देखकर वो थर-थर कांपने लगे। फिर डरते हुए बोले मैं राजा विदुरथ हूं। तुम तीनों कौन हो? तब उसमें जो सबसे ज्येष्ठ प्रेत था उसने कहा महाराज हम तीनों प्रेत हैं। अपने कर्मों के कारण हमलोग प्रेत योनि का कष्ट भोग रहे हैं। मेरा नाम मांसाद है और ये दूसरा विदैवत है और इस तीसरे का नाम कृतघ्न है जो सबसे ज्यादा पापी है।

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मैंने मनुष्य रूप में हमेशा मांसाहारी भोजन ही खाया, इसलिए प्रेत योनि में मेरा नाम मांसाद पड़ा। दूसरे ने सदा देवताओं को भोग लगाए बिना भोजन ग्रहण किया इसलिए इसका नाम विदैवत पड़ा। जबकि तीसरे  ने मनुष्य जीवन में लोगों के साथ विश्वासघात ही किया इसलिए इसका नाम कृतघ्न पड़ा।

प्रेत क्या खाते हैं?

उसके बाद राजा ने मांसाद से पूछा प्रेत योनि में तुमलोग क्या खाते हो? तब मांसाद ने कहा जिस घर की स्त्रियां भोजन करते समय आपस में लड़ती हैं, जिस घर में गौ माता को ग्रास दिए बिना भोजन कर लिया जाता हो, जिस घर में कभी झाड़ू नहीं लगता, जिस घर को गाय के गोबर से लीपा नहीं जाता तथा जहां मांगलिक कार्य नहीं होते और अतिथियों का सम्मान नहीं किया जाता, ऐसे घरों में सभी प्रेत भोजन करते हैं। जिस घर में टूटे-फूटे बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है, जहां कभी वेदों के मंत्र सुनाई नहीं देते, जो श्राद्ध दक्षिणा के बिना या विधि पूर्वक नहीं किया जाता है, वही हम सभी प्रेतों का आहार होता है। इसके अलावा जिस भोजन में केश आ जाए वह भी हमारा ही आहार होता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Nishit Mishra

First published on: Sep 24, 2024 09:05 PM

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